किसानों को आत्मनिर्भर बनाने तैयार हो सामुदायिक खेती नेटवर्क

भारत सरकार द्वारा वर्तमान में लाए गए तीन कृषि कानूनों का देशभर में राजनीतिक विवाद हो रहा है। सरकार दावा कर रही है कि इस विधेयक से जहां किसान आत्मनिर्भर होकर अपने उत्पाद को कहीं भी बेच सकेंगे, कृषि में नए-नए नवाचार कर सकेंगे वहीं कई किसान संगठन इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं। खैर यह कृषि का राजनीतिक विषय है लेकिन है जिस कृषि के सकारात्मक पहल की बात कर रहे हैं, वह सबसे जुदा हैं। सभी राज्यों की सरकारों को इस विषय पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए।
काॅनटेक्ट नहीं कम्युनिटी फार्मिंग की दरकार
आज हम किसानों की आय दुगुनी करने के जादुई प्लान पर चर्चा करते हैं। वर्तमान में विवाद जो हो रहा है वह काॅनटेक्ट फार्मिंग पर हो रहा है ऐसी स्थिति में सामुदायिक खेती का विकल्प सबसे बेहतर विकल्प है। इस खेती अंतर्गत समूह-समितियों के माध्यम से 10-10 किसानों को प्रशिक्षित कर इस तरह की खेती हेतु तैयार किया जा सकता है। अमेरिका में लगभग 16 हजार से अधिक सामुदायिक फार्म हैं। इस फार्म में स्थानीय युवा सामुदायिक खेती कर रहे हैं, अमेरिका के कृषि उत्पाद का बड़ा हिस्सा सामुदायिक खेती से ही आता है। जापान और यूरोप में भी इसका ट्रेंड है। इसके लिये वहाँ की सरकार लोगों को उनके पड़ोस में जमीन उपलब्ध कराती है लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। यहाँ लोगों को हमेशा से अपने काम के लिये किसी न किसी की मदद चाहिए होती है। भारत की सरकार सामुदायिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में कम प्रयास कर रहीं हैं।
तकनीक को बनाया जाए आत्मनिर्भरता का सहारा
हम शहर से जब बाहर निकलते हैं तो देखते हैं कि कई लाखों एकड़ जमीन खाली पढ़ी है, वहीं गाॅव में जाकर देखते हैं कि हजारों युवा बेरोजगार पड़े हैं। जमीन बंजर हो रहीं हैं और युवा तकनीक के गलत उपयोग से बेरोजगार के बेरोजगार। सरकार को चाहिए कि वह काॅरपोरेट घरानों की जिद छोड़ जमीनी गैर-सरकारी संगठनों को मजबूत कर “किसान स्टार्टअप मूवमेंट “ चलाएं। ग्रामीण अंचलों में कार्य कर रहे स्वैच्छिक संगठनों एवं महिला समूहों को सामुदायिक खेती कराने प्रयोगवादी नीति पर कार्य करें। तकनीक का किसानी में उपयोग बढ़ाने अपने सरकारी तकनीकी नेटवर्क के साथ छोटे शहर-कस्बों के डिजिटल स्टार्टअप को बढ़ावा देकर किसानों के उत्पाद की ब्रांडिंग एवं ट्रेडिंग में सहयोग करें।
स्कूल-काॅलेज भी जुड़े सामुदायिक खेती से
भारत की आधी आबादी खेती एवं देसी उत्पाद का उत्पादन कर रही है, लेकिन इस को लेकर भारत में कोई नवाचारी प्रयोग नहीं हैं। बेढ़ंग शिक्षा व्यवस्था में दिखावा ज्यादा और रोजगार के अवसर कम हैं। स्कूलों में सप्ताह में एक दिन कृषि कार्यालय का आयोजन होना चाहिए, साथ ही एक दिन खेत में प्रायोगिक कार्य कराया जाना चाहिए।
क्या कहते हैं ये सामुदायिक किसान
हम एनजीओ के माध्यम से भोपाल के आसपास 100 किसानों को सामुदायिक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं,इनकी सब्जी को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से बेचेंगें।
राहुल नागर मण्डीदीप
हम किसानों को परंपरागत खेती में नवाचार कर किसानों को सामुदायिक खेती करने प्रोत्साहित कर रहे हैं। किसानों को "गाॅववाला ऐप" पर फसल रख बाजार का हिस्सा बनने की ट्रेनिंग दे रहे हैं।
हेमन्त हनवत बालाघाट
पारम्परिक कृषक तकनीक के इस्तेमाल या नये प्रयोग से डरते हैं,जबकि सामूहिक खेती से आम शहरियों के साथ छोटे किसानों को भी आगे बढ़ने का अवसर मिलता है।
सौरभ कुमार बिहार
आज लोगों को नहीं पता कि किस तरह सब्जियों के जरिए वे एक प्रकार के जहर का सेवन कर रहे हैं। यह बच्चों के दिमागी विकास तक को प्रभावित कर रहा आखिर इसका क्या हल हैए तब मैंने बताया कि मेरे पास जमीन है। अगर उस पर सब मिलकर खेती करेंए तो सभी को फायदा होगा। इस तरह एक नई शुरुआत हुई।
विक्रान्त तोंगड़ . नोएडा
कुछ सालों से सामूहिक खेती कर रहे हैं। उनकी तरह अलग-अलग पेशों के 14 से 15 लोग हैं, जो साथ मिलकर तीन एकड़ भूमि में सब्जियों का उत्पादन करते हैं। पैदावार होने पर उसे आपस में बाँट लिया जाता है। स्थानीय किसान खेतों की देखभाल करते हैं,जबकि उनको खाद वगैरह उपलब्ध करा दी जाती है।
विशाल -पुना