हर साल हजारों पशुधन सड़क पर दम तोड़ रहे हैं। पर इस को लेकर न सरकार की बड़ी पहल है न ही समुदाय इस को लेकर जागरूक हो रहा है। एक समय था जब हर   ग्राम एवं नगरपालिका में एक कांजी हाऊस हुआ करता था जिसमें  आवारा पशुओं को पकड़.पकड कर  खा करते थे। इन्हें छुडाने के लिये इनके मालिक आते थे। उनसे आवारा छोडने का दंड वसूला जाता था जिसमें उनके चारे का व्यय भी शामिल होता था। शायद ही कोई ऐसा पशु होता था जिसका कोई मालिक न हो तो उसे बेच दिया जाता था। लेकिन कुछ सालों से यह कार्य सरकारी तौर पर बंद कर दिया गया है।

 वर्तमान में मप्र सरकार खुले में घूम रहे पशुओं को रोकने को लेकर दण्डात्मक कार्यवाही को लेकर बड़ा अभियान चला रही है।

सरकार के अनुसार अब जो भी  पषुओं को आवारा छोउ़ेगा उसे दण्ड देना पड़ेगा। इधर  केन्द्र सरकार के कार्य पर नजर डालें तो पशुपालन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसारए भारत में लगभग 50 लाख बेघर मवेशी हैं ;2019 में आयोजित 20वीं पशुधन गणना के अनुसार  मंत्रालय की ओर से   कहा गया है कि जानवर मुख्य रूप से भोजन और पानी की तलाश में सड़क पर भटक रहे हैं,कुल मिलाकर 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने गौ वंश के पशु धन की हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया है और इसलिए किसान उन्हें बेच नहीं सकते हैं। मवेशियों के कारण दुर्घटनाओं और फसल को होने वाले नुकसान की भी खबरें आती रहतीं हैं।  इन जानवरों में मुख्य रूप से दूध देना बंद कर चुकी गायें और नर गौ वंश वाले पशु शामिल हैं।

मॉनिटरिंग कमेटी का पता नहीं

मध्य प्रदेश की सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशुओं के नियंत्रण के लिए अब सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के संभागीय संयुक्त संचालकों तथा सभी नगर निगमों के आयुक्तों को निर्देश जारी  किया था शासन ने नगरीय निकायों को 10 दिन में एक मॉनिटरिंग कमेटी गठित करने के निर्देश भी दिए  थे लेकिन यह कमिटी कितनी सक्रिया है इस को लेकर कोई जानकारी नहीं है। सरकार के गजट में स्वयंसेवी संगठनों को इस कार्य में लगाने का प्रावधान था लेकिन अब तक इस  पर क्या हुआ इस पर कोई बोलने को तैयार नहीं है।

 

न्यूज़ सोर्स : Yogendra Patel