उज्जैन. महाभारत (Mahabharata) के अनुसार, जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ तय हो गया तो दोनों पक्ष अपने-अपने मित्रों को सहायता के लिए बुलाने लगे। युद्ध में शामिल होने के लिए न सिर्फ भारत के अलग-अलग राज्यों के राजा आने लगे बल्कि चीन और यूनान आदि देशों के राजा भी अपने-अपने मित्रों के बुलावे पर कुरुक्षेत्र में आकर डंट गए।

ऐसी स्थिति में भारत के सिर्फ 2 योद्धा ऐसे थे, जो धर्म-अधर्म के इस युद्ध में शामिल नहीं हो पाए। ये दोनों ही भगवान श्रीकृष्ण के सगे-संबंधी थे। आगे जानिए उन दोनों योद्धाओं के बारे में जो महाभारत युद्ध से दूर रहे.

जब बलराम के सामने आया धर्म संकट
- बलराम को जब पता चला कि कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध तय हो गया है तो वे धर्म संकट में पड़ गए क्योंकि एक तरफ तो उनकी बुआ कुंती के पुत्र पांडव थे और दूसरी ओर उनका प्रिय शिष्य दुर्योधन।
- श्रीकृष्ण पहले ही पांडवों के पक्ष में जा चुके थे। ऐसे में पांडवों का साथ देकर बलराम दुर्योधन का अहित नहीं करना चाहते थे और दुर्योधन के पक्ष में रहकर अपने भाई से युद्ध भी नहीं करना चाहते थे।
- धर्म संकट से बचने के लिए बलराम युद्ध शुरू होने से पहले ही तीर्थ यात्रा पर निकल गए। अंत समय में जब भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध हो रहा था, उस समय बलराम वहां आए थे।

रुक्मी को अपने पराक्रम पर था अभिमान
-रुक्मी कुण्डिनपुर का राजकुमार और श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी का भाई था। वह भी महान पराक्रमी योद्धा था। उसके पास इंद्र द्वारा दिया गया विजय नाम का धनुष था। जब उसे युद्ध के बारे में पता चला तो वह सेना सहित पहले पांडवों के पास गया।
- राजा युधिष्ठिर ने उसका बहुत मान-सम्मान किया। रुक्मी यहां अपने बल-पराक्रम की बातें बढ़-चढ़कर बताने लगा। पांडव समझ गए कि रुक्मी को अपने युद्ध कौशल पर कुछ ज्यादा ही अहंकार है। इसलिए उन्होंने रुक्मी की सहायता लेने से इंकार कर दिया।
- इसके बाद रुक्मी दुर्योधन के पास गया। यहां भी उसने वैसी ही बातें की, जैसी उसने पांडवों के सामने कही थी। तब दुर्योधन ने भी रुक्मी की सहायता लेने से मना कर दिया। इस तरह रुक्मी चाहकर भी महाभारत युद्ध में शामिल नहीं हो पाया।