गुलमनिया बाई हर्रई के ग्राम छाता के संघर्ष की कहानी
छिंदवाड़ा हर्रई /मध्यप्रदेश सरकार और म.प्र. डे.राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने ग्रामीण महिलाओं के जीवन को बदलने की जो पहल की है, वह सराहनीय है। यह मिशन महिलाओं को न केवल आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि उन्हें अपने सपनों को साकार करने की शक्ति भी देता है। छिंदवाड़ा जिले के विकासखंड हर्रई के ग्राम छाता की निवासी गुलमनिया बाई मर्सकोले की प्रेरक कहानी, सरकार और विभाग के इन प्रयासों का जीवंत उदाहरण है।
"सही मार्गदर्शन और सहयोग से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।"
गुलमनिया बाई का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। विवाह के बाद पति गणेश प्रसाद मर्सकोले के साथ उनकी गृहस्थी की शुरुआत हुई, लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के कारण परिवार को कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। बच्चों की पढ़ाई और घर की जरूरतें पूरी करना उनके लिए बेहद मुश्किल था। सरकारी योजनाओं की जानकारी के अभाव और अधिकारियों से संपर्क न होने के कारण उन्हें किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था।
"जो लोग अपने हालात से लड़ने का साहस रखते हैं, उनके लिए हर रास्ता आसान हो जाता है।"
समूह में जुड़ने के बाद का बदलाव- गुलमनिया बाई का जीवन तब बदला जब म.प्र.डे.रा.ग्रा.आजीविका मिशन के तहत उनके गांव में अमन आजीविका स्व-सहायता समूह का गठन हुआ। 8 जून 2019 को इस समूह से जुड़कर उन्होंने एक नई शुरुआत की। समूह के माध्यम से उन्हें बैंक से 1 लाख रुपये का व्यक्तिगत ऋण प्राप्त हुआ। इस राशि का उपयोग कर उन्होंने कृषि विभाग के सहयोग से ड्रिप इरिगेशन और पॉली मल्चिंग तकनीक के जरिए सब्जी उत्पादन का कार्य शुरू किया। उन्होंने टमाटर, मिर्च और बैंगन जैसी फसलों की खेती की।
इसके साथ ही, उन्होंने सीएलएफ से 2 लाख रुपये का ऋण लिया और कोदो-कुटकी उत्पादन का कार्य भी शुरू किया। इन उत्पादों की बिक्री विकासखंड हर्रई और जिले के अन्य हिस्सों में की जाने लगी, जिससे उनकी वार्षिक आय 2-3 लाख रुपये तक पहुंच गई।
"अगर मेहनत सच्चे दिल से की जाए, तो सफलता जरूर कदम चूमती है।"
सरकार और विभाग का योगदान- गुलमनिया बाई कहती हैं, "मुझे आत्मनिर्भर बनाने और मेरे परिवार की जिंदगी बदलने में सरकार और आजीविका मिशन का बड़ा योगदान है। मिशन के अधिकारियों के मार्गदर्शन और सहायता से ही मैं अपनी आर्थिक स्थिति सुधार पाई हूं। उनके प्रयासों के बिना यह संभव नहीं था।"
आज गुलमनिया बाई का परिवार खुशहाल है। उनकी मासिक आय लगभग 15,000 रुपये और परिवार की कुल आय 20,000 रुपये से अधिक पहुंच गई है। पहले जो परिवार बच्चों की स्कूल फीस तक नहीं भर पाता था, वह आज आत्मनिर्भर बन चुका है। गुलमनिया बाई न केवल स्वंय आर्थिक रूप से सशक्त हुईं, बल्कि अपने पति को भी व्यवसाय में सहयोग कर एक सफल गृहणी और गांव की अन्य महिलाओं के लिये भी प्रेरणा स्त्रोत बन गई है।