नई दिल्ली। आज 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव अंबेडकर की 133वीं जयंती (Ambedkar Jayanti 2024) मनाई जा रही है। उन्हें भारतीय संविधान का जनक (Father of Indian Constitution) भी कहा जाता है। बता दें, बाबा साहेब का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक दलित परिवार में हुआ था। मजदूरों, महिलाओं और समाज के वंचित व कमजोर वर्ग को सशक्त बनाने को लेकर उन्होंने अहम योगदान दिया, जिसे देश आज भी याद करता है। आइए इस मौके पर आपको बताते हैं, उनकी ऐसी 5 किताबें, जो आज भी युवाओं के लिए किसी रोशनी के चिराग से कम नहीं हैं।

1) शूद्र कौन थे? (Who Were the Shudras?)

डॉ. अंबेडकर ने साल 1948 में प्रकाशित इस किताब को भारत के सामाजिक कार्यकर्ता और जाति सुधारक ज्योतिराव फुले को समर्पित किया है। इसमें शूद्र वर्ण की उत्पत्ति को लेकर चर्चा की गई है। बाबा साहेब ने इसमें महाभारत, ऋग्वेद और कई धर्मग्रंथों का संदर्भ देते हुए जाति व्यवस्था की बातों का वर्णन किया है। उनके अनुसार शूद्र मूल रूप से आर्य से आए थे, जो कि पहले क्षत्रिय वर्ण का हिस्सा थे।

2) भगवान बुद्ध और उनका धम्म (The Buddha and His Dhamma)

बुद्ध का जीवन और बौद्ध धर्म को जानने में अगर आपकी रुचि है, तो आपको डॉ. अंबेडकर की यह किताब भी जरूर पढ़नी चाहिए। इसे उन्होंने अपने जीवन के आखिरी दिनों में लिखा था। साल 1957 में उनके निधन के बाद यह प्रकाशित हो पाई। इस किताब में बुद्ध से जुड़े विमर्श, आत्मा के सिद्धांत, चार आर्य सत्य, कर्म और पुनर्जन्म और अंतत भिक्षु बनने की भी कहानी है।

3) भारत में जातियां (Caste In India)

बाबा साहेब की यह किताब साल 1917 में प्रकाशित हुई थी। दरअसल, उन्होंने न्यूयॉर्क में मानवशास्त्रीय संगोष्ठी में एक पेपर पढ़ा था, जिसमें सामाजिक घटना को लेकर प्रस्तुति भी दी थी। अंबेडकर ने इसे ही किताब का रूप देकर इसमें विवाह व्यवस्था और इससे जुड़े समूहों के बारे में बताया है।

4) रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान (The Problem of the Rupee: Its Origin and It's Solution)

साल 1923 में प्रकाशित हुई यह किताब, अर्थशास्त्र पर लिखी उनकी सर्वश्रेष्ठ किताबों में से एक है। इसमें ब्रिटिश भारत में मुद्रा से जुड़ी समस्याओं को उठाया गया है, जिसके चलते रिजर्व बैंक अस्तित्व में आया था। अगर आपको भी भारतीय मुद्रा और बैंकिंग के इतिहास को जानने में दिलचस्पी है, तो यह किताब एक बढ़िया ऑप्शन है।

5) जाति का उन्मूलन (Annihilation of Caste)

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने साल 1936 में लिखी अपनी इस किताब में हिंदू धर्म और इसकी जाति व्यवस्था पर कठोर कटाक्ष किए हैं। उन्होंने इसके धर्मग्रंथों को पुरुष प्रधान और महिला हितों से नफरत करने वाला बताया है।  अंबेडकर कहते हैं कि जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए अंतर-जातीय भोजन और अंतर-जातीय विवाह काफी तो नहीं है, लेकिन ये इसे तोड़ने का सही तरीका जरूर बन सकते हैं।