लंदन । हाल ही में ऐसा ही कुछ देखने को मिला जब वैज्ञानिकों को पीठ पर बड़ी सी पाल वाले डायनासोर, स्पाइनोसॉरस के अध्ययन के नतीजों में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जीवाश्म विज्ञानिकों को स्पाइनोसॉरस के शिकार करने के तरीके को ही बदलना पड़ा। नए अध्ययन में उन्होंने उसकी शिकार करने की आदत की नई तरीके से व्याख्या की।शोधकर्ताओं ने बताया कि स्पाइनोसॉरस के बारे में पहले के अध्ययन बता रहे थे कि वह गहरे पानी में गोता लगा कर शिकार करता था, लेकिन  वह वास्तव में हेरोन की तरह उथले पानी में शिकार किया करता था। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें इस धारणा में इतना बड़ा बदलाव क्यों करना पड़ा।
 स्पाइनोसॉरस एजिप्टियाकस क्रिटेशियस काल में पृथ्वीप पर सबसे बड़े शिकारी जानवरों में से एक हुआ करते थे और वे डायनासोर के युग के अंतिम दौर में पाए जाते थे। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया कि यह प्रजाति  आज के अफ्रीका में पाई जाती थी और उनका भार सात टन से अधिक हुआ करता था।अध्ययन के एक लेखक नाथन मायहर्वोल्ड ने बताया कि यह बहुत ही अलग तरह का दिखने वाला डायनासोर हुआ करता ता क्योंकि उसकी पीठ पर बहुत ही बड़ा पाल जैसी संरचना हुआ करती थी।
 जीवाश्म विज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि स्पाइनोसॉरस शिकार कर मछली खाने वाला जानवर हुआ करता था। कुछ अध्ययनों से पता चला कि ये डायनासोर उथले पानी में किनारों के पास ही शिकार पकड़ा करते ते लेकिन कुछ अध्ययन  कहते ते कि स्पाइनोसॉरस गहरे पानी में गोता लगा कर शिकार करते थे। नए नतीजा का आधार इन डायनासोर का फिर से किया गया विश्लेषण था जिसमें डायनासोर की हड्डियों के घनत्व की फिर से गणना की जिसके जरिए उनके शिकार करने की आदत का पता चलता है।
पहले की गणना से पता चल रहा था कि स्पाइनोसॉरस गहरे पानी में गोता लगा कर ही शिकार करते होंगे। लेकिन 2020 के इस अध्ययन में नई स्टडी ने कुछ गलतियां निकाली हैं।नई गणना के आधार पर निकले नतीजों से उससे पता चला इनकी रीढ़ की हड्डियों में हवा  रहती होगी जिससे ये गोता लगा ही नहीं पाते होंगे। जबकि जांग और रिब के हड्डियो से यह पता नहीं चलता कि वे गोता लगा पाते होंगे। बता दें कि डायनासोर के बारे में वैज्ञानिक जितना कुछ जानते हैं वे जीवाश्मों के अध्ययन से ही जानते हैं।  पर कई बार उनके गहन अध्ययन के नतीजे भी कुछ गड़बड़ हो जाते हैं।