भोपाल । विधानसभा चुनाव में बड़े-बड़े वादे करके और गारंटियां देकर भाजपा ने बड़ी जीत तो हासिल कर ली, लेकिन उसके बाद सरकार और संगठन लोकसभा चुनाव के मोड में आ गए। इस कारण पिछले पांच माह से सरकार कोई विशेष काम नहीं कर पाई है। ऐसे में चार जून को आचार संहिता हटने के साथ ही शासन-प्रशासन पूरी तरह काम में जुट जाएगा। ऐसे में प्रदेश सरकार के मंत्रियों की पहली जिम्मेदारी यही रहेगी की पार्टी ने जिन वादों और गारंटियों की घोषणा की है उसे प्राथमिकता से अमलीजामा पहनाया जाए। इसके लिए मंत्री आचार संहिता हटते ही फुलफॉर्म में दिखेंगे।
गौरतलब है की विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई गारंटियों की घोषणा की है। वहीं पार्टी ने अपने संकल्पपत्र में कई घोषणाएं की है। जनता ने इन्हें वोट देकर जीता दिया है, अब सरकार और मंत्रियों की बारी है कि वे जनता के विश्वास पर खरे उतरे। इसलिए आचार संहित हटने के साथ ही सरकार का पूरा फोकस विकास कार्यों पर रहेगा। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि आने वाले समय में योजनाओं, परियोजनाओं और घोषणाओं को पूरा करने पर सरकार का जोर रहेगा।
मंत्रियों पर बेहतर प्रदर्शन का दबाव
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव की मतगणना चार जून को हो जाएगी। लगभग तीन माह आचार संहिता का दौर था। इसके पहले ढाई माह सरकार को काम करने का अवसर मिला। इसमें मंत्री अपना कोई खास प्रदर्शन नहीं दिखा पाए। आचार संहिता हटने के बाद मंत्रियों पर बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव बढ़ जाएगा। इसकी वजह यह है कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए छह माह बीत जाएंगे। सरकार को विधानसभा चुनाव के समय हुए घोषणाओं को अमल में लाना है और पार्टी की ओर से दी गई गारंटियों को अमलीजामा पहनाना है। इसकी झलक जुलाई में प्रस्तुत होने वाले मोहन सरकार के पहले पूर्ण बजट में भी दिखाई देगी। कैबिनेट में प्रहलाद सिंह पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, राकेश सिंह जैसे वरिष्ठ मंत्री हैं। ऐसे में इन पर दबाव रहेगा कि मोहन सरकार के प्रदर्शन को कैसे बेहतर बनाया जा सके। मप्र में मोहन सरकार के गठन के छह महीने 13 जून को पूर्ण होंगे।


खजाने का बेहतर प्रबंधन चुनौती
आचार संहिता लगने से पहले पहले चरण में मुख्यमंत्री यादव ने अलग-अलग विभाग और संभाग स्तरीय बैठक कर प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने का प्रयास किया है। अब जून-जुलाई में मोहन सरकार पहला बजट विधानसभा में पेश करेगी। चुनाव बाद बजट का प्रबंधन ही मप्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती बना बनेगा। आने वाले दिनों में मोहन सरकार पर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में किए गए वादों को पूरा करने का दबाव रहेगा इसलिए खजाने का बेहतर प्रबंधन भी मोहन कैबिनेट के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले लागू आचार संहिता के दौरान ही मप्र सरकार को तीन बार में पांच हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ा था। मध्य प्रदेश सरकार ने 23 अक्टूबर को एक हजार करोड़ रुपये, 31 अक्टूबर को सरकार ने दो हजार करोड़ रुपये और 28 नवंबर को दो हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। राज्य सरकार पर मार्च 2023 तक कुल 3,31,651.07 करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ चुका था। इस वित्तीय वर्ष में अब तक राज्य सरकार 18 हजार करोड़ रुपये का कर्ज ले चुकी है यानी मप्र पर कुल कर्ज साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। हालांकि सरकार का दावा है कि प्रति वर्ष रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआइ) द्वारा निर्धारित सीमा तक कर्ज लिया जा सकता है। राज्य सरकार इस सीमा के अंदर ही बाजार से कर्ज लेती है। प्रदेश की इस आर्थिक स्थिति में सुधार कैसे होगा, यह मंत्रियों को ही सोचना होगा। आमदनी के नए स्रोत कैसे तैयार किए जाएं, खर्चों में कैसे कटौती की जाए, यह मोहन सरकार को ही तय करना है। चार जून के बाद मोहन सरकार के सामने बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती है तो दूसरी तरफ सरकार की दशा-दिशा भी तय करना है। मध्य प्रदेश पर ऋण का बोझ भी निरंतर बढ़ रहा है। लाड़ली बहना जैसी भारी भरकम खर्च वाली योजनाओं ने हर महीने 16 सौ करोड़ रुपए का खर्च बढ़ा दिया है।


वरिष्ठ मंत्रियों पर अधिक भार
भाजपा भी मप्र के सामने आने वाली इन्हीं चुनौतियों से वाकिफ थी। यही वजह है कि पार्टी ने कैबिनेट का स्वरूप ऐसा तय किया, जिसमें सामूहिकता का भाव है, व्यक्ति केंद्रित कैबिनेट नहीं है। कैबिनेट को एक सामूहिक चेहरा बनाया गया है। इसके प्रमुख डॉ. मोहन यादव हैं, तो कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह और राव उदय प्रताप सिंह जैसे बड़े चेहरे कैबिनेट के चेहरे हैं। अब मध्य प्रदेश में वित्तीय प्रबंधन का सारा दारोमदार अनुभवी और सुलझे हुए उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के हाथों में है। विजयवर्गीय को शहरों के चेहरे बदलने का प्रयास करना है तो प्रहलाद पटेल को ग्रामीण विकास के साथ प्रदेश को आगे बढ़ाना है। राकेश सिंह के जिम्मे सडक़ निर्माण की परियोजनाओं के लिए धन का इंतजाम करना है। ऐसे वरिष्ठ मंत्रियों पर बेहतर परफारमेंस का बेजा दबाव है। ये सभी मंत्री भी अनुभवी हैं। कुछ सांसद रहने के कारण केंद्र सरकार में बेहतर पकड़ रखते हैं, तो कुछ राष्ट्रीय स्तर पर काम करने से। लोकसभा चुनाव के बाद अब किसी तरह की बाधा नहीं है इसलिए इन मंत्रियों के कंधों पर ही केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के बेहतर संचालन की जिम्मेदारी भी है। ऐसे में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में किए गए वादों को पूरा करने के लिए मंत्रियों को सामूहिकता के साथ जुटना होगा।