मनुष्य के जीवन में कई घटनाएं होती है, शायद नियती का यही विधान है कि वह कुछ जीवों को इतिहास के पन्नों पर अमर करने ऐसे घटनाक्रम उत्पन्न करती हैं। ऐसी एक घटना मध्यप्रदेश की धार नगरी  की है।  यहां राजा पदमसेन और रानी मैनावती के यहां पुत्र गोपीचंद तथा पुत्री चंद्रावल का जन्म होता है।

 विवाह के बाद गोपीचंद को अपनी पत्नी से पुत्र की प्राप्ति नहीं होती। गोपीचंद के माता-पिता उसका दूसरा विवाह कर देते हैं। लेकिन दूसरी पत्नी से भी पुत्री ही होती है। इस तरह राजा पदमसेन और रानी मैनावती गोपीचंद का सोलह बार विवाह करवाते हैं किंतु दुर्भाग्यवश गोपीचंद को किसी भी पत्नी से पुत्र प्राप्त नहीं होता बल्कि उसके घर में बारह पुत्रियां जन्म लेती हैं। रानी मैनावती अपने भाई भरतरी को बुलाकर गोपीचंद के पुत्र प्राप्ति के लिए विचार विमर्श करती है।


भरतरी रानी मैनावती को कहता है कि गोपीचंद को पुत्र की प्राप्ति के लिए राजमहल छोड़कर जंगलों में फकीरों की तरह रहकर तपस्या करनी होगी। रानी मैनावती पहले इंकार कर देती हैं, लेकिन भरतरी के समझाने पर वह गोपीचंद को जंगल में जाकर तपस्या करने को कहती है।

गोपीचंद अपनी सोलह रानियों से जाने की इजाजत लेता है और जंगल में चला जाता है। जंगल में बैठ कर गोपीचंद हर रोज ईश्वर की उपासना करता है तथा संध्याकाल के समय में भीख मांगने निकल पड़ता है। कई दिन बीतने के पश्चात एक दिन गोपीचंद अपनी बहन चंद्रावल के ससुराल पहुंच जाता है।

चंद्रावल उसे पहचान लेती है। भाई को फकीर के भेष में देखकर चंद्रावल को दिल का दौरा पड़ता है और उसकी मृत्यु हो जाती है। अपनी बहन को मरा देखकर गोपीचंद बहुत रोता-बिलखता है। बहन को पुन: जीवित करने के लिए गोपीचंद गुरु गोरखनाथ जी के पास पहुंचता है।

गोपीचंद गुरु गोरखनाथ को सारी कहानी बताता है तथा अपनी बहन को पुन: जीवन दान देने की प्रार्थना करता है। गुरु गोरखनाथ गोपीचंद का अपनी बहन के प्रति अटूट स्नेह देखकर चंद्रावल को पुन: जीवित करने के लिए गोपीचंद के साथ चल देते हैं। गुरु गोरखनाथ के स्पर्श से चंद्रावल को जीवन दान मिल जाता है। चंद्रावल गुरु गोरखनाथ से प्रार्थना करती है कि गोपीचंद को पुत्रप्राप्ति का वरदान भी दे दीजिए।

गुरु गोरखनाथ भाई-बहन के आपसी प्रेम से प्रसन्न होकर गोपीचंद को पुत्र के साथ-साथ अमरता का वरदान भी दे देते हैं। गोपीचंद अपनी बहन से विदा लेकर राजमहल लौट आता है। इस तरह गोपीचंद की जीवन खुशहाल हो जाता है।  

 इस तरह आज से ही नहीं आदिकाल से ही भाई-बहन के प्यार के आगे कोई नहीं जीत सका है। दुनिया के किसी भी कोने में भाई क्यों न रहे उसके दिल में बहन हमेशा बसी रहती है। आज राखी के दिन आप भी इन रिश्तों की डोर को किसी धन-दौलते से ना तौले,क्योंकि भाई बहन का प्यार वह अमृत डोर है जो न टूटी है न कभी टूटेगी।

 

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