C-20- 2030 तक भारत में NGO से सामाजिक बदलाव एवं समावेशी विकास का लक्ष्य
योगेंद्र पटेल-सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक
भारत सरकार ने 2030 तक देश के सामुदायिक विकास का बड़ा लक्ष्य रखा है। सरकार की मंशा अनुसार समाज के विचारों की श्रृंखला को विकास गतिविधियों में शामिल करना है। भारत इस वक्त जी-20 देशों की अध्यक्षा कर रहा है, ऐसे में सी-20 मतलब सिविल सोसायटियों को इस एजेण्डे में शामिल करना मजबूरी हो गया है। सिविल-20 , इंडिया 2023 के लक्ष्य अनुरूप मानवीय विकास को प्राथमिकता देना है, सभी राज्यों को निर्देषित किया गया है कि वे समाज सुधार के लिए विभिन्न कार्यसमूहों का निर्माण करें।
मप्र सरकार इस को लेकर बड़ा प्रयास कर रही है। समाज को जोड़ने के प्रयास में विविधता में एकता को लेकर एक बड़ा समावेशी प्रयास कहा जा सकता है। मप्र सरकार के उपक्रम जन अभियान परिषद को इसके समन्वय की जिम्मेदारी दी गई। “समाजशाला” कार्यक्रम के जरिये एक बड़े जमीनी नेटवर्क को सामाजिक समानता के लिए प्रशिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।
किस बात का हो रहा चिंत
नागरिक समानता
लैंगिक समानता
दिव्यांगता
सामाजिक जागरूकता
धार्मिक सुधार
राजनीतिक सुधार
क्यों जरूरी है ये सब ?
वर्तमान समय में देश में कई भ्रांतियां फैलाकर सवाल करने की शक्ति एवं समुदाय के माध्यम से नीति बनाने की शक्तियों का रूपांतरण किया जा रहा है। नागरिक आधारित आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान सरकारों एवं सामाजिक,राजनीतिक,धार्मिक तंत्र ने देश के आर्थिक समावेशी डेवल्पमेंट में बड़ी बाधा डाली है। एक बड़ा सामुदायिक कार्य समूह जो विकास गतिविधि में शामिल हो जाना था भीड़ का हिस्सा बनकर अपना समय गवा रहा है।
सामुदायिक बदलाव में जानकारों की राय
दिव्यांगता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और दुनिया में 1.3 अरब लोग दिव्यांग हैं। दिव्यांगता समावेशन जी-20 के साथ-साथ सी-20 में भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और इन्हें मुख्यधारा से बाहर रखने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। उन्होंने कहा कि दिव्यांगता को देखते हुए एक कल्याणकारी दृष्टिकोण के रूप में बदलाव की आवश्यकता है और इसे एक ऐसे दृष्टिकोण के रूप में देखने की आवश्यकता है जहां लोग अर्थव्यवस्था में उत्पादकता के लिए योगदान दे रहे हों।
निधि गोयल - समाजसेवी
सी-20 सूत्रवाक्य के अनुसार प्रकाश-पुंज हैं, लेकिन इसके साथ ही, हम में से कई प्रकाशहीन भी हैं। बेजुबानों और अशक्तों की सहायता किए जाने की जरूरत है और उसके बाद उन्हें समान अवसर भी दिए जाएं। जरूरत इस बात की है कि मानसिक स्वास्थ्य को सुगम बनाने के लिये उसे कलंक की परिधि से बाहर निकाला जाये। उन्होंने कहा कि सेवा से विश्व बेहतर बनेगा। उन्होंने कहा कि “मैं मानव हूं” के प्रति जागरूक होना बहुत बड़ा कार्य है।
गैबरेला राइट -समाजसेवी
सतत विकास लक्ष्य पीछे छूट रहे हैं और इसके लिये कोविड-19 के संकट को बहाना नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि आधिकारिक सरकारी आंकड़ों के अलावा नागरिक-आधारित आंकड़ों को भी शामिल किया जाना चाहिये।
ज्योत्सना मोहन -समाजसेवी
मूल निवासी ही लोकतंत्र के असली रचनाकार हैं। लोकतंत्र को राजनीतिक उपकरण के तौर पर नहीं, बल्कि विकास की आवश्यकता के रूप में देखा जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि विश्व उपार्जन के अभाव से नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति के अभाव से पीड़ित है। लोकतंत्र का अर्थ सोच-विचार का लोकतांत्रीकरण होता है। लोकतंत्र लोगों को समझने के बारे में है। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का उद्धरण दिया, जिन्होंने हाल में कहा था, “नागरिक मेरी सरकार का नया मंत्र है।” लोकतंत्र और विकास को समझने के लिए भारतीय अभिव्यक्ति को फिर से हासिल करने का समय आ गया है।
डॉ. आर. बालासुब्रमण्यम-समाजसेवी
सामाजिक संगठन सिर्फ एक समाज के विकास के लिए न सोचें, सर्व समाज के विकास की सोच से भारत वैष्विक आधार पर सिरमौर बनेगा,हमें मानव समाज के समावेषी विकास के बारे में सोचने की आवश्यकता है,यही हमारी लोकतंत्र की खूबसुरती है।
निवेदिता भिडे़- समाजसेवी