ओबेदुल्लागज  -   रामगोपाल साहू
अर्जुन नगर में संत संतोख सिंह जी भजन गढ़ गुरुद्वारा मे बेशाखी  का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया गया , इस अवसर पर सुबह से ही पाठ ,भजन बंदगी चली जिसमें कथावाचक - जगजीत सिंह (जीते भैयाजी) ने  सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी के जन्मदिन पर प्रकाश प्रकाश डाला, उन्होने कहा गुरु अमर दास जी का जन्म माता सुलखनी जी की कोख से पिता तेज भान के घर ( वैशाख सुदी 15) संम्वत 1536 को बसरके गांव , जिला अमृतसर में हुआ था ।आपका बिबाह मनसा देवी के साथ 11 माघ सम्वत् 1559 को संम्पन्न हुआ था। आप बचपन से ही बड़े धर्म प्रेमी थे ,आप मां गंगा मैया के उपासक थे , आप हर वर्ष जत्थे के साथ बसरके गांव पंजाब से स्नान करने गंगा मैया नदी जाया करते थे, जब आपको 20 वर्ष हो गए ,जत्थै के साथ गंगा स्नान करते हुये तब एक दिन गुरुजी अमर दास कुरुक्षेत्र के धार्मिक स्थल में लेटे हुए आराम कर रहे थे , तभी वहां के पंडित जी की गुरुजी के पैरों की तरफ निगाह पढ़ने पर उनके चरणों में पदम चिंन्ह दिखे , यही पदम चिंन्ह भगवान श्री कृष्ण के पैर में भी थे , तब पंडित जी ने गुरुजी से कहा गुरुजी आपके पेरो मे पदम चिंन्ह है , तब गुरुजी ने कहा कि मेरी 60 वर्ष उम्र है मुझे नहीं मालूम था   इस पर पंडित दुर्गा दास जी ने बताया कि आप बहुत बड़े राजा होंगे या बहुत बड़े धार्मिक गुरु होंगे ,आपके इशारे से हवा पानी भी रुक जाया करेगा ,आप ऐसी शक्ति के मालिक होंगे । दूसरे वर्ष फिर स्नान यात्रा पर आने पर गुरु अमर दास जी ने अन्न ,जल पानी इकट्ठा चोखा ,इस पर पंडित दुर्गा दास जी ने गुरुजी से पूछा कि आपका गुरु कौन है , इस पर गुरु अमर दास जी ने कहा कि मैंने तो अभी तक कोई गुरु धारण नहीं किया है , इस पर पंडित जी बहुत नाराज हुए और कहा कि तुमने मेरा निश्चय तुड़वा दिया है , मुझे नए शरीर से संकल्प लेना पड़ेगा क्योंकि मुझे बगैर गुरु से किसी के हाथ का अंन्न ग्रहण नहीं करना है ,और ना ही किसी को करवाना है, गुरुजी पंडित जी की बात से बहुत दुखी हुए,  इस पर आप घर पहुंचते हैं गुरु बनाने के लिए दिन-रात लगे रहते हैं , इसी विषय पर सोते हुए सुबह-सुबह घर से निकलते हैं 


अगले घर छोटे भाई का था उनकी बहू लस्सी लड़क रही थी और गुरु नानक देव जी के वचनों को बड़ी सुंदर तरीके से पढ़ती जा रही थी आप जी को शब्द बड़े अच्छे लगे आप  जी घर अंदर जाकर बहु से पूछते हैं यह जो बोल शब्द है किसके हैं यह कहां मिलेंगे और कब मिलेंगे इस पर बहू अमरो ने कहा यह गुरु नानक देव जी के बोल हैं इसे में हमेशा ही गाती रहती हूं , इस वक्त आप इस दुनिया में नहीं है , आप जी ने यह गद्दी मेरे पिता गुरु अंगद देव  जी को संगतों के सामने बिठा गए हैं, वह इस वक्त गोविंदलाल साहिब में रहते हैं , बस आप मेरे साथ चलो बेटा मुझे उनके दर्शन कराओ आप अगले दिन उनके दर्शनों के लिए निकल जाते हैं! और मुलाकात होती है आप उन्हें गुरु धारण करते हैं और ऐसे गुरु धारण करते हैं गुरु अंगद देवजी ने अपने अंतिम समय अमरदास को  नजदीक देख नरियल ,5 पैसे गद्दी गुरु अमर दास जी को देकर स्यंम परलौक चलै जाते हैं !!
यह कथा सुनकर सभी (निहाल ) खुशहाल हो गये , गुरु घर के वजीर भगवान सिंह ने कीर्तन कर एवं अरदास कर सुख शांति की अरदास के उपरांत गुरु का अटूट लंगर बांटा गया । इस अवसर पर मुख्य रूप से सुरजीत सिंह बिल्लै, सुरजीत सिंह गिल, देवेंद्र सिंह राजू ,रघुवीर सिंह रिशम , टेलर गंगाराम साहू , तेजेंद्र सिहं, गुरमीत सिहं, इंदरसिंह नायक, सुभाष गौर,मांगी लाल प्रजापति, आदि सहित माता बहनें श्रध्दालु उपस्थित रहे!

 फोटो - तीसरे गुरु अमर दास जी  

न्यूज़ सोर्स : रामगोपाल साहू