संदीप सोनी- अनुपपूर 

मप्र के आदिवासी बहुल इलाकों में सड़कों के बूरे हाल है। आदिवासियों के नाम पर करोड़ो डकार लेने वालों को इनकी सुध लेना चाहिए। 

अनुपपुर  - ग्राम अमिलिहा इस तरह ढोह कर मरीज ले जाना प्रशासनिक लापरवाही है... और यह मरीज हैं उन शोषित, भोलेभाले आदिवासी वर्ग की है जो सरकारी तंत्र के दांवपेचों से अनभिज्ञ है.क्या ऐसा हैं हमारा मप्र ,इसे मानवीय त्रासदी नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए एक महीने के भीतर झकझोर कर रख देने वाली ऐसी तस्वीरें आप दिन देखने को मिल ही जाती है। यह इस बात को प्रमाणित करती हैं कि आज भी दूर अंचलों में रहने वाले आदिवासी विकास के कथित सुनहरे आसमान के नीचे खुद को वंचित समझा रहे है। मरीज को ले जाने तक की सड़कें हमारे माननीय नहीं बनवा पा रहे हैं.. खेद हैं

हमें खेद है...

विडंबना यह है कि विगत महीनों में ऐसी कई घटनाओं को राज्य शासन ने गंभीरता से नहीं लिया है। निस्सदेह, मौजूदा परिस्थितियों में जरूरी है कि ऐसे निचले तबके को बुनियादी सुविधाएं बेहतर ढंग से सुसज्जित करने के तौर-तरीकों पर भी युद्धस्तर पर काम करने की जरूरत है। जरूरत हैं अच्छे संसाधनों की साफ सुथरी सड़कों की जो इस तबके को मुख्यधारा में लाने के लिए कारगर हो मरीज को कंधे हमें खेद है...
ग्राम अमिलिहा यह है कि विगत महीनों में ऐसी कई घटनाओं को राज्य शासन ने गंभीरता से नहीं लिया है। निस्सदेह, मौजूदा परिस्थितियों में जरूरी है कि ऐसे निचले तबके को बुनियादी सुविधाएं बेहतर ढंग से सुसज्जित करने के तौर-तरीकों पर भी युद्धस्तर पर काम करने की जरूरत है। जरूरत हैं अच्छे संसाधनों की साफ सुथरी सड़कों की जो इस तबके को मुख्यधारा में लाने के लिए कारगर हो सकें..

न्यूज़ सोर्स : ipm