योगेन्द्र पटेल-लेखक एवं वेब ब्लागर

प्रेस की आजादी को सही मायने में वेब मीडिया ने आजाद कर दिया ऐसा प्रतीत हो रहा है,तथ्यात्मक रूप से यह सच है या नहीं यह तो जनता तय करेगी लेकिन उन पत्रकारों के लिए यह एक बेहतर माध्यम बनता जा रहा है जिनकी खबरों को कभी कारपोरेट मीडिया घराने रद्दी की टोकरी में डाल दिया करते थे। वर्तमान में वेब मीडिया ने लिखने वालों को एक नया मंच दिया है, खेजी पत्रकार एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़ी खबरों लेखों को जन के मन तक पहुंचाने में वेब मीडिया अपनी अलग भूमिका निभा रहा है। यह अलग बात है कि वेब मीडिया में भी तथ्यविहीन खबरों से अनफिट पत्रकारों का कचरा बढता जा रहा है जिसे फिल्टर करना भी एक बड़ी चुनौति है। देश में इस वक्त लाखों वेब माध्यम चल रहे हैं युवा पत्रकार इसका सहारा भी ले रहे हैं लेकिन वेब के सर्च इंजन में वे मुद्दे गायब हैं जिनकी दरकार है। इस परिदृश्य से ऐसा लगर रहा है कि 3 मई 1991 में बना विश्वयापी पत्रकारिता की आजादी का वह घोषणा पत्र कार्य नहीं कर रहा जो प्रेस की आजादी के लिए जारी किया गया था। विभिन्न एलेक्ट्रॉनिक माध्यमों सहित परम्परागत रूप से प्रकाशित अखबारों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रेस की स्वतंत्रता कहा जाता है। किन्तु इस समस्या का एक दूसरा पहलू भी है। दुनियाभर में मीडिया कार्पोरेट के हाथ में है जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फ़ायदा कमाना है। वास्तव में कोई प्रेस स्वतंत्रता है ही नहीं। बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं और इसी वजह से वे दिखावी जीवनशैली के आदी हो गए हैं। वो इसे खोना नहीं चाहेंगे और इसलिए ही आदेशों का पालन करते हैं और  वे सरकारों के सामने अपनी कलम बेच देते हैं। 

विभिन्न देशों की सरकारें भी विभिन्न कानून लाकर प्रेस पर काबू पाना चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर भारत सरकार नें हाल ही में ऑनलाइन मीडिया वेबसाइट पर निगरानी रखने के लिए नया कानून पेश किया है।ख्2, इसके तहत सरकार ऑनलाइन कुछ भी छपने पर नियंत्रण करना चाहती है।  भारतीय संविधान में उल्लेख किया गया है कि भारतीय मीडिया पत्रकारों को उनके प्रेस स्वतंत्रता का अधिकार देते हुए वह निचले स्तर की आवाज ऊपर शासन प्रशासन तक पहुंचाने के लिए किया गया है और प्रेस को स्वतंत्रता दी गई है कि वह न्याय दिलाने का काम करें इसी माध्यम से मीडिया क्षेत्र को न्याय का चौथा स्तंभ कहा गया है क्योंकि जो दबे कुचले जिस को न्याय नहीं मिलता उन लोगों की है आवाज उठाकर अपनी मीडिया पत्रकार पत्र अखबारों में प्रकाशित करते हुए उनकी आवाज शासन प्रशासन तक पहुंचाई जाती है जिसके माध्यम से न्याय मिलता है पर क्या पंगू मीडिया की गूंज के बीच यह संभव है सोचनीय है। 
 

न्यूज़ सोर्स : ipm