एक ही तकनीकी यंत्र बार-बार रन करे तो वह हेंग करने लगता है,ऐसी स्थिति में या तो उसे बदलना पड़ता है या फिर यंत्र अच्छी स्थिति में है एवं उसी को रन करना है तो बैक अप डिवाइस का सहारा लेकर काम चलाया जाता है। मप्र में भाजपा की भी यही स्थिति है। 18 साल से रन कर रही भाजपा की सरकार में जनता से कम कार्यकर्ता से ज्यादा हेंगओवर हो रहा है। इसी बात को ध्यान में रख बीजेपी ने केन्द्रीय नेतृत्व को मैदान में उतार दिया है।  इस बार किसी चेहरे को जनता के सामने प्रजेंट नहीं किया जा रहा है,यह बात अलग है कि मामा का क्रेज अभी भी कायम है, लेकिन लोकतंत्र में रिपिटेशन को जनता इग्नोर कर देती है,यह उसके डीएनए में है जो भारत के आजादी की खूबसूरती भी है।

भाजपा ने इस बार मप्र में फिर से वापसी के लिए टिकट विरतण मेंबैक टू अॅप फार्मूला अपनाते हुए  अपने राजनीति इतिहास से इतर 39 प्रत्याशियों की लिस्ट अन्य दलों से पहले जारी कर सबको चैका दिया   है।  39 की लिस्ट में उन कार्यकर्ताओं को भी लिया गया है जो कई दिनों से पार्टी के लिए कार्य कर रहे थे लेकिन परंपरागत रूप से राजनीतिक समीकरण बनने के चलते मौका नहीं मिल रहा था। कई नए चेहरों को भी इस बार जगह मिली है। यह अलग बात है कि कई पूराने बगावती कार्यकर्ताओं को टिकट मिलने से वंशवादी टाइप के कई बार हारे केंडिडेट भी बगावत पर उतर आए हैं लेकिन उम्मीद कम है कि उन्हे फिर से टिकट मिल सके।

लिस्ट जारी होते ही विरोध शुरू  

इधर लिस्ट जारी होने के बाद विरोध भी शुरू हो गया है।  बालाघाट जिले के लांजी में  राजकुमार कर्राहे ने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दिया। इसके कुछ घंटों बाद उन्हें बालाघाट के लांजी निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी ने उम्मीदवार घोषित कर दिया। लांजी सीट से पार्टी के पूर्व विधायक रमेश भटेरे टिकट की उम्मीद लगाए थे। रमेश भटेरे और समर्थक अपने क्षेत्र में काम भी कर रहे थे। जैसे भटेरे को समर्थकों को पता चला कि राजकुमार कर्राहे को   टिकट मिली है, वैसे ही सड़कों पर बीजेपी के झंडे लेकर राजकुमार के खिलाफ नारे लगाते हुए जुलूस निकाला। भटेरे समर्थकों ने नारे लगाए 'राजकुमार को झाडू मारो, झाडू मारो।

छतरपुर में  ललिता यादव का विरोध  ?

ऐसा ही कुछ छतरपुर सीट पर देखने को मिला। छतरपुर सीट से 2008 में 7,508 वोट के अंतर से और 2013 में 2,217 वोट के अंतर से जीतने वालीं पूर्व मंत्री ललिता यादव का भी विरोध किया जा रहा है।  

  जीतने वाले  नेताओं के परिजन को भी मौका

बताया जा रहा है कि टिकट वितरण को लेकर शाह ने संकेत दे दिया है कि पार्टी पुराने पेटर्न पर ही टिकट देगी। जरूरत पड़ने पर उम्र का क्राइटेरिया भी नहीं रखा जाएगा, जीतने वाले उम्मीदवारों में नेताओं के परिजन को भी मौका दिया जा सकता है। जबकि क्षेत्र के दमदार नेताओं को तबज्जो मिलेगी, यूथ नेताओं के लिए भी इस बार मौका मिलेगा। यानि टिकट वितरण में केवल एक क्राइटेरिया चलेगा, जो अधिक वोट लाने की संभावना में होगा टिकट उसे दिया जाएगा।

हर एक  सीट पर कई दावेदार

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शाह का यह बयान बेहद अहम साबित होने वाला है। दरअसल, मध्य प्रदेश में 2003 के बाद अगर 15 महीनों को छोड़ दिया जाए तो 17 साल तक प्रदेश में बीजेपी की सरकार रही है। ऐसे में हर विधानसभा सीट पर बीजेपी ने अपनी पकड़ मजबूत की है, जिससे हर सीट पर कई नेता उभरे हैं। जबकि इतने सालों में दलबदल करके बीजेपी में आने वाले नेताओं की संख्या भी ज्यादा हो गई है। जिससे हर एक विधानसभा सीट पर कई दावेदार हैं। ऐसे में टिकट वितरण के बाद आपसी घमासान की स्थिति बने, इसलिए शाह लगातार पार्टी में एकजुटता की बात कर रहे हैं। क्योंकि 39 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा के बाद कई जगह विरोध देखा गया है।

  ग्वालियर-चंबल पर शाह का फोकस

बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान ग्वालियर-चंबल अंचल में ही उठाना पड़ा था। पार्टी को यहां 34 में से केवल 7 सीटें ही मिली थी। ऐसे में यहां अमित शाह ने सभी को एकजुट होकर चुनाव लड़ने की सलाह दी है। खास बात यह भी है कि इस बार ग्वालियर-चंबल में बीजेपी की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के कंधों पर होगी। ऐसे में दोनों नेताओं के बीच समनव्यय बनाकर चलने के लिए भी शाह खुद चुनावी कमान संभाल रहे हैं।

 

 

न्यूज़ सोर्स : ipm