आज आजीविका मिशन के द्वारा संचालित स्व-सहायता समूह से जुड़ी हुई कई महिलायें है जो कृषि कार्य में अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रही है। कृषि के नये नये तरीके सीख कर खेती को फायदे का सौदा बनाने के लिए वे जी-जान से जुट गई हैं और कृषि के क्षेत्र में महिला स्व-सहायता समूह सदस्यों के द्वारा एक बड़ी क्रांति धीरे-धीरे आकार लेने लगी है। यह क्रांति है जैविक खेती। बालाघाट जिले के लांजी विकासखंड के ग्राम मोहारा की आजीविका मिशन के समूहों की महिलाओं ने कृषि क्षेत्र में अपनी अलग ही पहचान बनाई है। ग्राम मोहारा की कविता साकरे ने जैविक खेती को अपना कर अपने खेतों में हरा सोना पैदा कर रही है।

कविता साकरे बताती है कि आजीविका मिशन से जुड़ने से पूर्व हमारे यहां रासायनिक खेती होती थी जिसमें लागत ज्यादा और उत्पादन कम होता था। दिनो दिन खाद एवं कीटनाशक का खर्च बढ़ता जा रहा था । एक समय तो ऐसा आया कि खेती का काम बंद करके पूरे परिवार सहित बाहर मजदूरी करने जाने का मन बना लिया था। लेकिन आज मै आजीविका मिशन से जुड़कर कृषि के नये नये तरीके सीख कर खुद से जैविक खाद (जीवामृत घनजीवामृत मटकाखाद इत्यादि) एवं जैविक कीटनाशक (नीमास़्त्र, ब्रम्हास्त्र दसपर्णी इत्यादि) तैयार कर जहर मुक्त खेती कर रही हॅू। जिसके कारण अब हमारी खेती में लगने वाला खर्च भी सीमित हो गया है और उपज भी अच्छी होने लगी है और स्वस्थ्य भी अच्छा रहने लगा है।

आजीविका मिशन के विकासखण्ड प्रबंधक श्रीराजाराम परते तथा जैविक खेती के तकनीकी समन्वयक श्री विजय जायसवाल का कुशल मार्गदर्शन ने कविता एवं उसके गांव के लिये वरदान साबित हो रहा है। अभी हाल ही में मोहारा गांव के जैविक सदस्यों को कनवर्जन्स के माघ्यम से आत्मा परियोजना द्वारा खरीफ सीजन में निःशुल्क धान का उन्नत किस्म का बीज प्रदाय कराया गया है तथा रबी सीजन के लिये कृषि विज्ञान केन्द्र बड़गांव द्वारा चना अलसी सरसो का बीज का वितरण कराया गया है। इसके साथ ही कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उन्नत खेती करने के हुनर भी बताये गये हैं। कविता साकरे अब कृषि सखी के रुप में पूरे गांव के समूह सदस्यों को जैविक खेती करने के लिये प्रेरित कर रही है।

खेती तब भी होती थी जब रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक उपलब्ध नहीं थे। तब गोबर किसानों के लिए बेहतर खाद का काम करता था। नीम और हल्दी उनके लिए प्रभावी कीटनाशक थी। लेकिन बदलते व़क्त के साथ जैसे-जैसे रासायनिक खाद का उपयोग बढ़ा किसानों की किस्मत भी उनसे रूठती चली गई। किसानों की लागत बढ़ती गई और उत्पादन घटता गया। ऐसे में कविता साकरे जैसी महिलायें जैविक खेती के लिए मिसाल बन कर सामने आ रही हैं और किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रही हैं।

 

 

न्यूज़ सोर्स : ipm