भोपाल । मध्य प्रदेश चुनाव में अब कुछ ही महीने का वक्त बचा है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी कांग्रेस चुनावी तैयारियों में जुट गई हैं। गृह मंत्री अमित शाह मंगलवार को अचानक भोपाल पहुंचे और पार्टी की तैयारियों को लेकर अहम बैठक की। अमित शाह की बैठक में विधानसभा चुनाव को लेकर विजय संकल्प अभियान शुरू करने का फैसला लिया गया। इस अभियान का स्वरूप क्या होगा? इसे लेकर अभी अधिक जानकारी सामने नहीं आई है लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा विजय संकल्प अभियान के तहत विजय संकल्प रैलियों, विजय संकल्प रथयात्रा की शुरुआत कर सकती है। भाजपा ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भी विजय संकल्प रथयात्रा की शुरुआत की थी। देवभूमि में भाजपा का ये प्रयोग सफल रहा था और पार्टी ने परंपरा तोड़ते हुए लगातार दूसरी बार सरकार बना ली।
अमित शाह का अचानक भोपाल पहुंच जाना, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, चुनाव प्रभारी और पार्टी पदाधिकारियों के साथ चुनावी तैयारियों को लेकर बैठक करना और बैठक में विजय संकल्प अभियान शुरू करने का फैसला लिया जाना।।।राजनीति के जानकार इसे मध्य प्रदेश चुनाव को लेकर भाजपा नेतृत्व के ड्राइविंग सीट पर आने की तरह देख रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा के लिए मध्य प्रदेश में जीत बहुत जरूरी है, खासकर कर्नाटक की हार के बाद। राजस्थान में हर चुनाव में सरकार बदलने का ट्रेंड रहा है, ऐसे में पार्टी नेतृत्व वहां सरकार बनने को लेकर आश्वस्त है। अब बाकी बचे जिन चार राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें मध्य प्रदेश की लड़ाई महत्वपूर्ण है। कर्नाटक की हार के बाद भाजपा नहीं चाहती कि किसी बड़े राज्य में उसकी हार हो और लोकसभा चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं के मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव पड़े।
भाजपा ने 2008, 2013 और 2018 का चुनाव मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़ा। इसबार शीर्ष नेतृत्व फ्रंटफुट पर क्यों नजर आ रहा है जो सहायक की भूमिका में नजर आता रहा है? इसपर अमिताभ तिवारी ने कहा कि हर पार्टी चुनाव के लिए अपने आकलन के आधार पर रणनीति बनाती है। भाजपा को लगा हो कि स्थानीय नेतृत्व के साथ केंद्रीय नेतृत्व भी जोर लगा दे तो जीत या बड़ी जीत दर्ज की जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह इस समय भाजपा के सबसे बड़े चेहरों हैं। ऐसे में अगर अमित शाह अचानक मध्य प्रदेश जाते हैं, मीटिंग करते हैं तो इसके पीछे संदेश ये है कि भाजपा राज्य के चुनाव को पूरी गंभीरता से ले रही है और किसी भी तरह की कोई कोताही नहीं बरतना चाहती। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार शिवराज सिंह चौहान ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिसे आसानी से हटाया जा सके। भाजपा को ये चुनाव उनके साथ ही लडऩा होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने रखकर भाजपा ने पहले भी राज्यों में चुनाव लड़े हैं। भाजपा किसी एक चेहरे की जगह सामूहिक नेतृत्व के विकल्प को चुनकर चुनावी रण में उतरती नजर आ रही है।
अमित शाह की बैठक में विधानसभा चुनाव को लेकर विजय संकल्प अभियान शुरू करने का फैसला हुआ। सीएम शिवराज जन आशीर्वाद यात्रा पर निकलने की तैयारी में थे। शिवराज सिंह चौहान की जन आशीर्वाद यात्रा कब शुरू होगी, इसे लेकर अभी तक तस्वीर साफ नहीं हो सकी है। अब विजय संकल्प अभियान शुरू करने के ऐलान के बाद शिवराज सिंह चौहान की जन आशीर्वाद यात्रा को लेकर सस्पेंस की स्थिति बन गई है। सीएम शिवराज की ओर से पहले ही ये ऐलान किया जा चुका था कि वे जन आशीर्वाद यात्रा पर निकलेंगे। सीएम शिवराज विधानसभा चुनाव से पहले जन आशीर्वाद यात्रा पर निकलते भी रहे हैं। 2018 के चुनाव में शिवराज की जन आशीर्वाद यात्रा 14 जुलाई को शुरू हो गई थी। उज्जैन के महाकाल मंदिर से भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने महाकाल की पूजा-अर्चना के बाद जन आशीर्वाद यात्रा को रवाना किया था। लेकिन चुनाव में सीटों के लिहाज से भाजपा कांग्रेस से पीछे रह गई और 15 साल लगातार सरकार चलाने के बाद पार्टी को 15 महीने विपक्ष में बैठना पड़ा था। जन आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत जुलाई के पहले पखवाड़े में ही होनी थी। लेकिन इसके रोडमैप को लेकर भी अभी कोई जानकारी सामने नहीं आई है। भाजपा में 2018 की हार के बाद पार्टी में अकेले शिवराज की जगह हर जोन में बड़े नेताओं के यात्रा निकालने के फॉर्मूले पर भी बात हो रही थी। कहा जा रहा था कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी अलग-अलग जोन में जन आशीर्वाद यात्रा पर निकलें और बड़ी रैलियों में सीएम शिवराज भी शामिल हों। अब बदली रणनीति के तहत भाजपा उत्तराखंड की तर्ज पर विजय संकल्प रथयात्रा शुरू कर सकती है।
मध्य प्रदेश के पिछले चुनाव में भाजपा को 41.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 109 सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस को 41.5 फीसदी वोट शेयर के साथ 114 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों की बगावत के कारण ये सरकार 15 महीने में ही गिर गई थी। कमलनाथ सरकार की विदाई के बाद भाजपा ने सरकार बनाई थी।