मनरेगा पर भ्रामक तस्वीर पेश कर रही है केंद्र सरकार: ज्यां द्रेज

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) की जमीनी हकीकत केंद्र सरकार द्वारा 3 दिसंबर 2024 को संसद में पेश की गई तस्वीर से बहुत ही अलग है।
द्रेज ने यह बात नरेगा संघर्ष मोर्चा द्वारा आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही। उन्होंने तो यहां तक कहा कि केंद्र सराकर द्वारा इस योजना का बजट बढ़ाने की बात करना और भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने के उनके सभी दावे पूरी तरह से भ्रामक हैं।
ध्यान रहे कि केंद्रीय संचार राज्य मंत्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र के दौरान दावा किया था कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने नरेगा बजट में सालाना 20,000 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी की है।
उन्होंने कहा कि नरेगा जॉब कार्ड हटाना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। इस दौरान केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी दिसंबर 2021 से पश्चिम बंगाल को मिलने वाले फंड को रोके जाने को उचित ठहराया है। चौहान ने कहा कि केंद्र के पास नरेगा के क्रियान्वयन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के सबूत मिले हैं।
ड्रेज ने सरकार के इस रवैए को मनरेगा श्रमिकों के प्रति “गंभीर अन्याय” करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार ने पिछले 10 वर्षों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा) को कमजोर करने के लिए कई कदम उठाए हैं। ड्रेज ने केंद्र द्वारा समय पर भुगतान के दावे के बारे में बात करते हुए इस पर गंभीर टिप्पणी की कि वास्तव में पेम्मासानी फंड ट्रांसफर ऑर्डर (एफटीओ) पर संसद को गुमराह कर रहे थे। उनका कहना था कि कानून का कहता है कि कार्य पूरा होने के 15 दिनों के भीतर ही मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए। मंत्री ने दावा किया कि एफटीओ 15 दिनों के भीतर तैयार हो गए थे, लेकिन उन्होंने मजदूरी की रकम जमा करने का जिक्र नहीं किया। यदि काम पूरा होने से लेकर भुगतान श्रमिकों के खातों में जमा होने तक के समय की गणना की जाए तो मुश्किल से 50 प्रतिशत श्रमिकों को निर्धारित अवधि के भीतर मजदूरी मिली होगी।
इस अवसर पर पश्चिम बंग खेत मजदूर समिति (पीबीकेएमएस) के सदस्य दीप्यमान अधिकारी ने केंद्रीय कृषि मंत्री चौहान के दावों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि यदि भ्रष्टाचार हुआ है तो अब तक किसी भी अधिकारी को जवाबदेह क्यों नहीं ठहराया गया है और न ही इस मामले में किसी तरह का जुर्माना भी क्यों नहीं लगाया गया है। उन्होंने कहा कि नरेगा अधिनियम कार्यान्वयन में अनियमितताओं और योजना के अनिश्चितकालीन निलंबन के कारण श्रमिकों को मजदूरी से वंचित करने का अधिकार नहीं देता है। उन्होंने यह भी कहा कि पारदर्शिता के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जांच किए जाने के अपने निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
वहीं झारखंड की नरेगा कार्यकर्ता अफसाना खान ने कहा कि मजदूरी में देरी और तकनीकी बाध्यता श्रमिकों को रोजगार पाने के अधिकार से वंचित कर रही है साथ ही इस काम को हतोत्साहित भी कर रही है। उन्होंने कहा कि बजट में कटौती भी भुगतान में देरी का कारण है क्योंकि बजट से मजदूरी आवंटित की जाती है और अगले वित्तीय वर्ष में आगे बढ़ाई जाती है। उन्होंने कहा कि कुछ श्रमिकों को मजदूरी भी नहीं मिलती है।
इस अवसर पर भारत में सार्वजनिक सेवा वितरण में सुधार के लिए काम कर रहे इंजीनियरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और सामाजिक वैज्ञानिकों के संगठन लिबटेक के चक्रधर बुद्ध ने कहा कि सरकार को तुरंत तकनीकी कारणों को रद्द कर देना चाहिए। उन्होंने भुगतान के लिए राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली (एनएमएमएस) और आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) जैसी ऑनलाइन उपस्थिति प्रणालियों का उदाहरण दिया। बुद्ध ने कहा कि 2022-23 में लगभग 90 मिलियन श्रमिकों को हटा दिया गया है और 2024-25 में एबीपीएस का पालन न करने के कारण 9.1 मिलियन से अधिक श्रमिकों को हटा दिया गया है। यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है न कि राज्यों की। इन श्रमिकों को हर हाल में बहाल किए जाने की जरूरत है और सरकार का यह कदम अधिनियम के खिलाफ है। आज से यानी पांच दिसंबर से नरेगा श्रमिकों ने जंतर मंतर पर दो दिवसीय विरोध प्रदर्शन की शुरूआत की है।