शालिग्राम वैसे तो दिखाई देने में एक काले पत्थर के जैसा होता है लेकिन शास्त्रों में इसे श्री विष्णु के समान ही माना गया है। यह पवित्र प्रतिमा गण्डकी नदी से प्राप्त होती है।
वैष्णव संप्रदाय में पूरी भक्ति और विश्वास के साथ रोज शालिग्राम की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग सात्विक आहार और विचार रखते है उनके लिए शालिग्राम की पूजा विशेष फल देने वाली होती है।
ऐसे लोग जो भगवान विष्णु की भक्ति करते हैं उनके लिए शालिग्राम का पूजन उन्नतिकारक माना गया है। शालिग्राम की पूजा में तुलसी के पत्ते की बड़ी भूमिका है।

ऐसा कहते है कि जैसे भगवान् शिव शिवलिंग पर अभिषेक के बाद सिर्फ एक बिल्वपत्र से संतुष्ट होकर अपने भक्त पर कृपा करते है ठीक उसी प्रकार श्री नारायण भी शालिग्राम पर एक तुलसी का पत्ता अर्पण करने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं।
शालिग्राम की नित्य पूजा करने से मनुष्य के सारे रोग और संताप नष्ट हो जाते हैं और वो सुख समृद्धि प्राप्त करता है। अगर किसी के घर परिवार में अशांति और कलह हो तो ऐसे व्यक्ति को अपने पूजा घर में शालिग्राम जी को स्थापित करना चाहिए और नित्य सेवा करनी चाहिए।
आपको यह भी बता दे कि शालिग्राम की प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि इसे साक्षात विष्णु का स्वरुप माना गया है इसलिए आप सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के बाद यानी उत्तरायण में माघ के महीने में स्थिर लग्न में इसे स्थापित कर सकते हैं।

सबसे पहले आप शालिग्राम को तांबे के पात्र में स्वच्छ करके रखे और गंगाजल से उसका अभिषेक करें। उसके बाद पंचामृत से स्नान करवाकर शुद्ध स्नान करवाएं। इसके बाद शालिग्राम पर तुलसी चढ़ाए, चंदन लगाए और घी का दीपक जलाए। फिर श्री विष्णु को याद करते हुए दक्षिणा और मिठाई रखें।

श्री विष्णु की आरती करें और यथा सम्भव किसी गरीब को भोजन करवाकर उसे दक्षिणा दें। इसके बाद उस शालिग्राम को अपने देवालय में रख दें। इसके बाद आप रोज जल से अभिषेक करें, चंदन लगाए, तुलसी चढ़ाएं और प्रभु की आरती कर प्रसाद बांट दें।
अगर आप किसी विशेष फल की इच्छा से पूजा कर रहे हैं तो नित्य 'ॐ नमो: नारायणाय' की एक माला अवश्य करें।