शाजापुर, मध्यप्रदेश के 38 साल के देवेंद्र परमार अपनी कार, बाइक और ट्रैक्टर चलाने के लिए पेट्रोल या डीज़ल नहीं खरीदते, बल्कि वह अपने खेत पर भी खुद CNG बनाते हैं, कैसे? गोबर से।  जी हाँ, अपने खुद के घर पर वह गोबर से बायोगैस बनाते हैं और इसे CNG में बदलकर अपने सारे वाहन चलाते हैं, यहां तक कि घर की बिजली भी बनाते हैं। इस तरह उन्हें बाहर से बिजली और पेट्रोल कुछ भी नहीं लेना पड़ता। 

पिछले दो सालों से वह CNG गैस अपने खेत में ही बना रहे हैं।   देवेंद्र बताते हैं कि वह पिछले 15 सालों से पशुपालन कर रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे पशु बढ़ने लगे उनके लिए गोबर को उठाकर फेंकना बड़ा मुश्किल और थकाने वाला काम होता था। ऐसे में उन्होंने गुजरात और बिहार के कुछ किसानों के पास गोबर से बायोगैस बनाने वाले प्लांट का मॉडल देखा, जिसके बाद उन्होंने अपने खेतों में भी बायोगैस का प्लांट लगाने का फैसला किया। 

जैसे-जैसे देवेंद्र ने बायोगैस और CNG उत्पादन के बारे में जानना शुरू किया, वैसे-वैसे उन्होंने इस प्लांट के लिए थोड़ा-थोड़ा निवेश करना भी शुरू किया। वह बताते हैं कि पहले उनको ज़्यादा जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने धीरे-धीरे इस पूरे प्लांट को तैयार किया और इसे तैयार करने में 50 लाख का खर्च आया। 

देवेंद्र बताते हैं, “हमारे पास करीबन 100 पशु हैं और हर दिन इन पशुओं से करीबन ढाई टन गोबर जमा होता है, जिससे हम हर दिन 60-70 किलो CNG बनाते हैं। जबकि हमारी हर दिन की बेसिक ज़रूरत लगभग 45 किलो ही होती है। ऐसे में हमारे पास हमेशा सरप्लस में CNG मौजूद होता है।”

शुरुआत में, इतना खर्च करके प्लांट लगाने पर उन्हें कई लोगों के ताने भी सुनने पड़े। लेकिन उस समय देवेंद्र यह साबित करना चाहते थे कि गोबर का हम कई तरह से सही और सस्टेनेबल इस्तेमाल कर सकते हैं। आज वह गर्व के साथ बताते हैं कि अब वह दूसरों के लिए यह प्लांट महज़ 20 लाख में तैयार कर सकते हैं। बायोगैस के इस प्लांट से किसान कई तरीके से आत्मनिर्भर बन सकते हैं।  

गोबर से CNG बनाने के बाद बची हुए सूखी गोबर से केचुआ खाद भी बनाते हैं। इस तरह वह दूध और खाद बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। साथ ही अपनी बिजली की ज़रूरत के लिए भी आत्मनिर्भर बन गए हैं। एक छोटे से गांव में रहते हुए, जिस एडवांस तकनीक का इस्तेमाल देवेंद्र कर रहे हैं, वह वाकई में कबील-ए-तारीफ है।

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