सत्ता के लिए , जाति के अंदर जातिवाद ,कैसे विकसित होगा भारत ?
भारत के विदेशों में रहे अब तक के कई राजदूतों की माने तो विकसित भारत के निर्माण के लिए जातिवाद का अंत आवश्यक है। अपने विकसित देशों के अनुभओं को सांझा करते हुए कुछ अन्य जानकार बताते हैं कि भारतीय समाज ने जातिगत पहचान को बनाए रखा और पोषित किया है क्योंकि इससे प्रमुख आवाज़ों को लाभ मिलता है क्योंकि श्उच्च जातियों के अधिकार और विशेषाधिकार निम्न जातियों की विकलांगता को पाषित करते हैं। भारतीय समाज में जाति के रूप में असमानता का एक अथाह सामाजिक स्तरीकरण मौजूद है। जाति आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और शैक्षिक हाशि, पर समुदाय को धकेलती है। अनुसूचित जातियों, यानी इस स्तरीकरण में सबसे निचले पायदान पर रहने वाले,से संबंधित व्यक्तियों को जिस तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है, उसमें दासता, बंधन, हाथ से मैला ढोना, व्यावसायिक मौतें,चुनिंदा पुलिसिंग, बेहिसाब बलात्कार और हत्याएं शामिल हैं।
सिर्फ संविधान ही ला सकता है समावेशी विकास
इस वक्त जातिगत जनगणना को लेकर शिक्षत लोगों की मुर्खतापूर्ण बहस चल रही है,इस वक्त जातिगत जनगणना को लेकर शिक्षत लोगों की मुर्खतापूर्ण बहस चल रही है। कथित शिक्षत समाज के लोग एवं सत्ता के लिए एवं सत्ता में बने रहने के लिए जातिवाद को उसकी घरेलू सीमाओं से निकालने की बजाय वोट बैंक की राजनीति की जा रही है। जाति की उत्पत्ति शुद्धता के पैमाने पर एक व्यवसाय-विशिष्ट श्रेणी के रूप में हुई थी। क्योंकि उस वक्त हमारे पास संविधान नहीं था। आज हमारे पास संविधान है,ऐसी अवस्था में देश को जातियों में बांटना पदानुक्रमिक विभाजनों का संकेत करती है।
जिसकी जितनी ज्यादा जाति, उनका ही विधानसभा एवं संसद में समावेशी नेतृत्व कम
जातिवाद को खत्म करने को इस नजरिये से भी देखा जाना चाहिए कि अगर आकड़ों को देखें तो जिस समाज की जनसंख्या देश में अधिक उसी के नेता शीर्ष तक समावेशी रूप से कम पहुंचे हैं। इसके लिए राजनीतिक बहस के बजाय तथ्यात्मक शोध होने चाहिए। जो राजनीतिक दल जातीवाद को बढ़ानें जातीय जनगणना जैसी बातें कर रहे हैं वे जाति के नाम पर सिर्फ राजनीति करना चाह रहे हैं।
गरीबी का हो सही चिन्हांकन
ऐसे कई विकसति देशों के अध्ययन से पता चलता है कि वहां जाति की नहीं गरीबी की जनगणना की जाती है। तकनीक के उपयोग से आज सब संभव है। एक ऐसा डेटाबेस तैयार किया जा सकता है जिसके आधार पर कानूनन लाभ एवं मानवीय विकास किय जा सकता है। पर इस को लेकर अब तक की सरकारें बचती आईं है।
विगत दिनों कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने जातिगत जनगणना के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को पत्र लिखते हुए कहा कि ये लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।
बीजेपी ने कभी खुल कर जातीय जनगणना का विरोध नहीं किया है, लेकिन बिहार की जातिगत गणना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया से लेकर अब केंद्रीय मंत्री अमित शाह के ताजा बयान तक बीजेपी के स्टैंड में बड़ा बदलाव महसूस किया जा सकता है. अब तक सिर्फ संसद में ही सरकार की तरफ से जातिगत जनगणना से साफ तौर पर इनकार की बात सुनी गयी है. एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि सरकार का जातिगत जनगणना का कोई इरादा नहीं है।
For power, casteism within caste, how will India develop?