राजस्थान में क्या योगी आदित्यनाथ पार्ट टू हो सकता है। क्या योगी आदित्यनाथ के चेले बाबा बालकनाथ को यूपी के पड़ोसी राज्य राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। खबरें छप रही हैं कि नतीजे आने के बाद बाबा बालकनाथ को प्रधानमंत्री मोदी ने खासतौर से दिल्ली बुलाया है। कुछ कह रहे हैं कि अलवर से सांसद बाबा बालकनाथ को जब अलवर की तिजारा विधानसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किया गया तभी तय हो गया था कि राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री हो सकते हैं। बाबा बालकनाथ मुख्यमंत्री होंगे या उप मुख्यमंत्री होंगे यह तो सिर्फ पीएम मोदी और अमित शाह ही जानते हैं, लेकिन बाबा चर्चा में हैं।

बाला बालकनाथ योगी आदित्यनाथ के शिष्य हैं। वह रोहतक पीठ के महंत हैं। दरअसल, रोहतक पीठ के महंत बाबा चांदनाथ की मौत के बाद उसके उत्तराधिकारी को लेकर संशय की स्थिति थी। ऐसे में नाथ संप्रदाय के प्रमुख योगी आदित्यनाथ ने बाबा बालकनाथ के नाम को आगे किया। भाजपा ने बाबा बालकनाथ सहित 5 धर्मगुरुओं को राजस्थान में टिकट दिया था। इनमें सबसे ज्यादा चर्चित सीट तिजारा थी। इस सीट पर बाबा बालकनाथ ताल ठोंक रहे थे। इस सीट पर बाबा बालकनाथ की मदद करने के लिए खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दो बार तिजारा आए। बाबा बालकनाथ के बयानों ने राजस्थान के चुनाव में ध्रुवीकरण का तड़का जमकर लगाया

बाबा बालक का डबल असर
मोदी जी डबल इंजन की बात करते रहे हैं। कहा जा रहा है कि बाबा बालक नाथ को राजस्थान की कमान सौंपी गयी तो उसका डबल फायदा मिल सकता है। कहा जा रहा है कि बाबा बालक नाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया तो हरियाणा में भी बीजेपी चुनावी लाभ उठा सकती है जहां के रोहतक में नाथ संप्रदाय के 150 से ज्यादा शिक्षण संस्थाएं हैं। इंजीनियरिंग से लेकर मेडिकल कॉलेज तक। वैसे भी बीजेपी हरियाणा में गैर जाट समुदायों को एक करने में लगी है। ऐसे में साधन संपन्न यादव जाति के बाबा बालकनाथ सटीक बैठते हैं।
ओबीसी कार्ड भी बाबा बालक के साथ
बाबा बालक नाथ यादव हैं यानी ओबीसी हैं। कांग्रेस ओबीसी कार्ड की सियासत कर रही है। मोदीजी ओबीसी की जातीय जनगणना के मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं। मोदी हिंदुत्व में ओबीसी कार्ड की काट देख रहे हैं। ऐसे में क्या बाबा बालक नाथ को मुख्यमंत्री बनाकर हिंदुत्व के साथ साथ ओबीसी कार्ड भी खेला जा सकता है। यह अपने आप में दिलचस्प सवाल है।
बाबा बालकनाथ बारहवीं पास
बाबा बालक नाथ के गुरु चांदनाथ तो स्नातक थे लेकिन बाबा बालक नाथ बारहवीं पास हैं। पहली बार 2019 में वह अलवर के सांसद बने थे। यह उनका पहला ही चुनाव था। यानी वह राजनीति में कोरे हैं , सरकार चलाने या मंत्रालय संभालने का कोई अनुभव नहीं है। प्रशासनिक अधिकारियों से कैसे काम लिया जाता है इस मामले भी वह कोरे हैं। ऐसे में सवाल उठाया जा रहा है कि क्या चालीस साल के बाबा को मुख्यमंत्री बनाने पर मोदी राजी होंगे। इस पर तर्क दिया जा रहा है कि आलाकमान ऐसे मुख्यमंत्री की तलाश में है जो दिल्ली के निर्देशों पर चले। ऐसे में मुख्यमंत्री के अनुभव को ज्यादा महत्व देना जरूरी नहीं होगा। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया था तो उन्हें भी ऐसा कोई अनुभव नहीं था। अलबत्ता वह चार बार के सांसद रहने के दौरान लोकसभा की दर्जनों समितियों के अध्यक्ष या सदस्य रह चुके थे। कुछ का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री नहीं तो उप मुख्यमंत्री तो बनाया ही जा सकता है और लोकसभा चुनावों में इस प्रयोग को आजमाया जा सकता है।
संघ बाबा बालक नाथ के साथ
राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटें पिछले दो बार से बीजेपी की झोली में जा रही हैं। मोदीजी इस बार भी ऐसा ही चाहते हैं क्योंकि दो चार सीटें खोना भी उन्हें गवारा नहीं है। ऐसे में कुछ जानकारों के अनुसार वह हर उस सियासी प्रयोग को हरी झंडी दिखा सकते हैं जो पच्चीस सीटें जीतने में सहायक बन सके। इस हिसाब से बाबा बालक नाथ खरे उतरते हैं।

वैसे सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी आलाकमान योगी आदित्यनाथ को सियासी रुप से समेटना चाहता है इसलिए गुरु के साथ साथ चेले को बढ़ावा देने की सोच सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या योगी आदित्यनाथ को यह कबूल होगा। कुछ का कहना है कि यूपी में संघ के कहने पर योगी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। राजस्थान में भी संघ बाबा बालक नाथ का नाम आगे बढ़ा रहा है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में संघ की खास भूमिका रही है।संघ के कहने पर तीन अन्य धर्मगुरुओं समेत करीब पचास से ज्यादा उम्मीदवारों को टिकट दिया गया था।
वसुंधरा पर भारी पड़ेंगे बाबा
जानकारों का कहना है कि अगर मोदी लोकसभा चुनावों की चिंता कर रहे हैं तो ऐसे में वसुंधरा राजे की दावेदारी को नकार कर बाबा को गद्दी सौंपना भारी पड़ सकता है। इसके अलावा दलित कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी रेस में हैं। कुछ का कहना है कि आपसी खींचतान के बीच लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का नंबर भी लग सकता है जो सबको साथ लेकर चलने की नीति में यकीन रखते हैं। कुल मिलाकर यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी में बाबा युग विस्तार लेगा।

 

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