भोजपुर में सवा लाख एससी-एसटी मतदाता फिर भी शीर्ष नेतृत्व में नहीं जगह
आजादी के पूर्व रायसेन जिले के भोजपुर के चक्रवर्ती राजा भोज एवं रानी कमलापति जो इतिहास के पन्नों में भाई-बहन के रूप में मर्यादित है, कहा जाता है कि इन दोनों ने क्षेत्र को विधर्मियों से बचाने अपने जान तक की बाजी लगा दी थी वहीं इन के समुदाय के वंशज इन दिनों अपने राजनीतिक नेतृत्व कौशल में क्षेत्र में कमजोर नजर आते हैं । भोजपुर क्षेत्र में 70 हजार के करीब आदिवासी मतदात हैं लेकिन अभी तक इस समाज के ताने-बाने मेें राजनीति के शीर्ष पदों पर अभी तक कोई भी नहीं पहुंच पाया है।
यह विडंबना है कि राजसी परंपरा का अंत करने लोकतंत्र का विकास खून के कतरे-कतरे से सींच कर किया गया लेकिन सियासत का पहिया वेसा ही घूमता जा रहा है जैसे आजादी के लिए संघर्ष करते एक पंक्षी की तड़प को देखा जा सकता है।
भोजपुर विधानसभा के चुनावी गणित पर बात करें तो यहां 2 लाख 40 हजार के आसपास मतदाता हैं जिसमें से सवा लाख के आसपास पुरूष एवं एक लाख 20 हजार के आसपास महिला मतदाता हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां लगभग 70 हजार एसटी वोटर एवं 40 हजार के करीब एससी वोटर हैं।
क्षेत्र में कई सालों से स्थायी शीर्ष नेतृत्व की मांग की जा रही है लेकिन न कांग्रेस द्वारा इस को लेकर कोई चेहरा पेस किया जा रहा है न हीं भाजपा इस ओर ध्यान देने की जरूरत समझ रही है, क्योंकि वर्तमान विधायक सुरेन्द्र पटवा खुद को क्षेत्र का बेटा बताकर सबकी बोलती बंद कर देते हैं।
भाजपा का अभेद किला भोजपुर
भोजपुर क्षेत्र भाजपा का अभेद किला माना जाता है। इस सीट पर दो बार छोड़ दिया जाये तो भाजपा राज करते आयी है। मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुंदरलाल पटवा के संघर्ष एवं भाजपा के लिए तनमन से किये गए प्रयास का परिणाम है कि यहां भाजपा को पटकनी देने वाला कोई मायी का लाल पैदा होते नहीं दिखता है।
सुरेन्द्र पटवा सब मन भाये
भोजपुर क्षेत्र की सियासत विचित्र किन्तू सत्य जैसी प्रतीत होती हैं,यहां के मतदाता बड़े भोले हैं माहौल कांग्रेस का बनाकर वोट बीजेपी को ही कर देते हैं। पिछले विधानसभा में भी यह कारनामा यहां देखने को मिला कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेश पचौरी की जीत का दावा करने वाली कांग्रेस की हवा तब निकल गई जब वर्तमान विधायक सुरेन्द्र पटवा ने 53 % वोट शेयर के साथ 2013 के आम चुनाव में जीत हासिल किया था। सुरेन्द्र पटवा के समर्थक इस बार भी पार्टी पटवा को टिकट देती है तो भारी मतों से जीत का दावा कर रहे हैं। समर्थक इस जीत का कारण पटवा की बेदाग छवी को बता रहे हैं वहीं कांग्रेस स्थानीय उम्मीदवार उतारकर इस अभेद किले को भेदने के फिराक में हैं।
भाजपा के स्थानीय नेता कर रहे टिकट की मांग
भाजपा के लिए कई दिनों से संगठन एवं पार्टी में कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं में इस बार अंतर्कलह देखा जा रहा है। इस चुनाव में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कही भाजपा के लोग ही भाजपा को हराने भीतरघात न कर दें। समय -समय पर इन कार्यकर्ताओं के मन का गुब्बारा संगठन स्तर पर फूंटता भी है,लेकिन संगठन यह कह के एनर्जी भर देता है कि आप को ही टिकट मिलेगा आप क्षेत्र में कार्य करें। खैर राजनीतिक व्यापार में आज सब संभव है। देखने वाली बात यह है कि भाजपा एवं कांग्रेस इस बार यहां किस आधार पर अपना प्रत्याशी उतारती है, और क्या एससी एसटी के संख्या बल का ध्यान रख इस समुदाय के अधिकारों की रक्षा करती है।