किसी कार्यक्रम को बनाना और उसे विस्तार देना चुनौतीपूर्ण काम है, यह आलेख बुजुर्गों की सहायता के लिए बनाई गई एक हेल्पलाइन के जरिए बताता है कि इन चुनौतियों से कैसे निपटा जा सकता है।

एल्डर लाइन एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन है जिसे अक्टूबर 2021 में भारत सरकार द्वारा कानूनी, वित्तीय, स्वास्थ्य या सामाजिक मामलों से जूझ रहे बुजुर्गों को सहायता प्रदान करने के लिए शुरू किया गया था। यह हेल्पलाइन एक टोल-फ़्री नम्बर (14567) है। इसे तेलंगाना राज्य सरकार और टाटा ट्रस्ट्स द्वारा मार्च 2019 और सितम्बर 2020 के बीच हैदराबाद में शुरू किया गया था। धीरे-धीरे इस कार्यक्रम का विस्तार देश के सभी राज्यों एवं केंद्र-शासित प्रदेशों में भी किया गया।

सोशल सेक्टर में, सफलता का एक महत्वपूर्ण संकेत यह है कि सरकार उस कार्यक्रम को अपनाए और उसका विस्तार करे, जिसका डिज़ाइन, जिसकी अवधारणा और क्रियान्वयन किसी नागरिक संगठन ने किया हो। इसके कई उदाहरण हैं जैसे कि 108 आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवास्वयं सहायता समूह और आशा कार्यकर्ता। एल्डर लाइन सेवा इस ‘एडॉप्शन एंड स्केल अप बाय गवर्नमेंट’ मॉडल का सबसे ताजा उदाहरण है। हालांकि किसी भी प्रयास के विस्तार में आने वाली बाधाएं कार्यक्रम-विस्तार के स्वरूप और इसकी प्रभारी टीम के आधार पर अलग हो सकती हैं। लेकिन हमारा ऐसा मानना है कि इस पहल से कुछ ऐसी सीखें मिली हैं जो इस सेक्टर के लिए मूल्यवान साबित हो सकती हैं।

1. अपना पक्ष तैयार करें

अपने कार्यक्रम का विस्तार चाहने वाले संगठनों को, अक्सर सहयोग की ज़रूरत के बारे में सरकार को समझाना पड़ता है। यह पहली बाधा होती है जो कार्यक्रमों के विस्तार की प्रक्रिया में आती है। हमें इस सेवा की ज़रूरत से जुड़े सवालों के जवाब देने पड़े और साथ ही, विस्तार से यह भी बताना पड़ा कि हमारी हेल्पलाइन अन्य कॉल सेंटरों से किस तरह अलग है। इसके अतिरिक्त, हमें बड़े उद्देश्य भी स्थापित करने पड़े जिसके तहत इस हेल्पलाइन पर सम्पर्क करने वाले कॉलर को अतिरिक्त सुविधा एवं सेवा प्रदान करनी होती थी। जमीनी मुद्दों पर प्रतिक्रिया देने और राज्य भर के समुदायों के साथ काम करने में सक्षम हमारी मौजूदा टीम की विशेषता को रेखांकित कर हमने सरकारी अधिकारियों को इस मॉडल की ताक़त को समझाने में सफलता हासिल की।

इसके अतिरिक्त, ये कॉल अपने आप ही बुजुर्गों को परेशान करने वाले बड़े मुद्दों के छोटे उदाहरणों की तरह काम करते हैं। ये हस्तक्षेप की ज़रूरत वाले क्षेत्रों की पहचान में हमारी मदद करते हैं जहां सरकार, विकास क्षेत्र के भागीदारों या समुदाय की मदद से बेहतर काम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, जुलाई 2022 में आयोजित रथ यात्रा के दौरान, ओड़िशा राज्य सरकार ने एल्डर लाइन नंबर और इसकी सेवाओं को लोकप्रिय बनाया। ओडिशा की राज्य सरकार ने पाया कि राज्य में ओडिशा कनेक्ट सेंटर और एल्डर लाइन के कॉल सेंटर के जरिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन से संबंधित कॉल्स की संख्या में वृद्धि देखी गई। राज्य सरकार की नीति के अनुसार, पात्रता रखने वाले किसी वरिष्ठ नागरिक को ऑनलाइन आवेदन जमा करने की निश्चित अवधि के भीतर सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिलनी चाहिए। हालांकि कॉल करने वाले लोगों ने बताया कि उन्होंने करीब तीन साल पहले पेंशन के लिए आवेदन दिया था लेकिन पोर्टल पर आज भी यही दिखा रहा है कि उनका आवेदन प्रक्रिया में है।

कोविड-19 महामारी द्वारा भी इस प्रोजेक्ट के विस्तार में मदद मिली।

इसके बाद टीम ने आवेदनों की स्थिति की जांच शुरू की तो पता चला कि पेंशन प्राप्त करने की प्रक्रिया के पहले चरण में पंचायत कार्यकारी अधिकारी से अनुमति प्राप्त करनी होती है। लेकिन यह काम उनकी मुख्य ज़िम्मेदारियों में शामिल नहीं होने के कारण अधिकारियों ने आवश्यक सत्यापन के लिए पोर्टल खोलकर देखा ही नहीं था। टीम ने इस तरह की समस्याओं के दायरे का पता लगाया और पेंशन वितरण प्रशासन को कुछ सुझाव दिए। सुझाए गए परिवर्तनों में मॉनिटरिंग के तरीकों को शामिल किया गया था ताकि राज्य में, इस प्रक्रिया को वरिष्ठ नागरिकों के अनुकूल बनाने के लिए लोगों को ज़िम्मेदार बनाया जा सके और पारदर्शिता के स्तर को बढ़ाया जा सके।

कोविड-19 महामारी द्वारा भी इस प्रोजेक्ट के विस्तार में मदद मिली। 2019 में सामाजिक न्याय मंत्रालय के साथ होने वाली शुरुआती मीटिंग में हमें बताया गया कि वे इस प्रोजेक्ट के विस्तार में शामिल होने को लेकर इतनी जल्दी फ़ैसला नहीं ले सकते हैं। हालांकि महामारी के आने और तेलंगाना में एल्डर लाइन के सफल कार्यान्वयन के कारण सरकार को देशभर के वरिष्ठ नागरिकों के लिए इस तरह की सेवा के महत्व को समझने में भी आसानी हुई। उसके कुछ ही दिनों बाद हम मंत्रालय के साथ मिलकर सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में इस सेवा के लिए इंफ़्रास्ट्रक्चर तैयार करने का काम कर रहे थे।

2. सार्वजनिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचे का उपयोग करें

हेल्पलाइन के महत्व के बारे में सरकार को समझाने और इसके विस्तार को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से इसे बोर्ड में लाने के परिणामस्वरूप कई तरह की नई चुनौतियां सामने आईं। हमें अपने दृष्टिकोण को क्रियान्वित करने के लिए मौजूदा सरकारी बुनियादी ढांचे का उपयोग करने का निर्देश दिया गया था। इसमें किसी निजी संस्था के बजाय राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के क्लाउड सर्वर का उपयोग करना शामिल था क्योंकि हम देश के वरिष्ठ नागरिकों से संबंधित संवेदनशील डेटा पर काम करने वाले थे। उन्होंने यह भी अनिवार्य किया कि हम एल्डर लाइन की सभी टेलीफोन/इंटरनेट आवश्यकताओं के लिए बीएसएनएल का उपयोग करें। इन शासनादेशों के परिणामस्वरूप हेल्पलाइन के राष्ट्रव्यापी लॉन्च में कुछ देरी हुई क्योंकि एनआईसी और बीएसएनएल जैसे संस्थानों की कई अन्य प्राथमिकताएं थीं। इसके अतिरिक्त, एनआईसी के क्लाउड का उपयोग करने के लिए विशिष्ट प्रोटोकॉल का पालन किया जाना था क्योंकि सर्वर की सुरक्षा सर्वोपरि थी।

इसे विस्तार से जानने के लिए निजी क्लाउड सेवा प्रदाताओं की भूमिका पर विचार करते हैं। वे आमतौर पर एक खाता प्रबंधक नियुक्त करते हैं, जो यह सुनिश्चित करता है कि ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा किया गया है। साथ ही, आवश्यकता होने पर यह समस्या का निवारण भी करता है। हालांकि, एनआईसी में, सुरक्षा कारणों से क्लाउड सेवा के विभिन्न पहलुओं के लिए अलग-अलग लोग जिम्मेदार हैं। इसलिए, एनआईसी के अधिकारियों तक पहुंचना और अनुमोदन प्राप्त करना एक बाहरी संस्था के रूप में हमारे लिए एक अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया थी।

देरी का एक और उदाहरण हमारे सामने तब आया जब हम निर्बाध सेवा सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे थे। हेल्पलाइन के लिए बिजली, टेलीफोन और इंटरनेट कनेक्शन जैसी सभी महत्वपूर्ण सेवाओं का बैकअप होना चाहिए। प्राथमिक टेलीफोन कनेक्शन बीएसएनएल नेटवर्क का है। लेकिन एक अन्य सेवा प्रदाता से सेकंडरी कनेक्शन भी लिया गया है ताकि प्राथमिक कनेक्शन डाउन होने की स्थिति में कॉल ऑटोमैटिकली इसके माध्यम से रूट की जाती हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचे का उपयोग करना लंबे समय में हमारे पक्ष में रहा।

हमें यह पता लगाने में कुछ समय लगा कि क्या हमारे लिए ऐसी प्रणाली स्थापित करना संभव होगा और साथ ही इसे कारगर बनाने के लिए हमें किससे सम्पर्क करने की ज़रूरत है। एक बार ऐसा करने के बाद, इसे हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में दोहराया जाना था, और प्रत्येक केंद्र पर काम कर रहे कर्मचारियों को इस प्रक्रिया को समझाने में काफी समय लगा और हमें बहुत मेहनत भी करनी पड़ी।

हालांकि शुरुआत में हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ा और इस प्रक्रिया में बहुत देरी भी हुई। लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचे का उपयोग करना लंबे समय में हमारे पक्ष में रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव और लद्दाख जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में बीएसएनएल के अलावा इंटरनेट और टेलीफोन कनेक्टिविटी के लिए कोई सेवा प्रदाता नहीं है। इसके अतिरिक्त, सर्वर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त प्रोटोकॉल का पालन किया गया था, और इस पूरी प्रक्रिया में किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया।

हमने जाना कि सरकार के माध्यम से अपने कार्यक्रमों को विस्तार देने की मांग करने वाली समाजसेवी संस्थाओं को मौजूदा सार्वजनिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के साथ काम करने के तरीकों में कुशल होना चाहिए। हालांकि यह समय लेने वाला हो सकता है लेकिन लंबे समय में फायदेमंद होता है।

3. स्थानीयकरण की अनुमति दें

विस्तार करने पर दी जाने वाली एकरूपता जहां आकर्षक लगती है। वहीं इन कार्यक्रमों को लागू करने की चुनौतियां और इसके द्वारा लक्षित किए जा रहे समूहों के अनुभव विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग हो सकते हैं। इसलिए, एल्डर लाइन ने एक विकेन्द्रीकृत दृष्टिकोण रखने का सोचा-समझा फैसला किया, जहां एकल, केंद्रीकृत कार्यान्वयन एजेंसी की बजाय प्रत्येक राज्य का अपना कार्यान्वयन भागीदार होना था। इसलिए हेल्पलाइन नंबर, प्रक्रियाओं के लिए व्यापक दिशानिर्देश और लोकाचार जहां सभी राज्यों में एक जैसे हैं, वहीं प्रत्येक राज्य यह सुनिश्चित करता है कि बुजुर्गों की सेवा करते समय स्थानीय विविधताओं को ध्यान में रखा जाए। आज हमारी चुनौतियां इस बात से संबंधित हैं कि कैसे हम राज्य की विशेषताओं के साथ अपना संबंध बनाए रखते हुए देशभर में सेवा का मानकीकरण कर सकते हैं। एक राज्य से दूसरे राज्य में उभरने वाले मुद्दों के आधार पर एल्डर लाइन अभी भी अपनी प्रक्रियाओं में सुधार ला रही है।

जब कोई कार्यक्रम विस्तार करता है तो उसे ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है जिनकी कभी परिकल्पना नहीं की गई थी। हैदराबाद में एल्डर लाइन लागू होने के बाद, हमने लगभग 200 बेघर बुजुर्गों को बचाया और उनमें से 70 को राज्य के भीतर ही परिवार के सदस्यों से दोबारा मिलवा दिया गया। हालांकि, विस्तार करने पर, हमें ऐसे कई मामले मिले जहां एक राज्य में मदद हासिल करने वाले बुजुर्ग दूसरे राज्य के थे। ऐसे कुछ मामले देखने के बाद, हमने अंतर्राज्यीय बचाव और बेघर बुजुर्गों के पुनर्मिलन के लिए एक व्यापक प्रक्रिया स्थापित की।

इसी तरह, अपने विस्तार की इच्छा रखने वाले किसी भी संगठन को इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि एक ही दृष्टिकोण सभी क्षेत्रों के लिए काम नहीं कर सकता है। हालांकि, प्रक्रियाओं को मजबूत करने के साथ-साथ स्थानीय दृष्टिकोण को लागू करने के लिए राज्य भागीदारों को सशक्त बनाना लाभप्रद हो सकता है।

4. व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाएं

हस्तक्षेप कार्यक्रमों के डिजाइन और निष्पादन दोनों में मुख्य कर्मियों का शामिल होना अत्यावश्यक है। आपको दिन-प्रतिदिन के स्तर का कामकाज करने पर समय बिताने के लिए तैयार रहना होगा। ध्यान रखें कि चूंकि आप अपने कार्यक्रम प्रबंधकों या फील्ड टीमों के साथ बेहतर संवाद कर पाएंगे इसलिए ऐसा करने से आपको विस्तार से जुड़े निर्णय लेने में मदद मिलेगी। व्यावहारिक दृष्टिकोण टीम को यह समझने में भी सक्षम बनाता है कि कार्यान्वयन में क्या बाधाएं हो सकती हैं, और उन लोगों को तय ढांचे वाला मार्गदर्शन प्रदान करता है जो कार्यक्रम के विस्तार के बाद कार्य को आगे बढ़ाएंगे।

5. अपने लक्ष्य को समझें

एल्डर लाइन को डिजाइन करते समय, हमने देश में मौजूदा हेल्पलाइनों का व्यापक अध्ययन किया, विशेष रूप से 108 इमरजेंसी रिस्पांस सर्विस और 1098 चाइल्डलाइन जो कि संकट में बच्चों के लिए बनाई गई एक हेल्पलाइन है। इन हेल्पलाइनों की जांच से मिली सीख के आधार पर, हमने यह तय करने की दिशा में काम किया कि हेल्पलाइन को बुजुर्गों की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जाए। कार्यक्रम लागू करने वालों को अपने टारगेटेड समूहों की प्राथमिकताओं के बारे में जानने-समझने में समय व्यतीत करना चाहिए, क्योंकि यह नई चीजों के अनुकूल बनने, इसका नियमित उपयोग करने और सेवा को बेहतर बनाने की कुंजी है।

आईवीआर सिस्टम बुजुर्गों के लिए अत्यधिक थकाऊ और नेविगेट करने में भ्रमित करने वाला हो सकता है।

सबसे पहले देशभर में हेल्पलाइन का नंबर 14567 है। यह संख्या एक ऐसा छोटा कोड है जिसमें एसटीडी कोड जोड़ने की आवश्यकता नहीं होती है और एक वरिष्ठ नागरिक के लिए इसे याद रखना आसान होता है। किसी विशेष राज्य/केंद्र शासित प्रदेश से होने वाली सभी कॉल उसी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के भीतर कनेक्ट सेंटर को निर्देशित की जाती हैं, और यह उस सेल टॉवर के आधार पर निर्धारित किया जाता है जिससे कॉल की शुरुआत होती है। इसके अलावा, हेल्पलाइन पर कॉल करने से कॉल करने वाला इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस (आईवीआर) सिस्टम के बजाय सीधे अपने स्थानीय कनेक्ट सेंटर अधिकारी से जुड़ जाता है। इसके पीछे की समझ यह थी कि आईवीआर सिस्टम बुजुर्गों के लिए अत्यधिक थकाऊ और नेविगेट करने में भ्रमित करने वाला हो सकता है। अंत में, कनेक्ट सेंटर के कर्मचारियों को कॉल करने वालों से दया और धैर्य वाले भाव के साथ स्थानीय भाषा में बातचीत करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। एक नियमित कॉल सेंटर के विपरीत, कॉल को बंद करने के लिए कोई निश्चित ऊपरी समय सीमा नहीं है।

6. विस्तार के लिए डिजाइन

सरकार के लिए एल्डर लाइन के सफल क्रियान्वयन और उसके विस्तार के बाद यह कहा जा सकता है कि इसकी अवधारणा और निर्माण, विस्तार के इरादे से ही की गई थी। जहां बुजुर्गों के लिए बनाई गई अन्य हेल्पलाइनों को एक या कुछेक लोगों की एक टीम पर भरोसा करते हुए छोड़ दिया जाता है जो कॉल और ज़मीनी स्तर पर समस्याओं को सुलझाती हैं। वहीं, एल्डर लाइन के पास केंद्र और फ़ील्ड टीम से जुड़ने के लिए अलग-अलग लाइन हैं और इन लाइन पर बैठने वाले लोग अपना काम प्रभावशाली तरीक़े से करने के लिए प्रशिक्षित हैं।

टीमों के दोनों समूहों को डोमेन से संबंधित सात दिनों का प्रशिक्षण दिया गया था, जिससे उन्हें यह समझने में मदद मिली कि हेल्पलाइन की आवश्यकता क्यों है, बुजुर्गों के मुद्दे क्या हैं, विभिन्न योजनाएं और नीतियां जो बुजुर्गों से संबंधित हैं, संभावित प्रश्न जो वे पूछ सकते हैं, और कैसे वे बुजुर्गों से बात करते समय उनके साथ सहानुभूति रख सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, हमने एक समान केंद्रीय सॉफ्टवेयर का उपयोग किया, जिससे सभी राज्यों की टीमें जुड़ी हुई हैं। सॉफ्टवेयर में प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग ‘रूम’ होते हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी विशेष राज्य की टीम केवल अपने राज्य से संबंधित डेटा तक ही पहुंच सकती है। इसका उद्देश्य मॉडल को इस तरह से स्थापित करना था जो इसे पूरे देश में विस्तार करने और दोहराने के योग्य बनने दे जिससे सरकार के लिए इसे अपने हाथ में लेना और चलाना आसान हो।

7. शुरू से ही सरकारी मशीनरी के साथ काम करें

यह सुनिश्चित करने के अलावा कि कार्यक्रम को विस्तार के लिए डिज़ाइन किया गया था, हमने उनके साथ सहयोग करने के लिए कार्यक्रम की संकल्पना में जल्दी ही सरकार से संपर्क किया। शुरुआत में सरकार का सहयोग प्राप्त करने से हमें अपनी योजना को अधिक प्रभावी तरीके से लागू करने में मदद मिली। हमारे पास संबंधित राज्य विभागों का समर्थन होने के कारण क्षेत्र में हमारे संचालन विभिन्न राज्यों में सुचारू रूप से आगे बढ़ रहे हैं। यह सहयोग पुलिस जैसे स्थानीय अधिकारियों को हमारी टीम के अनुरोधों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाता है और इसमें उन्हें भी शामिल करता है जिनकी हम सहायता करना चाहते हैं। टीम सरकारी अस्पतालों/औषधालयों, जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों और कानूनी सहायता क्लीनिकों, वृद्धाश्रमों और आश्रय गृहों के साथ-साथ सरकार और नागरिक समाज संगठनों द्वारा संचालित डे-केयर केंद्रों जैसे संस्थानों की मदद लेने में भी सक्षम थी।

न्यूज़ सोर्स : idr