भारत सरकार कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व नियम  CSR पर अपनी नीति में बदलाव लाने के लिये निर्दिष्ट रिपोर्टों की डेटा माइनिंग हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसे प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग करने की योजना बना रही है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही सीएआर फण्ड से राजनीतिक चंदा जैसी धारणाएं समाप्त होकर गरीब कल्याण एवं पर्यावरण संरक्षण जैसे कार्यों में इस फण्ड का उपयोग पारदर्शिता के साथ हो सकेगा।

           देश के कुछ समाजविदों एवं आलोचकों के कटाक्ष के बाद सरकार नियमों में बदलाव ला सकती है। हमारे सूत्रों के अनुसार इस को लेकर पूरा खाका सरकार तैयार कर चुकी है। नियमों में संशोधन को इस लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि प्रायः देखने में आ रहा है कि कई कंपनियों ने व्यवसायिक दृष्टिकोण अपनाकर इन पैसों का उपयोग स्वयं लाभ के लिए ही किया है। कुछ जानकार तो यह भी मानते हैं कि जिस तरह से प्रकृति का दोहन कर समुदाय को विभिन्न मानवीय खतरों में ढकेला जा रहा उसकी अपेक्षा में वर्तमान सीएसआर फण्ड का उपयोग उंट के मुंह में जीरे के समान है।

सरकार और कंपनी के बीच समन्वय कम

       सीएसआर फण्ड को लेकर अभी सरकारी तंत्र तो सक्रिय है लेकिन इस योजना की सतत निगरानी हेतु सरकार और कंपनियों के बीच समन्वय का अभाव है। कंपनी के सीएसआर फण्ड को जमीन तक लागू कराने किसी भी राज्य ने कोई ऐसा मजबूत उपक्रम तैयार नहीं किया है जो निर्धारित सीएसआर नियमों के अनुसार कंपनियों को फण्ड के उपयोग को लेकर गाइड कर सके। यह बात अलग है कि कंपनी एक्ट अधिनियम 2019 अनुसार भारी उद्योग मंत्रालय के सार्वजनिक उपक्रम विभाग ने उद्योग घरानों को सलाह दी थी कि कंपनी अपने 50 प्रतिशत सीएसआर फण्ड का उपयोग सरकार की सालाना थीम वाली योजनाओं के क्रियान्वयन में सहयोग पर हो।

सीएसआर को लेकर क्या हैं मानक

          सरकारी मानकों के अनुसार जो कंपनी पांच सौ करोड् के शुद्व मूल्य लाभ के बाद सीएसआर के दायरे में आ जाती हैं। जो भी कंपनी इस दायरे में आ जाती हैं उस की निगरानी हेतु एक सीएसआर बोर्ड का गठन करना होता है। यह बोर्ड ही तय करता है कि कंपनी अपने सीएसआर फण्ड का उपयोग कैसे एवं कहां कर सकती है। बोर्ड यह भी सिफारिश करता है कि हर कंपनी अपने सीएसआर फण्ड के उपयोग की जानकारी अपनी कंपनी की वेबसाइट पर प्रकाशित करें। साथ ही इस बात की निगरानी होती है कि कंपनी ने बोर्ड के नियम अनुसार अपने निर्धारित स्थानीय क्षेत्र में राशि खर्च कर रही है या नहीं।

एनजीओ के साथ कंपनियों की सांझेदारी कम

         अभी तक देखा जा रहा है कि कंपनियां सीएसआर फण्ड का उपयोग अपने कर्मचारियों के कल्याण या स्वयं के एनजीओ बनाकर रफा-दफा कर देती हैं। कुछ जगह तो ऐसा भी होता है कि राजनीतिक दबाव में इस का उपयोग सामाजिक विकास में न होकर व्यक्ति विशेषों के विकास में देखा जाता रहा है। लेकिन अब इसमें सुधार के प्रयार किये जा रहे हैं। कंपनियों को बोर्ड सलाह देता हुआ दिख रहा है कि कंपनी स्थानीय एनजीओ के साथ सांझेदारी करे एवं पर्यावरण,अशिक्षा,गरीबी, भूखमरी जैसी व्यवस्था पर खर्च करे।  अब सीएस आर फण्ड को खर्च करना अनिवार्य कर दिया गया हैं।  जो पहले कंपनियों की स्वेच्छा पर आधारित था। लेकिन कंपनी एक्ट में किए गए संशोधन के तहत यदि किसी कंपनी ने सीएसआर की राशि खर्च नहीं कर पाया तो उन्हें सीएसआर की पूरी राशि सरकारी खाते में यानि नेशनल अनस्पेंड सीएसआर फंड में हस्तांतरित करना होगा।

मण्डीदीप की कंपनियों द्वारा कराये गए ठोस कार्य

         मप्र के राजधानी से लगे मण्डीदीप में दर्जनों कंपनियां सीएसआर के दायरें में आती हैं। कंपनियों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया भी गया है लेकिन कोई बड़ी उपलब्धता यहां दिखती नहीं हैं। कंपनियों के द्वारा यहां के आसपास के पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा हैं। नंदियों की स्थिति खराब हो रही है। गोदर एवं बेतवा अपने उदगम स्थल से मण्डीदीप में अपने समागम तक गंदे नाले में तब्दील हो रही है। आसपास के जल जीवों एवं मानव पर बूरा प्रभाव हो रहा है पर बहुत कम ही देखा जा रहा है कि कंपनियां इस को लेकर कार्य कर रहीं हों। यह सही है कि शिक्षा को लेकर  मंडीदीप औद्योगिक क्षेत्र के विभिन्न उद्योग समूह द्वारा सीएसआर फंड से औबेदुल्लागंज ब्लॉक के कई स्कूलों की तस्वीर बदल दी है। इसमें ब्लॉक मुख्यालय पर उत्कृष्ट स्कूल भवन का निर्माण, मंडीदीप में शासकीय कन्या माध्यमिक शाला भवन निर्माण,शासकीय कन्या हायर सेकंडरी स्कूल में शेड, लैब का निर्माण, सतलापुर हाई स्कूल का अधोसंरचाना विकास सहित अन्य स्कूलों में अतिरिक्त कक्ष, वॉटर कूलर, फर्नीचर, शौचालय, पंखों सहित अन्य सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।

सीएसआर फण्ड एवं प्रमुख अड़चनें

       CSR अनुपालन के महत्त्व के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद सही भागीदारों एवं परियोजनाओं की पहचान कर सकने के साथ ही दीर्घावधिक रूप से प्रभावशाली ] मापनीय   और आत्मनिर्भर परियोजनाओं का चयन कर सकने की चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

1.  CSR गतिविधियों में सामुदायिक भागीदारी का अभाव

2. स्थानीय समुदायों को CSR के बारे में कोई जानकारी नहीं

3. ज़मीनी स्तर पर कंपनी और समुदाय के बीच संवाद की कमी

4. ग्रामीण क्षेत्रों में सुसंगठित NGO उपलब्ध नहीं

5.  इंटर्नशिप एवं फेलोशिप के माध्यम से लोगों को जोड़ने के प्रयास कम

न्यूज़ सोर्स : लेखक -सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक हैं।