र्नाटक में बच्चों की ग्राम सभाएं आयोजित की जाती हैं जिन्हें कन्नड़ में ‘मक्कला ग्राम सभा’ कहा जाता है। ये सभाएं ग्रामीण इलाकों में बच्चों के लिए स्थानीय सरकार यानी ग्राम पंचायत के साथ जुड़ने का एक सक्रिय मंच हैं। साल 2006 में, कर्नाटक के ग्रामीण विकास और पंचायत राज (आरडीपीआर) विभाग ने एक सरकारी आदेश जारी किया। इस आदेश में यह निर्देशित किया गया कि प्रत्येक ग्राम पंचायत को एक ऐसी ग्राम सभा आयोजित करनी होगी जिसमें बच्चे मुख्य सदस्य हों और जो इनसे संबंधित मुद्दों पर केंद्रित हों।

आमतौर पर, एक ‘मक्कला ग्राम सभा’ में पांच से छह गांवों के 150 से 250 बच्चे शामिल होते हैं। छात्रों के अलावा, इस सभा में ग्राम पंचायत के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, पंचायत विकास अधिकारी (पीडीओ), शिक्षा विभाग का क्लस्टर रिसोर्स पर्सन (सीआरपी), आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, शिक्षक, स्वास्थ्य, महिला और बाल विकास एजेंसियों के अधिकारी और स्थानीय पुलिस स्टेशन के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

इन सभाओं में बच्चे खुद के, साथियों के तथा अपने स्कूल व समुदाय से जुड़े मुद्दों को उठाते हैं। उठाए गए सवाल आमतौर पर स्कूल और गांव में बुनियादी ढांचे की जरूरतों या बच्चों की सुरक्षा (जैसे कि उनके स्कूल के पास शराब की दुकानों का होना, या स्कूल परिसर में जुआ और तोड़फोड़ जैसी गतिविधियों) के बारे में होते हैं।

हर साल नवंबर से जनवरी के बीच 6 हजार से ज़्यादा ग्राम पंचायतों के हज़ारों बच्चे मक्कला ग्राम सभाओं में हिस्सा लेते हैं। यह लेख “चिल्ड्रन मूवमेंट फॉर सिविक अवेयरनेस” (सीएमसीए) के अनुभवों और सीखों पर आधारित है। सीएमसीए एक नागरिक समाज संगठन है जो 2011 से कर्नाटक में इन सभाओं को सक्रिय और व्यवस्थित रूप से संचालित करने के लिए एक कार्यक्रम लागू कर रहा है। सीएमसीए का उद्देश्य इन सभाओं को ऊर्जा प्रदान करना और यह तय करना है कि बच्चे असरदार तरीके से अपनी समस्याओं और विचारों को सामने रख सकें।

बच्चों के प्रति संवेदनशील स्थानीय शासन की दिशा में एक कदम

बच्चों के प्रति संवेदनशील शासन यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि बच्चे केवल प्राप्तकर्ता न हों बल्कि उनसे संबंधित मामलों और निर्णयों में सक्रिय भागीदार भी हों। हमने जिन स्कूल के छात्रों के साथ बातचीत की, वे बताते हैं कि ये ग्राम सभाएं उन्हें अपने मसले सामने रखने का मौका देती हैं। चिक्कमंगलूरू की 9वीं कक्षा की छात्रा, रेणुका* कहती हैं, “यह सभा बहुत उपयोगी है। हमारे स्कूल में न तो कंपाउंड है, न ही कंप्यूटर या डिजिटल उपकरण। जब हमने ये जरूरतें बताईं तो सरकारी अधिकारियों ने वादा किया कि हमारे स्कूल को तकनीकी सुविधाएं दी जाएंगी। अगर हमें ऐसे मंच नहीं मिलते तो हम मौजूदा दिक्कतों के बारे में कभी नहीं बोल पाते।”

हमने जिन पंचायत अधिकारियों से बातचीत की, वे भी ग्राम सभाओं को एक सकारात्मक प्रभाव मानते हैं। बच्चों के नजरिए के महत्व को स्वीकार करते हुए, रामनगर ज़िला पंचायत के सीईओ, डिग्विजय बोडके, कहते हैं, “हमें बच्चों के नजरिए से सोचने की ज़रूरत है ताकि उनकी समस्याओं को समझा जा सके। ‘मक्कला ग्राम सभाएं’ हमें यह समझने में मदद करती हैं कि उनके मन में क्या चल रहा है।”

अधिक समावेशी और बच्चों के लिए सुरक्षित मौके प्रदान करने के लिए, ग्राम पंचायत अधिकारी यह सुनिश्चित करते हैं कि स्कूलों और अन्य सार्वजनिक स्थानों, साथ ही ग्राम सभा में, बच्चों के लिए ‘वॉइस बॉक्स‘ लगाए जाएं।

ये बॉक्स बच्चों को उन मुद्दों और चुनौतियों को व्यक्त करने का मौका देते हैं जिनके बारे में वे सीधे सभा में बोलने में संकोच कर सकते हैं या अगर वे सभा में उपस्थित नहीं हो पाते हैं। इस तरह, बच्चे अपनी जरूरतों और समस्याओं को सुरक्षित और सहज तरीके से साझा कर सकते हैं।

‘मक्कला ग्राम सभाओं’ ने हमें दिखाया है कि एक नेक इरादों वाली सरकार, मजबूत नीतियां और तंत्र, राज्य और जिला स्तर के अधिकारियों का उचित ध्यान और प्रेरणा, और एक सक्रिय नागरिक समाज मिलकर समुदाय में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं। उदाहरण के लिए, चिक्काबल्लापुरा और हसन जिलों के सरकारी स्कूलों में, ‘मक्कला ग्राम सभाओं’ की चर्चाओं के परिणामस्वरूप स्कूल भवनों की मरम्मत और अन्य सुधार किए गए हैं। बच्चों ने आय प्रमाण पत्र से संबंधित छात्रवृत्तियों तक पहुंच की दिक्कतों के बारे में बताया है। साथ ही पॉक्सो अधिनियम पर जागरूकता कार्यक्रमों और स्कूल के बच्चों और अन्य लोगों के लिए बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता अभियान की मांग की है।

मक्कला ग्राम सभाओं को क्या चाहिए?

चूंकि बच्चों को ग्राम सभा की बैठक में भाग लेना, सुनना, और पूरी तरह से शामिल होना जरुरी होता है, ‘मक्कला ग्राम सभाएं’ बच्चों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालांकि, बच्चों को बदलाव का एक प्रभावी साधन बनाने के लिए और भी कुछ उपाय हैं।

1. फ़ैसले लेने वाले प्रमुख लोगों की मौजूदगी

यह बहुत महत्वपूर्ण है कि ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि और जिम्मेदार अधिकारी—जैसे कि पंचायत के अध्यक्ष, अन्य निर्वाचित सदस्य, पंचायत विकास अधिकारी (पीडीओ), शिक्षा विभाग के अधिकारी, आशा कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी शिक्षिका, और बाल अधिकार एजेंसियां—इन ग्राम सभाओं में उपस्थित रहें। इनकी उपस्थिति ‘मक्कला ग्राम सभा’ को उत्पादक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब ये अधिकारी मौजूद होते हैं तभी बच्चों और उनकी देखभाल के लिए जिम्मेदार वयस्कों को सही जानकारी दी जा सकती है। इससे चुनौतियों का समाधान खोजने में मदद मिलती है जैसे कि मुद्दे के समाधान की जिम्मेदारी कौन लेगा और उन मुद्दों के लिए धन कहां से आवंटित किया जा सकता है जो सीधे ग्राम पंचायत से जुड़े नहीं हैं।

हमने जिन बच्चों से बातचीत की, उन्होंने भी इस बात को समझा। 9वीं कक्षा की छात्रा अनीता* कहती हैं, “आज की ग्राम सभा में शामिल होने के बाद मुझे खुशी हुई। यहां सरकारी अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि हमारी मांगों और चिंताओं को ध्यान में रखा जाएगा। मुझे लगता है कि कुछ विभागों के अधिकारी जो इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए, उन्हें भी आना चाहिए था ताकि वे हमारी समस्याओं का समाधान कर पाते।”

2. बच्चों के विकास और भागीदारी के प्रति समग्र दृष्टिकोण

बेहतर परिणाम पाने के लिए मक्कला ग्राम सभाओं को बाल विकास और भागीदारी के प्रति ज्यादा समग्र दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है। हम देखते हैं कि मक्कला ग्राम सभाओं में बच्चों की ओर से उठाए गए मुद्दे अभी भी ज्यादातर मौलिक अधिकारों जैसे कि स्कूल की मरम्मत और यह सुनिश्चित करना कि स्कूलों में आवश्यक बुनियादी ढांचा हो, से संबंधित हैं।

कर्नाटक जैसे-जैसे बच्चों के प्रति संवेदनशील स्थानीय शासन को आगे बढ़ाने वाली नीतियों की ओर बढ़ रहा है तो ऐसे में बच्चों की भागीदारी और निरंतर निगरानी के तंत्र बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसमें बच्चों की बजट और निर्णय लेने में भागीदारी शामिल है। ये उपाय सुनिश्चित करते हैं कि बुनियादी अधिकारों से संबंधित समस्याएं समय पर और लगातार हल की जा सकें। इसके परिणामस्वरूप बच्चों के अनुभव में सुधार होगा और ‘मक्कला ग्राम सभा’ में उनकी भागीदारी ज्यादा सक्रिय होगी। साथ ही, यह बच्चों और स्थानीय सरकार के बीच गहरे और अर्थपूर्ण संवाद की संभावना को बढ़ाएगा। बच्चों के विकास सूचकांकों और उनकी समग्र भलाई पर इसका प्रभाव लंबे समय तक रहेगा।

3. ज्यादा से ज्यादा महिला प्रतिनिधि

यह बताना अहम है कि ग्राम पंचायतों में महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत होने से बच्चों के प्रति उत्तरदायिता में सकारात्मक बदलाव आया है। हम देखते हैं कि महिला प्रतिनिधि चुनौतियों को बेहतर ढंग से संभालती हैं और बच्चों की ओर से उठाए गए मुद्दों का जल्दी ही समाधान खोजने की कोशिश करती हैं। संस्थागत तंत्र को और मजबूत करने के लिए जरूरी अतिरिक्त कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे राज्य स्तर पर एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति ताकि कार्यान्वयन में सुधार हो सके। इसके अलावा बच्चों की ओर से खुद ऑडिट करना जिससे वे सीधे तौर पर सेवाओं की गुणवत्ता और वितरण पर रिपोर्ट कर सकें। विद्यालयों और अन्य स्थानों पर नियमित बैठकें हों ताकि बच्चे जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उन पर चर्चा की जा सके।

ग्राम पंचायतों में महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत होने से बच्चों के प्रति उत्तरदायिता में सकारात्मक बदलाव आया है।

इसके अलावा, पंचायत विकास अधिकारियों की तरफ से बच्चों को कार्यवाही की रिपोर्ट समय पर प्रस्तुत करना। साथ ही, मक्कला ग्राम सभा के परिणामों को संबंधित विभाग के ऑनलाइन पोर्टल पर अपडेट करना। इससे बच्चों की भागीदारी और भी प्रभावी हो सकती है। साथ ही इस पूरी प्रक्रिया को मान्यता मिलेगी और बच्चों के विकास सूचकांकों के अलावा सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति में भी मदद मिलेगी।

राज्य—नागरिक समाज भागीदारी की भूमिका

आरडीपीआर विभाग की ओर से जारी सर्कुलर आज एक विस्तृत और प्रभावी दस्तावेज़ है। इसे सालों से काम कर रहीं समाजसेवी संस्थाओं के जमीनी अनुभवों से मजबूत बनाया गया है जो आरडीपीआर को सुझाव के रूप में मिलते रहे हैं। समाजसेवी संस्थाएं जैसे द कन्सर्न्ड फ़ॉर वर्किंग चिल्ड्रेन (सीडब्ल्यूसी), चिल्ड्रेन्स मूवमेंट फ़ॉर सिविक अवेयरनेस (सीएमसीए), प्रकृति फ़ाउंडेशन, ग्रामांतर, चाइल्ड राइट्स ट्रस्ट (सीआरटी) और नव युवा प्रतिष्ठान सुनिश्चित करते हैं कि मक्कला ग्राम सभाएं चलती रहें।

यहां कुछ कदम दिए गए हैं जो सिविल सोसाइटी संगठनों (सीएसओएस) ने उठाए हैं:

  • सीएमसीए स्कूलों और ग्रामीण लाइब्रेरी में काम करता है ताकि बच्चों को मक्कला ग्राम सभाओं में भाग लेने के उद्देश्यों और नागरिक के रूप में उनकी भूमिकाओं के बारे में शिक्षित किया जा सके।
  • सीडब्ल्यूसी और सीआरटी जैसी समाजसेवी संस्थाएं समुदाय के स्थानों और स्कूल न जाने वाले या सबसे कमजोर बच्चों के साथ काम करती हैं, ताकि बच्चों की ग्राम सभाओं को ज्यादा समावेशी बनाया जा सके।
  • समान विचारधारा वाली समाजसेवी संस्थाएं मिलकर काम करती हैं और तकनीकी सहायता (जैसे रिपोर्टिंग फॉर्मेट्स, मूल्यांकन उपकरण, और विश्लेषण सेवाएं) देती हैं ताकि मक्कला ग्राम सभाओं को और ज्यादा प्रभावी बनाया जा सके।
  • समाजसेवी संस्थाओं ने मौजूदा संस्थागत प्रशिक्षण कार्यक्रमों का उपयोग किया है ताकि पंचायत विकास अधिकारियों को मक्कला ग्राम सभाओं के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक उपकरण और सहयोग दिया जा सके।
  • सीएसओ सर्कुलर को सिफारिशें देते हैं और जागरूकता सामग्री—जैसे प्रचार पोस्टर—देते हैं जो जानकारी फैलाने के लिए बनाई जाती हैं। ये सामग्री राज्य और अन्य सीएसओ को समर्थन देती है।

कर्नाटक और इसके पार

अब दूसरे राज्यों के लिए समय आ गया है कि वे मौजूदा नीतियों और पहलों को ध्यान में रखते हुए अपनी ग्राम पंचायतों में बच्चों की ग्राम सभाओं को लागू करें।

जैसे-जैसे बच्चों के परिप्रेक्ष्य में स्थानीय शासन का उद्देश्य जोर पकड़ रहा है, ऐसे में यह अनूठा मंच एक मील का पत्थर साबित हुआ है। यह एक जांच और समीक्षा बिंदु के रूप में काम कर रहा है। साथ ही, बच्चों के लिए खुशी और आशा के दरवाजे भी खोल रहा है। यह हमारे लोकतंत्र में बच्चों की भागीदारी के महत्व को मान्यता देता है। बचपन में सहभागी लोकतंत्र के ऐसे शक्तिशाली अनुभव न केवल चुनावों और मतदान के दौरान बल्कि जीवन के एक तरीके के रूप में भी सरकार के साथ नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा देंगे।

न्यूज़ सोर्स : idr