खेती का कोई विकल्प नहीं है। लेकिन खेती करते हुये पीढी-दर-पीढी गरीब रहना भी ठीक नहीं है। इसलिए खेती को लाभ का व्यवसाय बनाना आवश्यक हैं। नई पीढी खेती को अपनाये, इसके लिए खेती को नये तरीको से करना होगा। खाली पैदावार बढाने से काम नहीं चलेगा। बल्कि खेती को व्यवसाय बनाना होगा। किसान की पैदावार भी बढे और उसका उचित मूल्य भी मिले, इसके लिए खेती की पूरी प्रक्रिया को बदलना होगा। इसके लिए किसान को व्यापारी की सोच/मानसिकता से काम करना होगा। सरकार किसान को किसान-व्यापारी के रूप में बदलने के लिए ही FPC की नीति लेकर आई है।

 साल 2007 में जाने माने अर्थशास्त्री वाईके अलग ने इसकी शुरुआत की थी और फिर उन्होंने 2011 में पहला एफपीसी बनाया। एफपीओ यानी फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन के तरह दो तरह के संगठन होते हैं, पहला है एफपीसी यानी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी और दूसरा है एफपीओ जोकि कोऑपरेटिव के तहत रजिस्टर होता है, उसे फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन बोलते हैं।

चलिए जानते हैं कि इन दोनों में अंतर क्या होता है? फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी में जो कंपनी एक्ट के तहत रजिस्टर होता है वो एफपीसी होता है। जबकि जो कोऑपरेटिव एक्ट में रजिस्टर हो रहा है उसको भी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी ही बोलते हैं। लेकिन दोनों में अंतर ये होता है कि जब आप एफपीसी बनाते हैं तो इससे आप पूरे देश में काम कर सकते हैं, क्योंकि जब हम प्राइवेट लिमिटेड या कंपनी की बात करते हैं तो ये मुख्य रूप से तीन तरीके की होती है

एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठन, किसानों का एक ऐसा समूह जो अपने क्षेत्र में फसल उत्पादन से लेकर खेती-किसानी से जुड़ी तमाम व्यावसायिक गतिविधियां भी चलाता है। एफपीओ के जरिये किसानों को न सिर्फ कृषि उपकरण के साथ खाद, बीज, उर्वरक जैसे कई उत्पादों को थोक में खरीदने की छूट मिलती है बल्कि वो तैयार फसल, उसकी प्रोसेसिंग करके उत्पाद को मार्केट में बेच भी सकते हैं।

फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन एक-दो मिलकर बनाते हैं, जबकि फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी बनाने के लिए 10 लोग होने चाहिए, जिसमें पांच डायरेक्टर होते हैं। और हां उन्हें किसान होना चाहिए। अब लोगों के मन सवाल आता है कि यहां पर किसान की परिभाषा क्या है। इसके लिए किसान के नाम खतौनी होनी चाहिए, अगर यूपी की बात करें तो यहां पर जब तक पिता हैं तक बेटे के नाम संपंति आएगी। अब ऐसी दशा में एक सर्टिफिकेट बनाया जाता है कि प्रमाणित किया जाता है कि फला पुत्र फलां जगह के निवासी हैं, उनकी जीविका खेती पर आधारित है।

यह प्रमाणपत्र जिला कृषि अधिकारी या तहसीलदार या एसडीएम के माध्यम से जारी होता है। इसे प्रोड्यूसर सर्टिफिकेट कहा जाता है। सबसे जरूरी होता है कि अगर आपने प्रोड्यूसर कंपनी बनाई है तो आपको प्रोड्यूज करना होगा, ये नहीं कि बस कंपनी रजिस्टर करा ली और काम खत्म हो गया।

रजिस्ट्रेशन के लिए पहली खतौनी, दूसरा उसका आधार कार्ड, तीसरा पैन कार्ड और चौथा एक पासपोर्ट साइज फोटो लगती है। जब एक सीए के पास जाते हैं तो उनकी भाषा कठिन होती और किसान समझ नहीं पाते हैं, क्योंकि पहले एफपीओ रजिस्टर होता था तो 49500 फीस पड़ती थी, अब 15000 रुपए में रजिस्ट्रेशन हो जाता है। और ज्यादा से ज्यादा 25000 का खर्च आता है।

आप डेयरी पर काम करना चाहते हैं या पोल्ट्री पर काम करना चाहते हैं, ये आपको प्राथमिकता तय करनी होगी कि आप किस सेक्टर में काम करना चाहते हैं। इसमें कृषि से जुड़े काम करना होता है, कृषि के अंदर 17 विभाग आते हैं, सरकार की यही मंशा ही है कि आप कृषि से जुड़े काम करें, चाहे वो बकरी पालन हो, मुर्गी पालन हो या फिर खेती कर रहे हों।

एफपीओ पंजीयन हेतु इस लिंक पर जाएं

eNAM | Registration

https://enam.gov.in/web/Enam_ctrl/enam_registration

FPC क्यों बनाते है? इसका उद्देश्य क्या है?

  1. यह लघु स्तर के उत्पादकों (विशेष रूप से छोटे एवं सीमांत किसानों) के समूहीकरण के उदेश्य से बनाया गया ताकि किसानों के हितों का संरक्षण किया जा सके।
  2. FPC से किसानो को अपनी उपज के लिए Farm gate पर ही अच्छा बाजार मिलने लगेगा।
  3. किसान अपने उत्पादों को आसानी से देश-विदेश में भी बेच पायेगें।
  4. किसानों को FPC के माध्यम से सेवाए सस्ती मिलेगी और बिचैलियों के मकड़जाल से बच सकेगे। FPC में सहकारिता वाली राजनीति बिल्कुल नहीं है और इसको संचालित करने में किसी और संस्था का दखल भी नहीं है।  
  5. किसानों को बीज, उर्वरक, मशीनों, की आपूर्ति, मार्केट लिंकेजेज के संदर्भ में परामर्श एवं तकनीकी सहायता देना।
  6. किसानों को प्रशिक्षण, नेटवर्किंग, वित्तीय एवं तकनीकी परामर्श देना।
  7. FPC को अपनी पूॅंजी के बराबर कारोबार बढाने के लिए सरकार से योगदान मिलेगा।
  8. किसानों को ऋण की उपलब्धता एवं बाजार तक पहॅुच सुनिश्चित करने के संदर्भ में उन चुनौतियों के समाधान का प्रयास करना जिनका सामना छोटे और सीमांत किसान करते है।
  9. ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुडे कम पढे लिखे, लेकिन अनुभवी ग्रामीणों को अपने हुनर दिखाने के साथ-साथ अपनी कमाई बढाने का सबसे आसान और सस्ता माध्यम FPC ही है।
  10. ग्राम की एकता और ताकत बढेगी जिससे सभी ग्रामवासी स्वतः ताकतवर हो जाएगें।
  11. FPC गाॅव को माडल गाॅव बना देगा, जिससे गाँव की गरीबी और बेरोजगारी कम होगी।

    FPC कैसे बनायें?

    आमतौर पर कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग द्वारा राज्यों में कार्यान्वित विभिन्न केन्द्रीय क्षेत्र योजनाओं के अतंगर्त एफपीओ को प्रोत्साहित किया जाता है। एफपीओ गठित करने के इच्छुक किसानों को विस्तृत जानकारी एवं हैंड होल्डिंग के लिए सम्बन्धित विभाग या इससे जुड़े सलाहकार से सम्पर्क करना होगा।                                                                                                                           आमतौर पर कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग द्वारा राज्यों में कार्यान्वित विभिन्न केन्द्रीय क्षेत्र योजनाओं के अतंगर्त एफपीओ को प्रोत्साहित किया जाता है। एफपीओ गठित करने के इच्छुक किसानों को विस्तृत जानकारी एवं हैंड होल्डिंग के लिए सम्बन्धित विभाग या इससे जुड़े सलाहकार से सम्पर्क करना होगा।

  12.   नाबार्ड, SFAC ओर NCDC की पोषण संस्थाएं हैं।  

    यह संस्थाए FPC को चलाने के लिए 3 वर्ष की अवधि तक मैनेजमेंट खर्च वहन करेगी।                                                  ₹ 5 से ₹ 15 लाख तक हिस्सा, पूॅजी के लिए देंगी।                                                                                                        ₹ 2 करोड तक के ऋण बगैर किसी जमानत के उपलब्ध करवायेंगी ।                                                                    FPC में कम से कम 300 सदस्य होना आवश्यक है।                  

    संचालक मंडल मे कम से कम 5 और अधिकतम 15 सदस्य हो सकते है, जिनमें एक महिला सदस्य होना 50% किसान छोटे व सीमान्त होने चाहिए। आवश्यक है।

  13. 3 लोग और पाठ की फ़ोटो हो सकती है

न्यूज़ सोर्स : Agency