गड़बड़ाते मौसम चक्र को रोकने सामुदायिक सहभागिता एवं प्रबंधन
इस वर्ष जिस तरह से कही अत्यधिक वर्षा तो कहीं बहुत कम वर्षा ने मानव जीवन को चिंता में डाल दिया है। भारत सहित पूरी दुनिया में लगभग एक अरब ऐसे लोग हैं, जो पानी की अत्यधिक कमी से जूझ रहे हैं और पानी से सम्बंधित बिमारियों से असमय ही काल कलवित हो रहे हैं| ‘ग्लोबल एनवायरमेंट आउट लुक’ रिपोर्ट बताती है कि पृथ्वी कि एक तिहाई जनसंख्या पानी कि कमी की समस्या का सामना कर रही है| इसी रिपोर्ट के अनुसार सन 2032 तक विश्व कि लगभग आधी जनसंख्या पानी की भीषण कमी से पीड़ित हो जाएगी| जल की अतिवृस्ति व् उसके प्लावन प्रकोप से हर कोई भलीभांति परिचित है, किन्तु इसकी कमी किसी जंग का कारण भी बन सकती है, यह सामान्य जन की कल्पना से परे है| जमीनी सच्चाइयां तेज गति से बदल रही हैं और विश्व भर में जो परिस्थियां निर्मित हो रही हैं, उससे लगता है कि आने वाले समय में जल मानव जीवन के हर स्तर विवादों का प्रमुख कारण बन जायेगा|
पेयजल के संकट से भारत भी अछूता नहीं है| शहर तो शहर, ग्रामीण क्षेत्र भी पेयजल अभाव के घोर संकट से ग्रस्त हैं| देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट की बानगी यह है कि गर्मी शुरू होते ही, भूजल स्तर में भारी गिरावट के साथ पानी की किल्लत शुरू हो जाती है| वर्तमान में देश के कई क्षेत्रों में भूजल के अति दोहन के कारण इसका स्तर 50 फीट से भी नीचे गिर गया है| मध्यप्रदेश के इंदौर संभाग में भूजल का स्तर 400 फीट, उज्जैन संभाग में 500 फीट तथा सागर संभाग में 600 फीट नीचे पहुँच गया है| महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आँध्रप्रदेश, उड़ीसाः, मध्यप्रदेश के मालवा और उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड आदि क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु में टैंकर द्वारा पेयजल पहुँचाया जाता है| पेयजल को लेकर मोहल्ले-मोहल्ले, गांव-गांव, घर-घर में लोगों को आपस में झगड़ते देखा जा सकता है| स्थिति ऐसी हो जाती है कि कहीं – कहीं महिलाओं को मीलों दूर से पसीना बहाते हुए पानी ढोना पड़ता है, तो कहीं सूखे के कारण गांव के गांव खाली होने लगते हैं| भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर विद्यमान पेयजल संकट के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- अनियमित वर्षा के कारण पानी की कमी;
- उपलब्ध पानी का सही और उचित उपयोग न हो पाना;
- जमीन के भीतर पानी का पुनभरण (रिचार्ज) न किया जाना;
- जमीन के अन्दर से अत्यधिक पानी निकालना; और
- तेजी से बढ़ता जल प्रदूषण |
गड़बड़ाता मौसम चक्र तथा पारिस्थितिकीय संतुलन इशारा करता है कि भविष्य में जल संकट और बढ़ेगा| जल और समकालीन अन्य समस्यओं में एक पार्थक्य यह है कि जहाँ शेष अन्य समस्यओं से आसानी से निपटा जा सकता है, वहीँ जल संकट विकराल रूप धारण कर लेता है, क्योंकि इसके बिना जीवन जीना मुश्किल हो जाता है| स्पष्ट है कि इस समस्या का समाधान हेतु हमें तत्काल ही सामूहिक प्रयास करने होंगे| वर्षा की बूंदों को सहेजना होगा तथा जल का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से सोच –समझकर करना होगा| ज्ञातव्य है कि हमारी परम्परागत जल सरंचनाओं ने देश के भूजल भंडारों को भर रखा था| पर वे सरंचनाएं आज कई कारणों से संकट के दौर में हैं| इनमे से अतिदोहन के कारण कई भूजल का शोषण बेतहाशा बढता ही जा रहा है| प्रकृति ने देश में पानी उतना कम नहीं दिया है, जितना कि विकास के नाम पर बनी योजनाओं ने सोख लिया है| अंधाधुंध नलकूपों ने कुँए सूखा दिये हैं और आबादी के दबाव ने तालाबों को पाट दिया है| खेती कि जरुरत ने बरसाती नदी-नालों और तालाबों के कैचमेन्ट एरिया को समतल कर दिया है, जिसके कारण भी जल के महत्व के प्रति जागरूक बनें तथा इसके अनुशासित उपयोग और इसके सहजने हेतु (खासतौर से वर्षा जल को) नियम-कानून बनाएं|
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम
ग्रामीण पेयजल आपूर्ति राज्य का विषय है जो की भारतीय संविधान कि 11वीं अनुसूची में सम्मिलित है| विदित है कि 74 वें संविधान संशोधन के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपर्ति की जिम्मेदारी राज्य द्वारा पंचायतों को सौपी गई है| देश के समस्याग्रस्त गांवों में पेयजल उपलब्ध कराने हेतु भारत सरकार द्वारा सर्वप्रथम सन 1972- 73 में त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम शुरू किया गया था| इस कार्यक्रम के द्वारा राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के समस्याग्रस्त गांवों में पेयजल आपूर्ति योजना को क्रियान्वित करने के लिए वित्तीय एवं तकनीकी मदद उपलब्ध कराई जाती थी| इसी क्रम में पानी कि निरंतर कम होती उपलब्धता तथा आपूर्ति, पानी की खराब गुणवत्ता आदि मुद्दों के समाधान हेतु 1 अप्रैल 2009 में ग्रामीण पेयजल आपूर्ति गाइडलैन भी संशोधित की गई| इस संशोधित कार्यक्रम को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के नाम से जाना जाता है| इसके प्रमुख केंद्र बिंदु निम्नलिखित हैं|
- पेयजल आपूर्ति के दायरे को बसाहट से आगे बढाकर प्रत्येक घर तक जल की आपूर्ति सुनिश्चित करना|
- पेयजल की एक स्रोत पर अत्यधिक निर्भरता को कम कर पेयजल के कई वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराना|
- पेयजल योजनाओं में जल की कमी को दूर करना तथा जल की निरन्तर उपलब्धता सुनिश्चित करना|
- परम्परागत जल संरचनाओं को पुनर्जीवित करना तथा समुदाय द्वारा जल संरक्षण की पद्धतियों को अपनाये जाने की प्रवृति को बढ़ावा देना|
- जल संवर्धन सम्बंधित सभी कार्यक्रमों को ग्राम स्तर पर समन्वित करना|
- जल बजटिंग और ग्राम जल सुरक्षा योजना तैयार कर प्रत्येक घर तक सुरक्षित पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करना|
- प्राथमिक स्तर पर पेयजल परिक्षण हेतु ग्राम पंचायतों की क्षमता का विकास करना|
- पेयजल परीक्षण हेतु जिला एवं विकास खंड स्तर पर जल परिक्षण प्रयोगशाला स्थापित करना|
- ग्रामीण स्कूलों में पेयजल शुद्धिकरण हेतु पेयजल आपूर्ति गाइडलइन के साथ जल गुणवत्ता, मॉनिटरिंग एवं निगरानी को जोड़ना|
- ग्रामीण पेयजल योजनाओं के प्रबधन का कार्य पंचायती राज संस्थानों को हस्तांतरित किए जाने को प्रोत्साहित करना|
देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल प्रबंधन व्यवस्था को सुधारने के लिए यह आवश्यक है कि गांव के लोगों को इसके लिए तैयार किया जाए और पेयजल समस्या के समाधान में वे स्वयं की जिम्मेदारी का निर्वहन करें यह सुनिश्चित किया जाए|
पेयजल कार्यक्रम के प्रवंधन में जन भागीदारी
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम की सर्वोच्च प्राथमिकता बेहतर सुरक्षा और प्रबंधन के माध्यम से पेयजल स्त्रोतों एवं व्यवस्थाओं में जल को दूर कर जल की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करना है| निरन्तरता के मापदंड का तात्पर्य उपलब्ध जल का संरक्षण, वर्षा के जल का संरक्षण कर जल के संसाधनों का सवर्द्धन तथा प्राकृतिक तरीके से गुणवत्तापूर्ण जल कि आपूर्ति को बढ़ाना है| इसके लिए जनप्रतिनिधयों विशेषकर ग्राम पंचायतों के पंच तथा सरपंचो को जिम्मेदारी के साथ आंदोलन कर रूप में जल संरक्षण के इस पावन कार्य को आगे बढ़ाना होगा| उन्हें अपने क्षेत्र के लोगों को तन, मन, एवं धन से इस हेतु जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार करना होगा ताकि पेयजल योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन हो सके तथा प्रत्येक घर तक शुद्ध पेयजल कि निर्बाध आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सके|
ज्ञात हो कि वर्तमान में देश के कुल 372 जिलों में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन द्वारा ‘साक्षर भारत’ कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है| इस कार्यक्रम के अंतर्गत पंचायत स्तर पर लोक शिक्षा केन्द्र स्थापित किए गए हैं, जिनके संचालन एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंपी गई है| जनता से जमीनी स्तर पर संवाद स्थापित करने वाले ये लोक शिक्षा केन्द्र राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल प्रबंधन में जन भागीदारी को बढ़ाने में काफी मददगार हो सकते हैं|
वर्षा जल का संरक्षण एवं संवर्धन
जल संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में भारतीय मनीषी सदियों से सक्रीय रहे हैं| हजारों वर्षों के चिंतन –मनन के बाद उन मनीषियों ने जल संरक्षण की अत्यंत विश्वसनीय तथा कम लागल वाली संरचनाए विकसित की थीं| ये सारी व्यवस्थाएं समाज आधारित थीं| स्थानीय समुदाय इसके केन्द्र बिंदु होते थे और ये व्यवस्थाएं सुचारू ढंग से कार्य करती थीं| पर यह एक कटु सत्य है कि पिछले दशकों में सल संरक्षण एवं संवर्धन की इस परम्परागत व्यवस्था की घोर उपेक्षा हुई है और वर्तमान जल संकट इसके कारण ही उत्पन्न हुआ है| राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम से प्रेरणा लेकर हमें ग्रामीण अंचलों में जल संरक्षण एवं संवर्धन हेतु जन भागीदार पर आधारित नए कार्यक्रम की श्रृंखला शुरू करनी होगी| सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए योजनाओं के माध्यम से उत्प्रेरक सुविधाएँ जुटाने और वातावरण निर्माण का कार्य किया है, अब शेष समाज को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी| हैंडपंप, ट्यूबवेल एवं कुओं तथा तालाबों का पुन्भरण कर उसका रिचार्जिंग करना होगा| कम लागत से खेत तालाब बनाकर उनका संरक्षण करना तथा वर्षा जल के बहते पानी को रोक कर धरती को सजल बनाना होगा| ‘खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में’ को चरितार्थ करते हुए पेयजल का भरपूर संरक्षण करना होगा तथा अपने पड़ोसियों, समुदाय एवं गांव के लोगों के दिमाग में यह बात बैठानी होगी कि सरकार अकेले सब कुछ नहीं कर सकती है| जल संरक्षण के लिए सम्पूर्ण समाज को आगे आना होगा|
जल संकट कि यह स्थिति समाज को अवसर दे रही है कि हम सबके सहयोग से मिलकर इस संकट का सामना करें| देश के कई जलविहीन सूखा क्षेत्रों ने इस चुनौती को स्वीकार कर इससे निपटने का तरीका खोज निकाला है| राजस्थान जैसे सूखा क्षेत्रों में नागरिकों ने नए जल स्त्रोतों का निर्माण किया है तथा पुराने जल स्त्रोतों का उद्धार कर उन्हें पुनर्जीवित किया है| इससे पूरे क्षेत्र में जन चेतना का संचार हुआ है| जन भागीदारी से देश के अन्य सूखा क्षेत्रों के लोग भी वे कार्य कर सकते हैं, जो कठिन है| वस्तुतः समय कि यह मांग है कि समूचा समाज एकजुट हो पेयजल संकट कि इस चुनौती का सामना करें तथा भविष्य के लिए इसे एक अवसर में रूपांतरित करें|
जल संवर्धन का पहला सिद्धांत है, जल का संरक्षण उसी स्थान पर होना चाहिए जहाँ जल की बूंद गिरती हैं| जब पृथ्वी पर गिरी जल की बूंद अपने स्थान से आगे बढ़ जाती है, तो उसके संरक्षण का प्रयास अनर्थकारी हो जाता है| धरती के भीतर जल संरक्षण सतही नमी के दबाव से होता है| पानी अपने दबाव से धरती के भीतर अपने लिए जगह बनाता है| यदि वर्षा की बूंदें गिरने के बाद बह जाती हैं, तो धरातल पर अपेक्षित सजलता नहीं उत्पन्न कर पाती| इसलिए आवश्यक है कि वर्षा कि बूंदें जहाँ गिरे, वहीं उसका संरक्षण हो, वह वहीँ रुके और जब उस स्थान पर प्रयाप्त मात्रा में सजलता आ जाए, तभी बूंदें आगे बढ़ें| अगर जल कि बूंदें आकाश से गिरते ही बढ़ गई तो ना ही धरती सजल होगी और ना ही वायु| इसके अलावा मिटटी भी अपनी जगह से कटकर बह जाएगी| मिटटी कटकर बह जाने से सतही सजलता का वाष्पीकरण तेज गति से हो जाता है और धरती यथोचित गहराई तक सजल नहीं बन पाती| इसके विपरीत अगर धरती यथोचित गहराई तक सजल बनती है, तो सतही सजलता का वाष्पीकरण तेजी से नहीं होता और वहाँ बायोमास बनने लगता है, जिससे धरती पर हरियाली बढती है तथा मिटटी का संरक्षण स्वत: ही होने लगता है और धरती सजल होने लगती है| पानी धरती के भीतर बनी नालियों से रिस-रिस कर समूची धरती को सजल बनाने लगता है| ऐसा होने पर नदी-नाले, कुएं, तालाब, झरने व् बोरवेल सब सदाबहार बन सकेंगें और पेयजल संकट जैसी स्थिति निर्मित नहीं होती|
इस समय देश के लगभग सभी ग्रामीण क्षेत्रों में महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) संचालित है| इस कार्यक्रम के तहत व्यक्ति जहाँ रहता है, वहीँ उसके आस-पास उसे रोजगार उपलब्ध कराने कि कोशिश कि जाती है, ताकि स्थानीय गरीब लोग रोजगार हेतु पलायन करने को मजबूर न हों| इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना के निर्माण हेतु सरकार नए बड़े पैमाने पर धन उपलब्ध कराया है| यदि इसके साथ राष्ट्रीय पेयजल कार्यक्रम का समन्वय स्थापित किया जा सके, तो तालाब, खेत-तालाब, स्टापडैम आदि जल संरचनाओं को प्राथमिकता प्रदान कर जल संवर्धन को बढ़ावा दिया जा सकता है| वर्षा जल का संवर्धन जल संग्रहण के अलावा, भूजल स्रोतों को भरने में भी किया जाना चाहिए| यह एक सरल और किफायती उपाय है, जिसे सभी लोग कर सकते हैं| इसके अंतर्गत जलग्रहण क्षेत्र एवं जल भंडारण संरचना के निर्माण तथा अन्य घटक जैसे पाइप लाइन और घेरवाद कि व्यवस्था भी शामिल है| इसके अतिरिक्त जल को जमीन के अन्दर उतरने के लिए भी प्रभावी तरीकों को अपनाया जा सकता है|
खेत का पानी खेत में रोकें
वर्षा न होने या कम होने से सबसे ज्यादा नुकसान किसानों का होता है| इसलिए किसानों को ध्यान रखना चाहिए कि फसल काटने के बाद खेत में भी आग न लगाइए, इससे खेत के जैव –पदार्थ जिनसे खेत में जल संवर्धन होता है और जमीन के अंदर जल कि रिसने कि गति तेज होती है, वे जल जाते हैं| ज्ञातव्य है कि खेत में पानी क ठहराव जितना अधिक होगा जल का जमीन में रिसाव भी उतना ही अधिक होगा| खेत में पानी का रिसाव अधिक हो, इसके लिए छोटे-छोटे पोखर बनाए जाने चाहिए| ये पोखर चार-पांच मीटर लम्बे व् इतने चौड़े तथा 2-3 मीटर गहरे हो सकते हैं| इससे पूरे खेत में नमी बनी रहेगी और जल स्तर भी बढ़ेगा|
कुओं एवं नलकूपों का पुनरभरण
देश भर में, मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में कुएं ही आज भी पेयजल में मुख्य स्रोत माने जाते हैं| पर्याप्त मात्रा में सभी को पेयजल उपलब्ध हो सके, इसके लिए आवश्यक है कि जो कुएं सूख गए हैं, उनकी गाद एवं गन्दगी साफ कर उन्हें पुनर्जीवित किया जाए| वर्षा जल द्वारा पुन्भरण करके भी कुओं के जल स्तर को बढ़ाया जा सकता है| सामान्यतः इसके लिए कुएं से 3 मीटर कि दूरी पर जमीन में 3 मीटर चौड़ा व् लम्बा तथा 3 मीटर गहरा गड्डा खोद इसमें पहले बोल्डर, उसके ऊपर बजरी, फिर रेत कि परतें जमाई जाती है| इस फिल्टर गड्डे का निचला हिस्सा एक पाइप द्वारा कुएं में डाल दिया जाता है| वर्षा का जल गड्डे से होकर छन-छन कर पाइप में जाता है और पाइप से पानी कुएं में गिरता है| इससे कुएं और उसके आस-पास के कुओं एवं नलकूपों का जल स्तर बढ़ जाता है| इस आसान विधि द्वारा बहुत कम खर्चे में कुओं एवं नलकूपों का पुन्भरण (रिचार्ज) किया जा सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर पानी का भूजल के रूप में संग्रहण संभव हो सकता है| कुओं का पुन्भरण करते समय यह आवश्य ध्यान रखना चाहिए कि गन्दे नाले-नालियों एवं उद्योगों का अवशिष्ट जल तथा अत्यधिक रसायनिक खेती वाले क्षेत्र से प्रभावित जल का उपयोग इस पुन्भरण के कार्य में ना किया जाए, क्योंकि इससे कुएं के जल के प्रदूषित हो जाने का खतरा उत्पन्न हो सकता है|
सोखता गड्ढा
वर्तमान और नवनिर्मित घरों के आस-पास तथा कुओ और हैण्डपंपों के पास सोखता गड्डा या भूमिगत जलाशयों को भरने के लिए सुरक्षित दूरी पर जल संचय के गड्डे बनाए जाने चाहिए| सामान्यतौर पर ये गड्डे एक से दो मीटर चौड़े तथा दो से तीन मीटर गहरे बनाये जाते हैं| गड्डा खोदने के बाद उसे कंकड, रोड़ी, ईट के टुकड़े और बजरी से भरा जाता है| वर्षा जल संरक्षण के समय यह सावधानी बरती जानी चाहिए कि संरक्षित किया जाने वाला पानी किसी रसायन या जहरीली चीजों के सम्पर्क में न आए| यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस जल में किसी तरह कि गंदगी ना हो|
मकान के छत का पानी जमीन में उतारना
जल संरक्षण कि एक अन्य प्रचलित विधि मकान छतों से गिरने वाले वर्षा जल का संग्रह है| इसके तहत छत से गिरने वाले वर्षा जल को विशेष रूप से बनाए गए जलाशयों में जमा किया जाता है| बाद में छनाई कि सरल विधियों द्वारा इस पानी को साफ कर इसका उपयोग विभिन्न कार्यों हेतु किया जा सकता है| शोध के द्वारा यह बात भली-भांति स्पष्ट हो चुकी है कि वर्षा जल जैव दृष्टि से शुद्ध होता है|इसकी प्रकृति मृदु होती है और यह कार्बनिक पदार्थो से मुक्त होता है| स्पष्ट है कि जल पीने के साथ अन्य सभी कार्यों के लिए उपयुक्त होता है|
अध्ययन से यह भी पता चला है कि 100 वर्गमीटर पर बने मकान कि छत पर गिरने वाले वर्षा जल से हर साल लगभग पचपन हजार लीटर पानी भूमिगत जलाशय में भरा जा सकता है| वर्षा के इस जल का संरक्षण ग्रामीण क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो सकता है| आजकल ग्रामीण क्षेत्रों में भी अनेक पक्के मकान एवं स्कूल – पंचायत आदि शासकीय भवन बनाए जा रहे हैं| इनकी छत पर काफी पानी इकट्ठा होता है, जो बहुत ही शुद्ध होता है| वर्षा के इस जल को पाइप द्वारा छानकर सीधे नलकूप से जोड़ा जा सकता है| इसके लिए नलकूप के आस-पास 1.25 केसिंग पाइप में 3-4 से.मी. दूरी पर चारों ओर छेद कर छेद वाले पाइप पर नारियल कि रस्सी लपेटना होता है, जो पानी को छानने का काम करती है| गड्ढे के निचले एक तिहाई भाग में बड़ी आकार कि गिट्टी भर दी जाती है और उसके ऊपर मध्यम आकार कि गिट्टी डाली जाती है तथा शेष एक तिहाई भाग में बजरी भर दी जाती है| वर्षा जल इस फिल्टर विधि से निकलते हुए नारियल कि रस्सी से छानता हुआ नलकूप में गिरता है| यह शुद्ध जल नलकूप के जल स्तर को बढ़ाने में बुहत मददगार साबित होता है| इस विधि को अपनाने के लिए फिल्टर कैप्सूल का भी उपयोग किया जा सकता है| इसमे छत के पानी को पाइप द्वारा फिल्टर कैप्सूल से जोड़ कर सीधे नलकूप से जोड़ा जा सकता है| यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अत्यन्त ही किफायती है|
पानी के तेज बहाव में रुकावट डालना
बरसात का पानी धरती कि सतह पर तेजी से बहता हुआ निकल जाता है| पानी के बहाव के रास्ते में रुकावट डाल उसकी गति को धीमा कर तथा बहाव मार्ग में जमीन के अंदर गड्ढा या पैईल आदि बनाकर उसमे गिट्टी, रेती,ईंट तथा बजरी आदि डालकर जमीन अंदर पानी के पुनभरण को बढ़ाया जा सकता है| तेज ढलानों पर जहाँ पानी तेजी बहता है, वहां ढलान से समकोण की दिशा में नाली बनाकर तथा पत्थर की दो लाईनें डालकर पानी के भाव को रोकने से उसकी गति धीमी होती है| इससे पानी को जमीन के अन्दर उतरने (परकोलेशन) के लिए अधिक समय मिलता है|
जमीन की खुली सतह पर पानी तेज गति से बहता है, परन्तु यदि उस पर कोई भी वनस्पति (विशेषकर घास) उगी हो, तो पानी बहाव की गति अपने आप धीमी हो जाती है| अत: ऐसी खुली जगहों पर बहु-वर्षीय घास रोपकर उसे बढ़ने का अवसर दिया जाना चाहिए| इससे पानी को जमीन के अन्दर उतरने में मदद तो मिलेगी ही, इनके व्यवस्थित कटाई से पशुओं के लिए चारा भी मिलेगा| यहाँ यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि घास लगाने के बाद वहां पशुओं को चरने देने के बजाय यदि घास को काटकर खिलाया जाए तो इससे एक तो घास का नुकसान नहीं होता और दूसरा इससे उपज भी अधिक प्राप्त होती है| इसके साथ साथ ग्रामीण किसान वर्षा जल संरक्षण हेतु निम्नलिखित तरीके भी अपना सकते हैं –
- गर्मी में खेत कि जुताई|
- खेतों को ढेलेदार अवस्था में रहने देना|
- बरसात में खेत खाली रखने के बजाए उसमें फसल बोया जाना|
- उथली ओउउर गहरी जड़ वाली फसलें संयुक्त रूप से लगाना|
- कम वर्षा वाले स्थानों पर खेत के चारों ओर मेड के स्थान पर नाली बनाना|
- ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में खेत के चारों ओर मेड बनाना|
- पानी के तेज बाहव को रोकना|
- पानी कि बूंदों को पहले खेत में ही रोकने और अन्त में उसे तालाब या नदी में जाने देना|
- जमीन में बायोमास कि उपस्थिति बढ़ाना|
- पानी को कुएं, बावडी, तालाब या नलकूप में उतारने के पहले इसके लिए फिल्टर बनाना|
पेयजल गुणवत्ता कि मोनिटरिंग एवं निगरानी
ग्रामीण समुदाय में शुद्ध एवं सुरक्षित पेयजल कि गुणवत्ता के प्रति समझ विकसित कर उन्हें इस गुणवत्ता को निर्धारित करने हेतु सक्षम बनाना आवश्यक है| इसके लिए सन 2006 में पेयजल कि गुणवत्ता निर्धारण हेतु मोनिटरिंग एवं निगरानी कार्यक्रम शुरू किया गया| इसके प्रमुख उददेश्य निम्नलिखित हैं :
- सुचना, शिक्षा एवं संचार के माध्यम से समुदाय में पानी निम्न गुणवत्ता, अस्वच्छता तथा गन्दगी से उत्पन्न होने वाली स्वास्थ्य सबंधी समस्याओं एवं बीमारियों कि प्रति जागरूकता का विकास करना|
- प्रत्येक ग्राम पंचायत में 5 ग्रामीणों एवं कार्यकर्ताओं को पेयजल स्रोतों के परीक्षण हेतु प्रशिक्षण कि व्यवस्था करना|
- पांच ग्रामीण कार्यकर्ताओं के साथ-साथ, 5 व्यक्ति विकास खण्ड स्तर से, 4 व्यक्ति जिला स्तर से तथा 2 व्यक्ति राज्य स्तर से भी पशिक्षित किए जाने कि व्यवस्था करना|
एक अप्रैल 2009 से लागू इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रत्येक ग्राम पंचयत को 100 प्रतिशत केन्द्रीय अनुदान द्वारा क्षेत्रीय जल परीक्षण किट उपलब्ध कराया जाना|
राष्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अन्तर्गत राज्य द्वारा प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 55 लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन के मान से पेयजल उपलब्ध कराने कि प्रतिबद्धता व्यक्त कि गई है| परिवार मूलक जलप्रदाय व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए सन 2001 कि जनगणना के अनुसार 1000 से अधिक जनसंख्या वाले गांव में नल जल योजना पंचायतों के माद्यम से क्रियान्वित किया जाना है| 1000 से कम जनसंख्या वाले गांव में स्पॉट सोर्स योजना अथवा हैंडपंप योजना के द्वारा प्रत्येक घर को पेयजल के दायरे में लाया जाना है| इस योजना के तहत सभी ग्रामीण परिवारों को 500 मीटर कि परिधि में पेयजल उपलब्ध कराने तथा पहाड़ी क्षेत्र में 30 मीटर कि ऊंचाई के अंतर्गत पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु सभी योजनाओ ग्राम पंचयतों में गठित जल एवं स्वच्छता प्रबंधन समितियों के माध्यम से नियोजित एवं क्रियान्वित किए जाने की रणनीति अपनाई गई है|
वर्षा जल के संवर्धन हेतु सामुदायिक प्रयास तथा सरकार द्वारा चलाए जा रहे पेयजल कार्यक्रम से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को आवश्यकतानुसार शुद्ध पेयजल की आपूर्ति संभव की जा सकती है | इसके लिए आवश्यक है कि पेयजल प्रदाय एवं स्वच्छता से संबंधित योजनाओ के विधिवत संचालन एवं संधारण हेतु ग्राम पंचायत प्रबंधन समिति के लोग ग्रामीण पानी कि शुद्धता एवं मानक से जुड़े पहलुओं से अवगत हों| सामान्य भाषा में रंगीन, गंधहीन तथा स्वादयुक्त पानी को शुद्ध पेयजल कहा जाता है| परन्तु पेयजल की शुद्धता के कुछ मानक वैज्ञानिक तौर पर निर्धारित हैं, जिनके आधार पर पेयजल की शुद्धता निर्धरित की जाती है| ये मानक हैं - रंग, गंध, स्वाद, पी.एच.ठोस पदार्थ, अवक्षेपित क्लोरीन, फ्लोराइड, क्लोराइडस, निकल पोली फार्म जीवाणु आदि की निर्धारित मात्रा में उपस्थिति /अनुपस्थिति|
यह भी आवश्यक है कि पेयजल कि शुद्धता कि जाँच निकट के जल परीक्षण केंद्र में प्रतिवर्ष कराई जाए| भूमिगत पेयजल हेतु इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए| परीक्षण हेतु कम से कम 20 लीटर शुद्ध पेयजल एक साफ बर्तन में परीक्षण केंद्र में ले जाना आवश्यक होता है| इस परीक्षण प्रक्रिया को सहज बनाने के लिए पंचायतों तथा उन ग्रामों में जहां 10 +2 के विज्ञान विषय के स्कूल हैं वहां पर भी जल परीक्षण किट भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं| इस संबंध में और अधिक जानकारी के लिए नजदीकी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से संपर्क किया जा सकता है| सतही जल भूजल से हल्का होता है और इसमें ठोस अवशिष्ट भूजल से अधिक हो सकते हैं| स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध पेयजल के उपयोग से पूर्व इसकी शुद्धता सुनिश्चित करने तथा इससे पीने योग्य बनाए रखने के लिए इसका उचित संधारण तथा शुद्धिकरण किया जाना अति आवश्यक है| यह कार्य घरेलु शुद्धिकरण कि विभिन्न विधियों जैसे – छानना, उबालना, निथारना, फिटकरी तथा क्लोरीन कि गोली आदि का उपयोग कर किया जा सकता है| इसके अलावा घर में पानी का उपयोग करते समय निम्नलिखित अन्य सावधनियां भी बरती जानी चाहिए :
- पेयजल को हमेशा ढककर जमीन से ऊँचे स्थान पर रखना|
- जल स्रोतों के आस-पास हमेशा स्वच्छता बनाए रखना|
- पेयजल को हमेशा लम्बी डंडी वाले बर्तन से निकालना|
- स्र्तोत के आस-पास गन्दा पानी एकत्र नही देना एवं मल-मूत्र का विसर्जन कतई नही करना|
- कुआँ-तालाब आदि का पानी साफ रहे, इसके लिए आवश्यक है कि उसमें कचरा तथा पूजा –सामग्री नए डाली जाए तथा सम्भव हो तो नहाने और कपड़े धोने आदि का काम भी न किया जाए|
- यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि शौचालय का निर्माण जल स्रोत से कम से कम 15 फीट की दूरी पर हो|