मप्र में विकासात्मक पहलों को देखेगा जिला स्तरीय लैंस, समन्वय परिषद का हो सकता है गठन

योगेन्द्र पटेल
मप्र की कमलनाथ सरकार ग्रामीण विकास को लेकर एक जिला स्तरीय माॅडल की घोषणा मप्र स्थापना दिवस पर कर सकती है। सूत्र बताते है कि इस को लेकर आज योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग ने जिला सरकार माॅडल का मसौदा मुख्य सचिव कार्यालय को भेज दिया है। खबर है कि सरकार जिला स्तर पर विकासात्मक कार्यों पर नजर रखने समन्वय परिषद का गठन भी कर सकती है। बताया जा रहा है कि सत्ता के विकेन्द्रीकरण की इस पहल के तहत प्रभारी मंत्री को लगभग दो करोड़ तक के कार्य करवा सकने का पावर प्राप्त हो जाएगा। प्रत्येक जिले में एकल, एकीकृत योजनाओं के माध्यम से विकास को आगे बढ़ाया जाएगा, एक जिला, एक योजना जो सरकार के प्रत्येक क्षेत्र के साथ-साथ प्रत्येक जिले में समुदायों और नागरिक समाज क्षेत्रों की भूमिका को रेखांकित करेगी। नए मॉडल के लिए आवश्यक होगा कि राष्ट्रीय बजट और कार्यक्रमों को स्थानिक रूप से जिलों में बजट चक्र से संदर्भित किया जा सकेगा। प्रांतीय सरकार के बजट और कार्यक्रमों की एक समान पुनरावृत्ति होगी।नियोजन में यह बदलाव नागरिकों के बीच की दूरी को कम करने और नागरिकों द्वारा विकास में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने और दीर्घकालिक योजना के साथ-साथ तत्काल ज्वलंत मुद्दों पर प्रतिक्रिया देने में सक्षम होने की उम्मीद है। घोषणा स्थानीय सरकार के वित्त की स्थिति पर निर्भर होगी, स्थानीय समुदाय के द्वारा बनाए गए बजट अनुसार विकास कार्य होने से घोषणाओं के शत प्रतिशत हो जाने की उम्मीद रहेगी।
क्या होगा जिला सरकार में ?
विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया को धीमा करने में विभिन्न संस्थागत चुनौतियों और सिस्टम से जुड़ी तमाम समस्याएं है। मिसाल के तौर पर राज्यों की एक बड़ी संख्या इससे जुड़ी जरूरी अर्हताओं जैसे कि राज्य पंचायत अधिनियम की व्यवस्था करना, राज्य वित्त आयोग का गठन करना तथा राज्य निर्वाचन आयोग के साथ ही जिला योजना कमेटियों का गठन करने आदि को पूरा करती हुई नजर आती है। लेकिन अभी बड़ी संख्या में राज्य ऐसे भी हैं जिन्होंने इन निकायों को अभी तक धन और अधिकारों का हस्तांतरण नहीं किया है। इनमेंसे मप्र भी एक है। एक ओर केरल और पश्चिमी बंगाल जैसे राज्यों ने 26 विभागों में ये हस्तांतरण कर दिया है वहीं कई राज्यों में सिर्फ तीन विभागों तक में ही ये काम हो पाया है। तमाम मामलों में जिन राज्यों ने ये हस्तांतरण हो भी चुका है वहां पर भी इन विभागों की ओर से पंचायतों को व्यावहारिक और जमीनी स्तर पर ये हस्तांतरण नजर नहीं आता है। यहां पर नौकरशाह और विभाग तथा एजेंसियां ही सारा काम अपने हाथ में लिये हुए हैं। कई राज्यों में तो पंचायतों के समानांतर नयी संस्थाएं खड़ी की जा रही हैं जो उनके हिस्से का सारा काम कर रही हैं। मिसाल के तौर पर हरियाणा सरकार ने एक ग्रामीण विकास एजेंसी मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बना दी है जो स्थानीय निकायों का सारा कामकाज देखती है। सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं को ज्यादा बेहतर तरीके से लोगों से पहुंचाने के लिए पंचायती राज संस्थाओं का इस्तेमाल किये जाने को लेकर बनी एक विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि एक मनरेगा और पिछड़े क्षेत्रों को दी जाने वाली सहायता राशि बैकवर्ड रीजन ग्रान्ट फंड को छोड़ दें तो लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा केन्द्रीय योजनाओं में से किसी में भी पंचायती संस्थानों को अहम भूमिका नहीं दी गई। ये हाल तब है जब कैबिनेट सचिव ने अपने आदेश में साफ तौर पर इसे लागू किये जाने को कहा था। आज भी विभिन्न राज्यों में इन कामों को संबंधित विभाग ही संभाल रहे हैं। मोटे तौर पर कहें तो पंचायतों को अभी भी स्थानीय शासन प्रक्रिया के पूर्ण रूप से स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में तैयार होना अभी बाकी है। इसके पीछे बड़ी वजह है राज्यों के राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही का लगातार हो रहा विरोध जो मानते हैं कि पंचायतों के उभार के साथ ही उनकी भूमिका निरर्थक होती जायेगी। इस तरह 73वें संविधान संशोधन के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी साफ नजर आती है। मप्र की वर्तमान सरकार जिला सरकार के विकेन्दीकृत रूप को जनता के सामने लाकर समुदाय के साथ मिलकर योजना बनाने की बड़ी पहल कर रही है, उम्मीद की जा सकती है की इसमें बड़ी सफलता मिलेगी।