लेखक-केएन गोविंदाचार्य {राष्ट्रीय चिंतक और विचारक} 

 उत्तर भारत... जिसे अंग्रेजीदां लोग काउ बेल्ट अर्थात गायों की पट्टी कहते हैं, यहां गायों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। लेकिन जब तुलना दक्षिण भारत से हो तो उत्तर भारत के हालात बेहतर लगते हैं। यहां अभी भी समाज का एक बड़ा वर्ग गोरक्षा को लेकर सचेत है। गोशालाओं का व्यापक नेटवर्क अभी भी उत्तर भारत में सक्रिय है। दुर्भाग्य-वश दक्षिण भारत की स्थिति गोरक्षा के मामले में बहुत ही निराशाजनक है। उसमें भी सबसे खराब मामला केरल का है। केरल भारत का एक ऐसा राज्य है, जहां गोमांस खाने का चलन बहुत व्यापक हो चुका है। वहां सरकार गोवध को कानूनी संरक्षण प्रदान करती है और बाजारों में खुले-आम गोमांस बेचा जाता है।

लेकिन इसी केरल के #कोल्लम जिले में श्याम कुमार भी हैं जिन्होंने गोसेवा का एक ऐसा प्रतिमान स्थापित किया है जिसकी बराबरी करना किसी भी गोशाला के लिए आसान नहीं है। कई वर्षों तक खाड़ी देशों में इंजीनियर के रूप में काम करने के बाद श्याम जी ने 2014 में केरल वापस लौटने का फैसला किया। लौटकर उन्होंने अपने गांव में दो एकड़ जमीन खरीदी और वहीं अंबाडी गौशाला के नाम से अपनी नई यात्रा प्रारंभ की। एक अच्छे-खासे मासिक वेतन को छोड़कर गांव में गोशाला खोलने का निर्णय उनके घर-परिवार और मित्रों को बहुत अटपटा लगा। सबको लगा कि यह एक सनक है जो जल्दी ही दूर हो जाएगी। लेकिन श्याम जी की लगन ऐसी थी कि वे इस काम में दिनो-दिन और रमते गए।

एक #गोपालक के रूप में श्याम जी की पिछले 10 वर्षों की यात्रा आसान नहीं रही है। फिर भी वे अपने काम से प्रसन्न हैं। उनकी प्रसन्नता इस बात में है कि उन्होंने गोशाला संचालन का एक ऐसा माडल विकसित किया है जो दान पर नहीं बल्कि उद्यम पर आधारित है। सबसे बड़ी बात है कि इस उद्यम का आधार गाय के दूध की बिक्री नहीं बल्कि गो आधारित #कृषि और कुटीर उद्योग है। यही कारण है कि वे केरल की दुर्लभ प्रजाति की बिचुर गाय को भी सहज रूप से पाल रहे हैं जो बहुत कम दूध देती है।

#अंबाडी_गोशाला दो एकड़ के एक प्राकृतिक कृषि फार्म का हिस्सा है। आज यहां घरेलू उपयोग और स्वास्थ्य संबंधी 70 से अधिक प्रकार के #आयुर्वेद सम्मत उत्पाद तैयार किये जाते हैं जिनका विपणन पूरे देश में होता है। डायबिटीज और मासिक धर्म संबंधी विकारों में अंबाडी गोशाला के उत्पाद विशेष रूप से कारगर साबित हुए हैं। कोई भी व्यक्ति दो हजार रुपए देकर अंबाडी गौशाला का वितरक बन सकता है। इस समय ऐसे 180 वितरक इसके लिए काम कर रहे हैं। आर्गेनिक सामान बेचने वाले स्टोर्स में भी अंबाडी गौशाला के उत्पादों की खूब मांग रहती है।

अपनी व्यावसायिक सफलता के बावजूद श्याम जी का मानना है कि अंबाडी गोशाला देश की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती। वे चाहते हैं कि देश भर में गोशालाओं का एक ऐसा स्वावलंबी नेटवर्क खड़ा हो जो स्थानीय जरूरतों को स्वयं पूरा करे। इसके लिए वे गोपालकों को प्रशिक्षित करने पर जोर देते हैं। अच्छी बात यह है कि अब तक उनके यहां से 10,000 से अधिक लोग प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। इनमें केरल के कृषि एवं डेयरी विभाग के लोगों के साथ-साथ विभिन्न विश्वविद्यालयों के कृषि स्नातक और विविध प्रकार के गो उद्यमी शामिल हैं।

जो लोग कभी श्याम जी का मजाक उड़ाते थे, वे आज उनकी प्रशंसा करते हैं। उनकी देखा देखी केरल में कई लोगों ने गोपालन को अपनाया है। इनमें कम्युनिस्ट पार्टी के कई कट्टर कार्यकर्ता भी शामिल हैं। केरल में यह सब होते देख कर सुखद अनुभूति होती है। मन के कहीं कोने में एक भरोसा पैदा होता है। लगता है कि आज नहीं तो कल पूरे भारत में गो आधारित कृषि और ग्रामोद्योग के ढेर सारे माडल खड़े होंगे और इस क्षेत्र में भारत पूरी दुनिया को एक नई राह दिखाएगा।

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