पत्रकारिता को धन्नासेठों की गुलामी से मुक्त करने,बालशास्त्री जैसे पत्रकारों की दरकार
योगेन्द्र पटेल -{सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक }
भारत में प्रचलित कई सामाजिक मुद्दों पर पत्रकारों की थमती कलम आज चिंता का विषय बनीं हुई है। राजदारों की भांड परंपरा का बोलबाला होता जा रहा जो कहीं ना कहीं से पत्रकारिता एवं पत्रकारों के गुलाम प्रवृति का घोतक होता दिखता है। ऐसे दिनों में मराठी भाषा के पत्रकार बालशास्त्री जम्भेकर को पढ़ना एवं समझना चाहिए कि वर्तमान में पत्रकारिता को बाजारू स्वरूप क्या देश की राजनीतिक चालों के बीच खुद को अपडेट करने में सक्षम है।
मराठी भाषा के क्या उस अखबार की आज आवश्यकता है जो कथित काले अंग्रेजों से लड़ने सामाजिक उत्थान का बीड़ा उठाने में सक्षम हो इस पर विचार करने की आवश्यकता लगती है। इस वक्त इस बात पर भी चिंतन की आवश्यकता है कि तकनीकी माध्यमों से पत्रकारिता की विश्वसनियता पर सवाल उठ रहे हैं एवं असल पत्रकार भीडवादी पत्रकारिता के ग्लैमर के बीच खुद को ठगा सा एवं निर्लज सा महसूस कर रहा है।
पत्रकारिता से गंभीरता गायब
पत्रकारिता से बौद्विक दिग्गजों का सायलेंट हो जाना वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले समाज के निर्माण को अधूरा छोड़ रहा है ऐसा लगता है ,तब हमें समझना एवं चिंतन करना पड़ सकता है कि क्या हमं सामाजिक समस्याओं के प्रति तर्कसंगत दृष्टिकोण खोते जा रहे हैं। ऐसे में बालशास्त्री जम्भेकर जैसे पत्रकारों की आवश्यकता लगती है जो आम जनता के बीच उपयोगी और स्वस्थ चेतना पैदा करने के लिए निरंतर प्रयास करें एवं अशिक्षितों को शिक्षित करने का प्रयास करें।
कौन थें बालशास्त्री जम्भेकर
बालशास्त्री जम्भेकर को मराठी पत्रकारिता के जनक के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने मराठी भाषा में पत्रकारिता शुरू करने के प्रयासों के लिए शुरुआती दिनों में “दर्पण” नामक भाषा के पहले समाचार पत्र के साथ भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया। बालशास्त्री जम्भेकर ने सार्वजनिक पुस्तकालयों के महत्व को समझा। उन्होंने श्द बॉम्बे नेटिव जनरल लाइब्रेरी की स्थापना की। उन्होंने नेटिव इम्प्रूवमेंट सोसाइटी भी शुरू की, जिसमें से स्टूडेंटस लिटरेरी एंड साइंटिफिक सोसाइटी एक शाखा थी। दादाभाई नवरोजी और भाऊ दाजी लाड जैसे बौद्धिक दिग्गजों ने इन संस्थानों के माध्यम से प्रेरणा ली।
1840 में उन्होंने पहला मराठी मासिक, दिग्दर्शन प्रकाशित किया। उन्होंने 5 साल तक इस पत्रिका का संपादन किया। दिग्दर्शन ने भौतिकी, रसायन विज्ञान, भूगोल, इतिहास आदि सहित विभिन्न विषयों पर लेख प्रकाशित किए।
उन्हें मराठी, संस्कृत, अंग्रेजी और हिंदी सहित कई भाषाओं में महारत हासिल थी। इसके अलावा उन्हें ग्रीकए लैटिन, फ्रेंच, गुजराती और बंगाली पर भी अच्छी पकड़ थी।
वह एशियाटिक सोसाइटी के त्रैमासिक जर्नल में शोध पत्र प्रकाशित करने वाले पहले भारतीय थे। वह १८४५ में ज्ञानेश्वरी को छापने वाले पहले व्यक्ति थे। इसे पहले मुद्रित संस्करण के रूप में जाना जाता था।
उन्हें मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में हिंदी के पहले प्रोफेसर के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने कोलाबा वेधशाला के निदेशक के रूप में भी काम किया। उन्होंने नीतिकथा,नैतिकता पर कहानियां, इंग्लैंड का विश्व को, इतिहास, अंग्रेजी व्याकरण, भारत का इतिहास और शून्य पर आधारित गणित जैसी किताबें लिखीं।
वह 1830 से 1846 के दौरान सक्रिय रहे और उन्होंने महाराष्ट्र और भारत की बेहतरी के लिए काम किया। उनका जीवन काल मात्र 34 वर्ष का था। लेकिन उन वर्षों में भी उन्होंने लोगों को शिक्षित करने और वैज्ञानिक मानसिकता विकसित करने का प्रयास किया। उन्होंने 1832 से 1846 की अवधि के दौरान एक समाज सुधारक और एक पत्रकार के रूप में अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी।