भारतीय लोकतंत्र में 25 अक्टूबर की तारीख बहुत खास है। 1951 में इसी दिन से चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई थी, जब हिमाचल प्रदेश के चिनी में पहला वोट डाला गया था। 489 सीटें लोकसभा सीटों पर वोटिंग 25 अक्टूबर 1951 को शुरू होकर 21 फरवरी 1952 तक चली थी. टाटा ग्रुप से लेकर गोदरेज ग्रुप तक उस समय एक बड़ा नाम बन चुके थे.  

15 अगस्त 1947 को जब भारत ब्रितानवी हुकूमत की दासता से आजाद हुआ था तब किसने कल्पना की होगी कि संसदीय लोकतंत्र अपनाकर देश दुनिया की सबसे बड़ी चुनाव प्रक्रिया वाला राष्ट्र बन जाएगा. 16वीं लोकसभा के चुनाव के लिए करीब 81 करोड मतदाताओं का निबंधन समूची दुनिया को सुखद आश्चर्य मे डालने वाला है. लगभग हर आम चुनाव के समय भारतीय नागरिक सबसे बड़े मतदाता समूह और चुनावी ढांचे वाले देश के रूप में चिन्हित किए जाते हैं. चुनाव प्रणाली और लोकतंत्र की चाहे जितनी खामियां निकाली जाएं, लेकिन जब अतीत मे लौटकर विचार करें तो इसे अविश्वसनीय उपलब्धि कहा जा सकता है.

वास्तव में आजादी के बाद भारत का पहला आम चुनाव इसी रोमांचक के सामूहिक मनोविज्ञान में संपन्न हुआ था. पहले आम चुनाव में लोकसभा की 497 तथा राज्य विधानसभाओं की 3,283 सीटों के लिए भारत के 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाताओं का पंजीयन हुआ था. इनमें से 10 करोड़ 59 लाख लोगों ने, जिनमें करीब 85 फीसद निरक्षर थे, अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव करके पूरे विश्व को आश्चर्य में डाल दिया था.

25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक यानी करीब चार महीने चली उस चुनाव प्रक्रिया ने भारत को एक नए मुकाम पर लाकर खड़ा किया. यह अंग्रेजों द्वारा लूटा-पीटा और अनपढ़ बनाया गया कंगाल देश जरूर था, लेकिन इसके बावजूद इसने स्वयं को विश्व के घोषित लोकतांत्रिक देशों की कतार में खड़ा कर दिया.

भारत के पहले आम चुनाव के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • ऐतिहासिक मतदान:
    • स्वतंत्र भारत का पहले आम चुनाव 25 अक्तूबर, 1951 और 21 फरवरी, 1952 के बीच हुए थे।
    • यह एक वृहद प्रक्रिया थी जिसमें विश्व की जनसंख्या का छठा हिस्सा मतदान करने जा रहा था, जिससे यह उस समय दुनिया में आयोजित सबसे बड़ा चुनाव बन गया।
      • अंततः देश भर से (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) 17.32 करोड़ मतदाता मतदान देने के लिये नामांकित हुए, और इनमें लगभग 45% महिलाएँ थीं।
    • 21 वर्ष से अधिक आयु के 176 मिलियन मतदाताओं के साथ (मतदान की आयु 1989 में इकसठवाँ संविधान (संशोधन) अधिनियम, 1989 के पारित होने के साथ केवल 18 वर्ष कर दी गई थी), यह पहली बार था कि सार्वभौमिक मतदान का इतने बड़े पैमाने पर अभ्यास किया गया। वयस्क मताधिकार लागू किया गया था, और इनमें से 82% मतदाता निरक्षर थे।
  • कानूनी ढाँचा:
    • संसद ने मतदाता योग्यता, निर्वाचन मशीनरी और अन्य निर्वाचन प्रक्रियाओं के लिये आधार तैयार करते हुए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 को अधिनियमित किया।
    • भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) की स्थापना जनवरी, 1950 में की गई थी, जिसमें सुकुमार सेन पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त के तौर पर नियुक्त हुए थे।
  • निर्वाचन मशीनरी:
    • निरक्षर मतदाताओं की सहायता के लिये रंगीन मतपेटियों और 1 रुपए के नोट के आकार के मतपत्रों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया।
      • वर्ष 1951 में भारत की साक्षरता दर कम होने (18.33%) के कारण प्रत्येक उम्मीदवार के लिये अलग-अलग रंग की मतपेटियों का उपयोग करने का विचार आया, लेकिन इसे अव्यवहारिक माना गया। इसके बजाय, सभी बूथों पर प्रत्येक उम्मीदवार के लिये अलग-अलग मतपेटियों का उपयोग करने का निर्णय लिया गया, जिस पर उम्मीदवार का चुनाव चिह्न अंकित होना था।
      • मतपत्र गुलाबी रंग के होने के साथ "भारत निर्वाचन आयोग" और राज्य को दर्शाने वाले दो अक्षरों वाले क्रमांक को शामिल किया गया- जैसे हैदराबाद राज्य के लिये HY, बिहार के लिये BR, असम के लिये AS, आदि।
  • राजनीतिक परिदृश्य और पार्टी की भागीदारी:
    • वहाँ 53 राजनीतिक दल थे जिनमें से 14 राष्ट्रीय थे। इनमें भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, किसान मज़दूर प्रजा पार्टी और अखिल भारतीय हिंदू महासभा समेत अन्य समूह शामिल थे।
  • चुनाव परिणाम:
    • जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस प्रमुख राजनीतिक बल के रूप में उभरी, जिसने 489 लोकसभा सीटों में से 318 सीटें प्राप्त कीं और सत्तारूढ़ दल के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत की।
      • पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party of India- CPI) उपविजेता बनकर उभरी, उसके बाद सोशलिस्ट पार्टी और अन्य राजनीतिक दल रहे।
न्यूज़ सोर्स : ipm