मन की आखों से भी पढ़ लेती हैं बेटियां, बस उनके हुनर को पंख देने वाला चाहिए
आंखों में सपने और दिल में कुछ कर दिखाने की ख्वाहिश लिए यशोदा हर दिन अपने विद्यालय पहुंचती है। सहपाठियों से अलग यह दिव्यांगता (दृष्टिहीन) के कारण नहीं बल्कि अपने इरादे, हुनर और लगन की वजह से है। यशोदा अपनी कक्षा के अन्य विद्यार्थियों की तरह बोर्ड पर लिखे शब्द देख पाने में सक्षम नहीं है, लेकिन शिक्षक ने जो पढ़ाया उसे सुनकर मानसपटल पर कुछ इस तरह अंकित कर लेती है कि प्रावीण्य सूची में आने से उसे कोई रोक नहीं सका। अब वह अपनी काबिलियत के बल पर छात्रसंघ प्रभारी भी बन चुकी है।
यशोदा कुमावत सीएम राइज अहिल्या आश्रम की कक्षा 12वीं की छात्र हैं। वे कहती हैं कि मेरी दिव्यांगता के कारण दूसरे विद्यार्थी मुझसे बात नहीं करते थे, लेकिन मैंने अपने व्यवहार से सभी को दोस्त बनाया और कक्षा में टाप करके स्कूल छात्रसंघ की प्रभारी बन गई। स्कूल के शिक्षकों ने बताया कि यशोदा पढ़ाई के साथ-साथ व्यवहार में भी काफी कुशल है। किसी भी कार्यक्रम के आयोजन से पहले हम उसकी राय अवश्य लेते हैं और वह भी बेहतर सुझाव देती है। यशोदा ने कहा कि देश की पहली दृष्टिहीन आइएएस अधिकारी प्रांजल पाटिल से प्रेरित होकर कलेक्टर बनना चाहती हूं। मैं घर की आर्थिक स्थित और अपनी दिव्यांगता को सपनों के बीच बाधा नहीं बनने देना चाहती। उसने राज्यस्तरीय एकल अभिनय में प्रथम स्थान भी प्राप्त किया था। साथ ही संगीत में भी काफी रुचि रखती है।
परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से छोटी उम्र में वंदना पंडित को पढ़ाई छोड़ नौकरी की राह चुननी पड़ी। नौकरी के दौरान अनुभव हुआ कि पढ़ाई से ही अपने सपनों को हासिल किया जा सकता है। इसलिए नौकरी के साथ पढ़ाई जारी रखी। ग्रेजुएशन करने के बाद मार्केटिंग में एमबीए भी किया। आज फाइनेंशियल एडवाइजर के रूप में 50 हजार रुपये महीना कमाती हूं।
स्कीम नंबर 78 में रहने वाली निधि बगेरिया के परिवार के लालन-पालन की जिम्मेदारी सब्जी बेचने वाले पिता घनश्याम बगेरिया के कांधों पर थी लेकिन साल 2019 में पिता ने बीमारी के कारण बिस्तर पकड़ लिया। पांच बच्चों की परवरिश का जिम्मा मां लक्ष्मी बगेरिया पर आ गया। मां सब्जी बेचकर घर में दो वक्त की रोटी जुटाने लगी। बच्चों की पढ़ाई छूट गई। बड़ी बेटी ने सिलाई शुरू की, तो बेटा पुताई का काम करने लगा। तीसरे नंबर की बेटी निधि संघर्षों के बाद अपने प्रयासों से बेहतर नौकरी पाने में सफल हुई।
निधि बगेरिया के लिए 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई जारी रखना आसान नहीं था। लकवे के कारण पिता का काम छूट चुका था। परिवार की आय का दूसरा कोई साधन नहीं था। ऐसे में निधि ने शंकरा आई हास्पिटल से निश्शुल्क डिप्लोमा करने के लिए इंटरव्यू दिया। सिलेक्शन होने के बाद तीन साल पढ़ाई कर डिप्लोमा हासिल किया। आज निधि शंकरा आई हास्पिटल इंदौर में आप्थेल्मिक असिस्टेंट हैं।