लेखक -योगेन्द्र पी पटेल 

                      वैश्विक अर्थव्यस्था के समावेशीकरण एवं सतत विकास लक्ष्य 2030 को प्रकृति सम्मत एवं सामुदायिक सहभागिता के साथ जमीन पर हासिल करना एक बड़ी चुनौति है। जितना G- 20 का यह कार्यक्रम परदे पर शुलभ लग रहा है उसे धरातल पर उतारना उतना ही चुनौतिपूर्ण है। 
अब तक हुए जी -20 सम्मेलनों की तड़क -भड़क के बाद इससे क्या हासिल हुआ इस पर जानकार सवाल उठाते हैं जानकारों का मानना है कि शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के संगठन जी-20 की चर्चा तो खूब होती है लेकिन अधिकतर देशों के पास इस के लक्ष्य को धरातल पर उतारने को लेकर संसाधनों एवं राजनीतिक-प्रशासनिक इच्छा शक्ति का अभाव है। अब तक हुईं 17 बैठकों के बाद जो परिणाम हासिल हुए हैं उन में से बस एक दो देश ही इसके महत्कांक्षी लक्ष्य अनुरूप सफल हो सके हैं। 
   खैर इस बार जी -20 के इस सम्मेलन के बाद भारत जिसे विश्व गुरू के रूप में देखा जा रहा उम्मीद जागी है कि इस बार जो एजेंडे तय किये गए हैं उसे हासिल करने में भारत तेजी से अपने जमीनी प्रयास तेज कर देगा।

     लक्ष्य चुनौति एवं समाधान-
जी-20 के जो महत्वकाक्षी लक्ष्य तय किये गए हैं उसे हासिल करने में मप्र सबसे आगे हो सकता है। मप्र देश का ऐसा पहला राज्य नजर आता है जहां समावेशी विकास हेतु सरकार समुदाय को प्रशासन में सहभागी बना रही है एवं समाज को हर क्षेत्र में नेतृत्व कौशल के लिए तैयार कर रही है। मप्र सरकार ने योजना सांख्यिकी विभाग के उपक्रम जन अभियान परिषद के साथ मिलकर जो सामुदायिक ढ़ांचा तैयार किया है वह जी-20 के लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 

   क्या हैं  G-20 , 2023 के लक्ष्य
जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौति है जो प्रकृति के प्रति मानव संवेदना के अभाव के कारण पैदा हो रही है। भौतिक सुख की चाह में वर्तमान में समुदाय अपनी नैतिक प्राकृतिक जिम्मेदारी भूलता जा रहा है। मप्र सरकार इस को लेकर बहुत अधिक चिंतित एवं सुधारपरक दिशा में कार्य करती नजर आती है,यहां के मुख्यमंत्री हर दिन पौधे लगाते नजर आते हैं वहीं हजारों वालिंटियर हर दिन पौधे लगाने के कैंपेन का संचालन करते नजर आते हैं। मप्र जन अभियान परिषद इस को लेकर अति सजग नजर आता है,इसी का परिणाम है कि मप्र के स्वयंसेवी संगठन इस दिशा में तेजी से कार्य करने प्रेरित हो रहे हैं। प्रदेश के कागजी नहीं जमीनी संगठनों का इस ओर रूझान जी 20 के लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा सुधारवादी कदम हो सकता है। 
सामुदायिक व्यापार
दुनियाभर के कुछ देशों ने सामुदायिक व्यापार नीति को बढ़ावा देकर समग्र आर्थिक विकास को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ग्राम का रोजगार ग्राम में एवं स्थानीय उत्पादों के उगाने से लेकर बेचने तक की यूनिट स्थानीय समुदाय के हाथ में होने से पूंजीवादी सोच से परे एक समग्र कल्याणवादी दिशा में कदम बढ़े हैं इस दिशा में भी मध्यप्रदेश अव्वल राज्य की श्रेणी में माना जा सकता हैं। किसान उत्पाद समूहों के साथ सामुदायिक नेतृत्व कौशल में उद्यम आधारित पाठयक्रम को प्रायोगिक रूप से समुदाय के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है ,वह विकास लक्ष्य अनुरूप उम्मीद भरा लगता है। इस कार्य में भी परिषद के नेटवर्क को शामिल कर समावेशी विकास गति में तेजी लायी जा सकती है। 
सामुदायिक स्वास्थ्य नीति
दुनियाभर के लिए आज स्वास्थ्य एक बड़ी चुनौति है। यह चनौति भी मानव निर्मित ही लगती है,एक तरह जहां एलौपैथी से जीवनदान भी मिल रहा है वहीं इसके अधिक उपयोग से साइड इफेक्ट के भी खतरे बढ़ गए है। इस दिशा में जागरूकता का अभाव है। सरकार इस को लेकर परिषद के नेटवर्क में से समितियों को ग्राम संजीवनी जैसे केन्द्र के रूप डेवलपमेंट पर विचार कर सकती है,इन केन्द्रों पर बीमारी के आने पहले ही प्रकृति सम्मत उपाय एवं समाधानों पर जन जागरण कर कई बीमारियों को आने के पूर्व ही रोका जा सकता है। 
उर्जा की अनावश्यक खपत पर जन जागरण
उर्जा का दोहन एक भयावह समस्या है। समुदाय उर्जा के उपभोग की तो बात करता है लेकिन इसके बचाव को लेकर कम सोचता है। अनावश्यक रूप से बिजली खर्च पर जन जागरूकता पर एनजीओ वर्क कर सकते हैं एवं नगर-ग्राम विकास समितियों को इस के जागरण को लेकर कुछ अधिकार प्रदान कर स्थानीय स्तर पर इस समस्या के समाधान पर विचार किया जा सकता है। सौर उर्जा की दिशा में छोटे-छोटे यूनिट समितियों के माध्यम से संचालित किये जा सकते हैं जो उर्जा उत्पादन के लिए हमारे प्राकृति दोहन को रोकने में सहायक हो सकते हैं। 
सामुदायिक कृषि
अब समय आ गया है कि किसान अपनी खेती को एक उद्यम के रूप में करें। जी-20 के बहुत से देश इस की शुरूआत भी कर चुके हैं। जर्मनी, जापान एवं स्विटजरलेंड जैसे देश इस तरह की खेती से ही विकसित देशों की श्रेणी में आ चुके हैं। भारत को भी अपने सामुदायिक ढ़ाचे में ढ़ालने प्रायोगिक प्रयास करने चाहिए। भारत के बिहार में इस को लेकर प्रयास भी किये गए लेकिन वह सफल होते नहीं दिख रहा है। मप्र इस को लेकर भी नवाचारी प्रयास कर सकता है। जन अभियान परिषद के माध्यम से कौशल विकास पाठयक्रम के इस ओर रूझान रखने वाले विद्यार्थियों का समूह बनाकर सामुदायिक खेती की शुरूआत की जा सकती है। 
भ्रष्टाचार पर विराम
भारत में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार निर्माण कार्य में है। राजनीतिक अकुशलता एवं निर्माण कार्य में समुदाय के साथ विविल सोसायटियों की कम भागीदारी इसका कारण है। विकसित देशों में जिस तरह स्थानीय,सड़क,भवन,नाली,आदि बनाने का कार्य स्थानीय समुदाय के संरक्षण एवं सोसायटियों के माध्यम से होता है वैसा भारत में नहीं हो रहा है। यहां राजनैतिक कमिशनखारी एवं सामुदायिक निगरानी के अभाव में सड़कें बनते से हीं टूट जाती है। भष्टाचार पर विराम लगाने सामुदायिक निगरानी एवं निर्माण तंत्र को विकसित किया जाना अति आवश्यक है। 
                   स्वैच्छिक संगठन  वास्तव में विकास, शिक्षा और व्यावसायिकरण के सूत्रधार हैं । बस देश में इस ओर धरातल पर कम ध्यान दिया जा रहा है। कागजों पर चल रहे एनजीओ की बाढ़ के बीच मप्र सरकार ने जन अभियान परिषद के माध्यम से जो गैरसरकारी संगठनों को संबल देने को प्रयास किया है वह उत्तकर्णिय तो है ही लेकिन सुधारवादी भी है। इस दिशा में राजनीतिक एजेंडे से उपर उठकर सामाजिक एजेंडे की ओर जाने की दरकार भी नजर आती है। हमें उम्मीद है इस लेख से मप्र सरकार भी जी 20 के लक्ष्य अनुरूप गैर सरकारी संगठनों के विकास में और एक कदम आगे बढ़ाएगी एवं उन सभी महत्वकांक्षी लक्ष्यों को सहीं में जमीन पर उतारने का प्रयास करेगी। 

 

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