बड़वानी ।   सिकलसेल की बीमारी अनुवांशिक एवं गंभीर बीमारी है जो माता-पिता से बच्चे को होती है। अज्ञानता की वजह से कभी-कभी बच्चों की मौत तक हो जाती है। अतः हम यह करें कि गर्भवती माता की स्वास्थ्य केंद्रों पर अनिवार्य रूप सिकलसेल की जांच करवाएं। अगर माता पाजिटिव पाई जाए तो उसकी विशेष काउंसलिंग कर उसे बताया जाए कि उनके जन्म लेने वाले बच्चे को विशेष खान-पान एवं उपचार की आवश्यकता होगी। प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने बुधवार की देर शाम को सर्किट हाउस बड़वानी में आयोजित बैठक के दौरान यह बात कही। बैठक के दौरान राज्यपाल ने कहा कि अगर गर्भवती माता सिकलसेल पाजिटिव है तो उसे अपने बच्चे के जन्म के साथ ही बच्चे का सिकलसेल टेस्ट कराना चाहिए। अगर बच्चा भी पाजिटिव आता है तो बच्चे के खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि सही उपचार एवं उचित खान-पान से इस बीमारी पर बहुत हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। राज्यपाल ने आयुर्वेदिक दवाई देने की भी बात कही। इस दौरान प्रदेश के कैबिनेट मंत्री प्रेमसिंह पटेल, जिला पंचायत अध्यक्ष बलवंतसिंह पटेल, कलेक्टर डा राहुल फटिंग, कन्हैया सिसोदिया, धनंजयसिंह, सिकलसेल एनीमिया के क्षेत्र में कार्य कर रहे होम्योपैथी डा राकेश मेसराम, डा गणेशचन्द्र मालवीय, डा विकास बौद्ध आदि शामिल रहे। बैठक में राज्यपाल ने बताया कि आयुर्वेद में सिकलसेल बीमारी को जड़ से नष्ट करने का उपचार है। अतः क्षेत्र के मरीजों को आयुर्वेद की दवाइयां दी जाकर उनमें बीमारी को खत्म किया जाये। साथ ही हौम्योपैथी में भी सिकलसेल बीमारी का इलाज है। उपस्थित हौम्योपैथी डाक्टर्स ने बताया कि होम्योपैथी के उपचार से मरीज को न तो शरीर में दर्द होता है और ना ही मरीज को बार-बार खून चढ़ाने की स्थिति आती है। साथ ही मरीज की बीमारी का प्रतिशत भी धीरे-धीरे कम होता जाता है। इस दौरान हौम्योपैथी डाक्टर्स अपने साथ सिकलसेल बीमारी से ग्रसित तीन मरीज भी लेकर आए। राज्यपाल ने इन मरीजों से बीमारी के लक्षण के बारे में भी जानकारी प्राप्त की।

कलेक्टर को दिए निर्देश

बैठक के दौरान राज्यपाल ने कलेक्टर डाॅ. राहुल फटिंग को निर्देशित किया कि जिले में सिकलसेल की जांच शासकीय अस्पतालों में तो अनिवार्य रूप से की जाए। इसके साथ ही छात्रावासों, आश्रमों में एवं आंगनवाड़ी में भी बच्चों की सिकलसेल की जांच की जाए। अगर बच्चे पाजिटिव आते हैं तो उनके घर पर जाकर उनके माता-पिता का भी टेस्ट किया जाये। बड़वानी जिला आदिवासी बाहुल्य जिला होने से यहां पर सिकलसेल के मरीजों की संभावना ज्यादा है। जिले में जांच को बढ़ाकर लोगों को सिकलसेल के प्रति जागरूक करना होगा।