गर गाय न होती तो नागर सभ्यता का विकास संभव नहीं था। गायों से उत्पन्न नंदी धरती के श्रंगार के वाहक माने जाते थे। किंतु आधुनिक खेती के दौर में बैलों की संख्या में कमी आई है। किसान खेती से फसल तो खूब उगा रहा है लेकिन उसे सहीं लाभ नहीं मिल पाना इन बैलों की अनदेखी भी है। 
धरती को उसके असल रूप में रखकर मानव जाति को जीवित रखने की निरंतरता एवं ध्यानाकर्ष हेतु हमारे पूर्वज ऐसे पर्व मानते आए है। आज पोला के पावन अवसर पर नंदी महाराज एवं बैलों की किसी ना किसी रूप में पूजा की गई। खासकर दक्षिण भारत में इस पर्व  की धूम रही। ग्रामीण अंचल में बैलों को सजाकर उनकी पूजा अर्चना एवं भोजन प्रसाद खिलाया गया। साथ ही ग्रामीणों ने एकदूसरे को गले लगाकर भाइचारे का परिचय दिया। 

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कटंगी विधानसभा के ग्राम बोनकट्टा में पारंपरिक पोला पर्व  मनाते विधायक गौरव पारधी

3 सितंबर को पांढुर्ना में खूनी गोटमार मेला

छिंदवाड़ा: विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला 3 सितंबर को पांढुर्ना में मनेगा। पांढुर्ना व सावरगांव के बीच जाम नदी पर गोटमार खेलने की परंपरा को निभाकर एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए जाएंगे। पोला पर्व के दूसरे दिन होने वाले गोटमार मेले पर भले ही खून की धारा बहेगी, पर दर्द को भूलकर परंपरा निभाने का जोश कम नहीं होगा।

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