विश्व के 20 देश विकासशील देशों के तमगे से निकलकर आर्थिक रूप से विकसित देश  बनने की पहल में लगे हैं। इन देशों में अर्जेंटीना,ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी,भारत,इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस,सऊदी अरब,दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं। ये वे देष है जिसमें से कुछ देशों ने विकसति देशों  में अपने आप को शामिल भी कर लिया है, भारत इस श्रृंखला में अभी शुरूआती प्रयास कर रहा है।भारत के परिपेक्ष में विकसित बनने की राह में बात करें तो पता चलता है कि यहां अधोसंरचना विकास को लेकर सामुदायिक सहभागिता का अभाव है। जनता नेता तो चुन रही है लेकिन आर्थिक विकास को लेकर जनप्रतिनिधियों में कोई स्वयंप्रोजेक्टिव प्रयास नहीं है। आर्थिक उन्नति में सरकारी नाकामी नीतियों पर गैर सरकारी संगठनों का नियंत्रण नहीं है। विकास के आर्थिक पहलू पर सरकारें समुदाय को विकास कार्य में न जोड़कर चुनावी लाभ वाली स्किमें चला रही है जिससे जीडीपी का बड़ा हिस्सा धड़ाम होने की कगार पर है। 
भारत के लिए क्यों अहम
    साल भारत जी20 की अध्यक्षता ग्रहण कर  चुका है, भारत के सामने इसे लेकर कठिन चुनौतियां हैं, भारत की G- 20 प्राथमिकताओं में समावेशी,न्यायसंगत और सतत विकास, महिला सशक्तिकरण,  डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचाए और तकनीक.सक्षम विकास, जलवायु वित्तपोषण, वैश्विक खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा, अन्य शामिल है.

1. स्थानीय समुदाय का सशक्तिकरण - सतत विकास प्रक्रिया का पहला सिद्धान्त है जन समुदाय का सशक्तिकरण। विकास के साथ पैदा होने वाले सबसे बड़े अवरोधों में स्थानीय समुदाय की संस्कृति, पारम्परिक अधिकारों, संसाधनों तक पहुंच एवं आत्म-सम्मान आदि की अवहेलना मुख्य  है। इससे स्थानीय समुदाय का विकास कार्यक्रमों के प्रति जुड़ाव के स्थान पर अलगाव तथा रोष पैदा होता है। अत: विकास को चिरन्तर या सत्त बनाने के लिए स्थानीय निवासियों के अधिकारों को पहचानना तथा उनके मुद्दों को समर्थन प्रदान करना आवश्यक है। साथ ही सतत विकास की प्रक्रिया समुदाय को जोड़ती है व उनके सशक्तिकरण को बढ़ावा देती है।

2. स्थानीय ज्ञान एवं अनुभवों को महत्व - स्थानीय समुदाय पारम्परिक ज्ञान, अनुभव व कौशल का धनी है। विकास के नाम पर नये विचार एवं ज्ञान थोपने के स्थान पर सतत विकास स्थानीय निवासियों के ज्ञान एवं अनुभवों को महत्व देता है तथा उपलब्ध ज्ञान एवं अनुभवों को आधार मानकर विकास कार्यक्रम तैयार किये जाते है।

3. स्थानीय समुदाय की आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं की पहचान - सतत विकास का अगला सिद्धान्त है विकास प्रक्रिया का समुदाय की आवश्यकताओं व प्राथमिकताओं पर आधारित होना। जमीनी वास्तविकताओं को नजर अन्दाज कर ऊपर से थोपा गया विकास कभी भी समाज में सकारात्मक बदलाव नहीं ला सकता। अत: आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं की पहचान स्थानीय निवासियों के साथ मिल-बैठ कर उनके दृष्टिकोण एवं नजरिये को समझ कर करने से ही सतत विकास की ओर बढ़ा जा सकता है।

4. स्थानीय निवासियों की सहभागिता - कार्यक्रम नियोजन से लेकर क्रियान्वयन तथा प्रबन्धन में ग्रामवासियों की सहभागिता को सतत विकास की प्रक्रिया में आवश्यक माना गया है। सहभागिता का अर्थ भी स्पष्ट होना चाहिए तथा स्थानीय समुदाय द्वारा विभिन्न स्तरों पर लिये गये निर्णयों को स्वीकारना ही उनकी सच्ची सहभागिता प्राप्त करना है।

5. लैंगिक समानता - पिछले अनुभवों से यह स्पष्ट है कि विकास की जिन गतिविधियों को महिला एवं पुरुषों दोनों की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर तैयार नहीं किया जाता है तथा जिनमें महिलाओं की बराबर भागीदारी नहीं होती, वह न केवल अनुचित होती है बल्कि उनके सफल एवं चिरन्तर होने में संदेह रहता है। चिरन्तर बनाने के लिए विकास को महिलाओं तथा पुरुषों की भूमिकाओं, प्राथमिकताओं तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर तैयार किया जाना पहली शर्त है।

6. कमजोर वर्गों को पूर्ण अधिकार - सतत विकास का सिद्धान्त है समाज के सभी वर्गों को विकास के नियोजन में शामिल करना व विकास का लाभ पहुँचाना। सदियों से विकास प्रक्रिया से अछूते व उपेक्षित रहे समाज के कमजोर वर्गो जैसे भूमिहीन, अनुसूचित जाति एवं जनजाति व महिलाओं को आधुनिक विकास प्रक्रिया में शामिल करने पर सतत विकास बल देता है। अत: चिरन्तरता के लिए समाज के कमजोर एवं उपेक्षित वर्ग के अधिकारों का समर्थन किया जाना आवश्यक है तथा उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जाना आवश्यक है।

7. जैविक विविधता तथा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण  - आर्थिक वृद्धि, पर्यावरण संरक्षण व सामाजिक जुड़ाव सतत विकास के मजबूत सतम्भ हैं। विकास की जिस प्रक्रिया में इन तीनों को साथ लेकर नियोजन किया जाता है वही सतत विकास कहलाता है। पर्यावरण को खतरे में डालकर व सामाजिक मूल्यों की परवाह किये बिना अगर आर्थिक विकास की प्रक्रिया को बल दिया जाता है तो वह सतत विकास नहीं है। 

 इस पर फोकस करना जरूरी
अर्थव्यवस्था  
खाद्य सुरक्षा
 स्वास्थ्य
अर्थव्यवस्थाओं की मंदी
भू.राजनीतिक मतभेद
 भारतीय संस्कृति का विस्तार


 

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