आजादी के 70 साल बाद भी बेचने की कला नहीं सीख पाया किसान
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरा मोती मेरे देश की धरती......... फिल्म उपकार का यह गीत किसानों के आत्मबल बढ़ाने के लिए सांकेतिक जरूर है लेकिन आज धरती से साेना उगाने वाले किसान के सोने की मेन्यूफेक्चरिंग किसी और के हाथ में है। किसान बंफर फसल उगा रहा है लेकिन उसकी फसल का फायदा या तो राजनीति दल अपनी राजनीति चमकाने में कर रहे हैं या फिर हिम्मतवर किसान की मेहनत पर बिचैलियों ने अब तक डाका डाल रखा है। ।
सरकारे किसानों को बेचने की कला क्यों नहीं दे रही
एक जमाना था जब किसान और जमीदारों की लड़ाई लड़ी गई अब जमाना पूंजीपतियों एवं किसानों के बीच लड़ाई लड़ने जैसा प्रतीत हो रहा है। किसानों को विनिर्माण एवं बाजार तक ब्राण्ड वेल्यू में उनके उत्पाद बेचे जाने की कला से दूर रखा गया है। सरकारें किसानों से उत्पाद बढ़ाने को लेकर बेशक अच्छा प्रयास कर रही हैं लेकिन किसान के उत्पाद की दुर्गति तब होने लगती है जब उसे बाजार नहीं मिलता यह उसका ग्लोब्लाइजेशन बाजार उसके हाथ में नहीं होता।
पीडीएस बेगारेपन का दलदल
कच्चे उत्पाद को मूल्यवान पदार्थ में बदलकर वाणिज्य व्यापार को बढ़ाया जा सकता है। पर वर्तमान में देश में क्या हो रहा है, सरकार किसान के उत्पाद को खरीदकर उसे ही पीडीएस के रूप में परोस रही है। सरकारों की इस नीति से खाद्य पदार्थ की गुणवक्ता एवं श्रम की उपलब्धी पर असर पड़ा है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग न के बराबर हैं एवं देश में अधिक मूल्यवान कृषि उत्पाद पर एक विशेष वर्ग का कब्जा होकर क्षेत्रीय असमानताओं को बढ़ावा मिल रहा है।
हर जिले में लगे एक विनिर्माण यूनिट
भारत के समावेशी विकास का एक ही सुपर माडल है हर ग्राम में एक विनिर्माण यूनिट को प्रारंभ किया जाए। एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत चिन्हित उत्पाद की मेन्यूफेक्चरिंग किसानों के हाथ में सौंपा जाए। किसाना उत्पाद संगठनों को कागजों पर न चलाकर उन्हे और मजबूत किया जाए।