यह लेखन राजनीतिक गलियारों में तैर रहे उन राजनेताओं के निहित विचारों को चुनौतिपूर्ण चिंतन में डाल सकता है, जिस समय यह कहा जा रहा है कि भारत में इस वक्त ग्रह युद्व छिड़ा हुआ है। ग्रह युद्व जी हां ग्रह युद्व ओर यह युद्व है राजनीकि छटपटाहट का। जिस तरह से जनता ने धनबल,शक्तिबल एवं वंशबेल की राजनीति को उखाड़ फेका उस बीच प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के अंतिम व्यक्ति के हाथ में सत्ता की बागड़ोर सौपने चौकानेवाले राजनीतिक फैसले लिए उससे भारत के राजनीतिक दलदल में एक नई उम्मीद का पुर्ननिर्माण हो गया है। इधर प्रधानमंत्री के फैसले से नव नेतृत्व को अब अन्य दल भी चुन रहे हैं। यह राजनीतिक समग्रता की मोदी खोज ही कहा जा सकता है जिसमें एकल सत्ता एवं एकीकरणवादी राजनीति का अंत होता नजर आ रहा है। इधर एकादमिक हलकों में भी राजनीति में हो रहे इस बदलाव काल को इतिहास का सबसे बड़े बदलाव काल के रूप में देखा जा रहा है। समाज का बुद्विजीवि वर्ग इस चिंतन में पढ गया है कि आखिर राजनीतिक गुलामी की इस विकरालता को कैसे धैर्यपूर्वक निपटाया जा रहा है। कुछ दिनों से जन मानस में यह चर्चा थी कि भारत राजनीतिक गुलामी की ओर बढ़ रहा है। यहां चुनाव सिर्फ सत्ता हस्तानांतरण के लिए होते हैं। लेकिन अब ऐसा किसी के मन में गूंजेगा ऐसा कह पाना मुश्किल लग रहा है । जिस तरह वर्तमान राजनीतिक ढ़ाचा तैयार किया जा रहा है,कहीं ना कहीं से विकसित भारत की समावेशी नीव जैसा प्रतीत होता है। जनता को भी अब इस बात को समझना पढ़ेगा की देश के विकास के लिए वह व्यक्तिवाद एवं दलवाद से उपर उठकर विकास में बाधक कांटों को निकाल फेंकने में अपना योगदान दें एवं एक ऐसे नेतृत्व को चुने एवं बदल -बदल कर चुनें जो समग्र कल्याण की भावना के साथ स्वयंकल्याण से अधिक जन कल्याण के प्रति सजग हो एवं सहज हो। बाल गगाधर तिलक की इस बात को अब याद करने की आवश्कता लग रही है जिसमें कहा गया है कि राजनीति साधुओं के लिए नहीं है,लेकिन वह डाकुओं के लिए भी नहीं है ,उसे तो जनता की भालाई की जिम्मेदारी सौपी गई है पर राजनीति शासक बनकर मतवाली हो गई। सवाल यही है कि राजनीति में इस तरह की हेराफेरी किसने की जिसमें शासक जीत के बाद राजा बन बैठे और जनता भीखमंगी। खैर नरेन्द्र मोदी एवं उसकी टीम ने राजनीति में बड़े बदलाव की शुरूआत कर दी है उम्मीद है टॉप टू बॉटम की यह परंपरा शीर्ष नेतृत्व स्वयं पर भी लागू करेगा।

न्यूज़ सोर्स : ipm