हम सभी लोगों को समरसता के भाव से ओतप्रोत रहना चाहिए। जिस प्रकार प्राचीन काल में हमारा समाज एकजुट होकर बनाया जाता था। उसी प्रकार हमें वर्तमान विसंगतियों को दूर करके जाति-पंथ की भावना को ज्यादा महत्व न देते हुए सभी को समान रूप से महत्व देना चाहिए तथा सभी के दुख-सुख में शामिल होना चाहिए। जिन्हें हमारे मदद की आवश्यकता है हमें उनकी मदद बिना किसी भेदभाव के करना चाहिए तथा राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास करना चाहिए। 

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