भारतीय ज्ञान परम्परा में जैविक खेती के उत्कृष्ट सूत्र , बेटियां ठान लें तो छोड़ी जा सकती है रासायनिक खेती

बड़वानी / रासायनिक खेती की दौड़ को छोड़कर जैविक खेती के पथ पर अग्रसर होना आज की अपरिहार्य आवश्यकता है. भारत जैविक खेती की कांसेप्ट को सदियों से जानता है. सैकड़ों वर्षों तक हमने प्राकृतिक संसाधनों की सहायता से खेती की है. अपने सुनहरे अतीत की और लौटना आवश्यक है. भारतीय ज्ञान परम्परा में जैविक खेती के उत्कृष्ट सूत्र हैं. उन्हें पुनः क्रियान्वित करना ज़रूरी हो गया है. रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अतिशय उपयोग मृदा को बंजर, पर्यावरण को प्रदूषित, उपभोक्ताओं को रोगग्रस्त बना रहा है और जैव विविधता के लिए ख़तरा बन गया है. स्वास्थ्य, स्वाद, समृद्धि और समावेशी विकास के लिए जैविक खेती अपनाना ज़रूरी है. ये बातें प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ़ एक्सीलेंस शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़वानी के स्वामी विवेकानन्द करियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित वोकेशनल कोर्स जैविक खेती के प्रशिक्षण सत्र में विशेषज्ञ वक्ता सुश्री वर्षा शिंदे ने कहीं. सुश्री शिंदे की स्कूलिंग एग्रीकल्चर सब्जेक्ट में हुई तथा उन्होंने मत्स्य पालन, रसायन विज्ञान और जंतु विज्ञान विषयों के साथ स्नातक एवं प्राणिकी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है. उनके उद्बोधन से विद्यार्थियों को जैविक खेती खासकर वर्मी कम्पोस्टिंग के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हुईं. आयोजन प्राचार्य डॉ. वीणा सत्य और डॉ. के. एस. बघेल के मार्गदर्शन में किया गया.
जैविक उर्वरक हैं सस्ते और सुलभ
सुश्री वर्षा शिंदे ने कहा कि जैविक उर्वरकों का निर्माण करना सरल और सुलभ है. इनकी लागत भी तुलनात्मक रूप से कम होती है. बाजार में भी जैविक उर्वरक उपलब्ध हैं, जिन्हें खरीदकर खेतों में उपयोग कर सकते हैं. जैविक उर्वरकों में वर्मी कम्पोस्ट, वर्मी वाश, फार्म यार्ड मेन्योर, गोबर खाद, हरी खाद, खली खाद, कोकोपीट, जीवामृत, संजीवक, पंचगव्य, राइजोबियम, माइकोराइजा, एजोटोबेक्टर आदि शामिल हैं. वर्मी कम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद तो किसानों के लिए एक तरह से वरदान है. इसके लिए किसान अपने खेत पर वर्मी कम्पोस्ट निर्माण यूनिट तैयार कर सकते हैं. मिट्टी, गोबर, नारियल के रेशे, अखबार के टूकड़े,किचन अपशिष्ट, पत्तियों आदि की परतें बनाकर केंचुए छोड़े जाते हैं. ये केंचुए उपजाऊ वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण करते हैं. पर्याप्त नमी बनाए रखना आवश्यक है.
युवाओं की बढ़ रही है रूचि
कार्यकर्ता वर्षा मुजाल्दे और कन्हैयालाल फूलमाली ने बताया कि जैविक खेती को समझने में युवाओं की रूचि बढ़ रही है. वे विभिन्न प्रायोगिक और रचनात्मक कार्यों के माध्यम से जैविक खेती से जुड़ रहे हैं. करियर सेल का पहला लक्ष्य युवाओं का जैविक खेती में इंटरेस्ट बढ़ाना है. उन्हें जागरूक करना है कि रसायन युक्त खेती कितनी विषाक्त और भयावह है. जैविक खेती जीवन का आधार है. एक बार जागरूकता और रूचि उत्पन्न हो जाने पर किसान परिवारों से सम्बन्धित युवा अपने खेतों तक जैविक खेती के सिद्धांतों को लेकर जायेंगे. इसमें समय लग सकता है, लेकिन निरंतर प्रयास से परिणाम अवश्य ही आएंगे. खुशी की बात है कि छात्राएं भी जैविक खेती में बढ़-चढ़कर रूचि ले रही हैं. आज की कार्यशाला छात्राओं के लिए ही थी. इसमें दो सौ से अधिक छात्राएं उपस्थित रहीं.