बालाघाट।  आज  कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। घरो में देवताओं का विधि-विधान से पूजन कर गन्ने का मंडप सजाकर तुलसी-शालीग्राम का विवाह कराया जाएगा। आंगन को साफ कर शाम को तुलसी विवाह हिन्दु परंपरा के साथ मंगलाष्टक के साथ होगा। देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता हैं। कहते हैं कि इस दिन चार माह की निद्रा के बाद भगवान विष्णु जागते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं। एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। कहते हैं कि इस दिन से शुभ एवं मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। मान्यता है कि एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। भगवान श्रीहरि की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

चार माह की निद्रा योग के बाद आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु शयन काल से जागेंगे और फिर से अपना कार्यभार संभाला। इस दिन शाम के समय पूजन के बाद भगवान विष्णु से जागने का आह्वान किया गया। आज के दिन से मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी हो जाएगी। इतना ही नहीं, देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी पूजन का भी विशेष महत्व है। इस दिन तुलसी जी का विवाह भगवान विष्णु अवतार शालीग्राम के साथ किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण 23 नवंबर सोमवार को किया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी की पूजा-अर्चना करके, हिन्दु परंपरा के अनुसार मंगलाष्टक के साथ गन्ने का मंडप सजाकर तुलसी और शालीग्राम के विवाह कराया गया।

देवउठनी एकादशी पूजन पर गन्ने का विशेष महत्व होता है। इस दिन शालिग्राम और तुलसी के विवाह के लिए हिन्दु परंपरानुसार गन्नों को तुलसी के गमले के पास मंडप के रूप में सजाया जाता है। जिसके चलते बाजार में जगह-जगह गन्ना की दुकानें लगी है। जिन्हें आज घर लेकर ग्यारस पर शाम को गन्नों का मंडप तैयार कर तुलसी-शालिग्राम का विवाह रचाया जाएगा।

न्यूज़ सोर्स : ipm