संविधान को भूलकर पथ भ्रम,मतभ्रम एवं जातिभ्रम, तथा राजनीतिक दलभ्रम में जनता
वेदों के अनुसार जीवन का स्वतंत्र निर्वहन मनुष्य का धर्म है यह सनातन हमें सीखाता है,लेकिन इसे जिस तरह से तोड़ा गया एवं अनेकों विचारों एवं मतों में बांटकर मानवता को भी बांट दिया गया। इसी का परिणाम रहा की वेंदों के असल ज्ञान को भूलकर लोग अंधभक्ति में लग गए और गुलामी के दलदल में फंस गए। आज की स्थिति में भी यह दलदल भयंकर रूप में भारतीयता की आत्मा पर चोट कर रहा है।
आजादी के पहले कालखण्ड में धर्म का उपयोग सत्ता के लिए किया गया। वेदों के ज्ञान को भूलकर लोग पाखंडियों के जाल में फंसते गए जिससे हमारा मूल विधान कमजोर होता गया। परिणाम यह हुआ की धर्म के ठेकेदारों एवं धर्म के दम पर राज करने वालों ने देश को बेच दिया। ओर भारत गुलामी के दलदल में फंस गया।
आज भी कमोबेस वैसी ही स्थिति नजर आ रही है। आदिकाल के वेद को जिस तरह लोग भूलकर गुलाम हुए वैसे ही कलयुग के वेद संविधान को लोग भूलकर पथ भ्रम,मतभ्रम एवं जातिभ्रम, तथा राजनीतिक दलभ्रम में अपने अधिकारों को खो रहे हैं। संविधान के इतनी मजबूती से लागू किये जाने के बाद भी आधी आबादी जैसे वेदों का पाठन नहीं किया वैसे की संविधान के ज्ञान से वंचित है।
भारत में आज भी धर्म परिवर्तन का कार्य जारी है। संविधान जब हमें भारतीयता प्रदान कर रहा है एवं इससे मानवता स्वतंत्र है तो फिर अलग-अलग धर्म का अब क्या मतलब है, माना कि मतलब है भी तो वह आंतरिक होना चाहिए।
आज संविधान दिवस पर संविधान की आत्मा को समझने एवं उसे अनुसरण करने का दिन है।
स्वरचित कविता
पहले बटे थे तो कटे थे
अब दलों ने बांट दिया
वेदों को भूला तुमने
अब संविधान का भी गला काट दिया
इतने दिन में इतनी असमानता
ये दलों की चालाकी है
पहले राजाओं ने की
अब भी वह दलदल बाकी है
संविधान को सजाने
भारतीयता को लाना होगा
कलयुग में संविधान श्रेष्ठ है
आत्मा से इसे अपनाना होगा