भारत में बाल विवाह के खात्मे में कानूनी कार्रवाइयों और अभियोजन की अहम भूमिका को उजागर करने वाली एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए मध्यप्रदेश में रायसेन जिले के कृषक सहयोग संस्थान के निदेशक डॉ एच बी सेन ने कहा कि कानूनी कार्रवाइयां और कानूनी हस्तक्षेप ही 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। संस्था ने वर्ष 2023-24 के दौरान रायसेन में 173 बाल विवाह रुकवाए हैं। ‘टू वार्ड् सजस्टिस एन्डिंग चाइल्ड मैरेज’शीर्षक से जारी यह रिपोर्ट इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की शोध टीम ने तैयार की है। 
कृषक सहयोग संस्थान और चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड 2030 तक देश से बाल विवाह के खात्मे के लिए काम कर रहे बाल विवाह मुक्त भारत के सहयोगी संगठन के रूप में साथ हैं। संस्थान के जिला समन्वयक अनिल भवरे ने बताया कि संस्था के प्रयासों से रायसेन औए सागर की ग्राम सभाओं में 300 गांव बाल विवाह मुक्त घोषित किये गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे -5 केअनुसार रायसेन  में बाल विवाह की दर 12.6 थी। जब कि राष्ट्रीयऔसत 23.3 है।संगठन ने सरकार से अपील की कि वह अपराधियों को सजा सुनिश्चित करें,ताकि बाल विवाह के खिलाफ लोगों में कानून का भय पैदा हो सके।

लंबित मामलों के निदान में लगेंगें 19 साल-
आइसीपी की रिपोर्ट- ‘टू वार्ड्स जस्टिस -इंडिंग चाइल्ड मैरेज’ बाल विवाह के खात्मे के लिए न्यायिक तंत्र द्वारा पूरे देश में फौरी कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।रिपोर्ट के अनुसार 2022 में देश भर में बाल विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए,जिस में सिर्फ 181 मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा हुआ।यानी लंबित मामलों कीदर 92 प्रतिशत है।मौजूदा दर के हिसाब से इन 3,365 मामलों के निपटारे में 19 साल का समय लगेगा।
बाल विवाह रोकने में असम की रणनीति असरकारी-
बाल विवाह की रोक थाम के लिए असम सरकार की कानूनी कार्रवाई पर जोर देने की रणनीति के शानदार नतीजे मिले हैं और इस मॉडल की सफलता को देखते हुए इसे पूरे देश में आजमाया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार  2021-22  से 2023-24 के बीच असम के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है जो बाल विवाह के खात्मे में कानूनी कार्रवाई की अहम भूमिका का सबूत है।इस अध्ययन में राष्ट्रीय अपराधरि कॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और असम के 20 जिलोंके 1,132 गांवों से आंकड़े जुटाए गए जहां कुल आबादी 21 लाख है,जिनमें 8 लाख बच्चे हैं।नतीजे बताते हैं कि बाल विवाह के खिलाफ जारी असम सरकार केअभियान के नतीजे में राज्यके 30 प्रतिशत गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग चुकीहै जबकि 40 प्रतिशत उन गांवों में इसमें उल्लेखनीय कमी देखने को मिली जहां कभी बड़े पैमाने पर बाल विवाह का चलन था।

कानूनी हस्तक्षेप प्रभावी-
रिपोर्ट के तथ्यों और आंकड़ों का हवाला देते हुए संगठन ने कहा कि बाल विवाह के मामलों में सरकार की मदद से कानूनी हस्तक्षेप यहां भी काफी प्रभावी साबित हुआ है। कृषक सहयोग संस्थान के निदेशक डॉ एच बी सेन ने कहा, “इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की यह रिपोर्ट साफ तौर से कानूनी कार्रवाई और अभियोजन की अहमियत को रेखांकित करती है।हम लोगों में बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता के प्रसार के साथ यह सुनिश्चित करने के अथक प्रयास कर रहे हैं कि परिवारों और समुदायों को समझाया जा सके कि बाल विवाह अपराध है।साथही, जहां बाल विवाहों को रुकवाने के लिए समझाने बुझाने का आसर नहीं होता, वहां हम कानूनी हस्तक्षेप का भी इस्तेमाल करते हैं।कानून पर अमल बाल विवाह के खात्मे की कुंजी है और हम सभी को साथ मिलकर इससर अमल सुनिश्चित करने की जरूरतहै।


आईसीपी,बाल विवाह मुक्त भारत का गठबंधन सहयोगी है जिसने 2022 में राष्ट्र व्यापी अभियान की शुरुआत की और इसके 200 सहयोगी संगठन भुवन ऋभु की बेस्ट सेलर किताब “ व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन:टिपिंग प्वाइंट टू एंड चाइल्डमैरेज”में सुझाई गई कार्य योजना पर अमल करते हुए पूरे देश में काम कर रहे हैं।सीएमएफआई अपने काम काज में मुख्य रूप से कानूनी हस्तक्षेपों और परिवारों एवं समुदायों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में समझाने बुझाने के उपायों का इस्तेमाल करता है।सीएमएफआई के सहयोगी संगठनों ने कानूनी हस्तक्षेपों की मदद से 2023-24 में 14,137 पंचायतों की मदद से 59,364 बाल विवाह रुकवाए।

बाल विवाह की रोकथाम के लिए असम सरकार की कानूनी रणनीति के राज्य में कारगारनतीजों की चर्चा करते हुए बाल विवाह मुक्त भारत के संयोजक रविकांत ने कहा, “इस रिपोर्ट से यह साबित होता है कि बाल विवाह के खात्मे में कानूनी कार्रवाइयों की सबसे निर्णायक भूमिका है और असम मॉडल सही दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।अब हमें इसे आगे ले जाते हुए इसे पूरे देश में लागू करने की जरूरत है। ताकि बच्चों के खिलाफ अपराधों का अंत किया जा सके।”
बाल विवाह के मामलों में 11 फीसदी दोषसिद्धी-
रिपोर्ट के तथ्यों और आंकड़ों की चर्चा करते हुए रविकांत ने आगे कहा, ”इस तरह के मामलों में सजा की बेहद मामूली दर चिंता का विषय है। वर्ष 2022 में बाल विवाह के सिर्फ 11 प्रतिशत मामलों में दोष सिद्धि हुई जबकि इसी अवधि में बच्चों के खिलाफ अन्य अपराधों में दोष सिद्धि की दर 34 प्रतिशत थी।यह बाल विवाह के मामलों में गहन जांच और अदालती सुनवाई की जरूरत को उजागर करता है।यह एक निवारक के रूप में काम करने के अलावा समुदायों को यह भी संकेत देगा कि बाल विवाह ठोस कानूनी परिणामों के साथ एक गंभीर अपराध है।
रिपोर्ट में दो अहम सिफारिशें की गई हैं जिसमें लंबित मामलों के निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन के अलावा बाल विवाह को बलात्कार की आपराधिक साजिश के बराबर मानते हुए इसमें सहभागी माता-पिता, अभिभावकों और पंचायत प्रतिनिधियों के लिए सजा को दो गुना करने का सुझाव भी शामिल है।

कृषक सहयोग संस्थान ने वर्ष 23-24 के दौरान रुकवाए 173 बाल विवाह     मौजूदा दर के हिसाब से बाल विवाह के लंबित मामलों के निपटारे में भारत को लगसकते हैं 19 साल संस्था के प्रयासों से रायसेन औए सागर की ग्राम सभाओं में 300 गांव बाल विवाह मुक्त घोषित किये गए।

न्यूज़ सोर्स : Anil Bhavre