भारत के लोकसेवकों में यह भाव कम ही लोगों में होता है जो मानवीयता एवं प्रकृति के संरक्षण के बारे में सोचें। लेकिन इन सब के बीच ग्वालियर जिले के डीएसपी संतोष कुमार पटेल सब से अलग हैं। श्री पटेल जहां युवाओं को झण्डे पकडने के बजाए किताबों से जुड़ने की सीख देते हैं वहीं यातायात नियमों का पालन कराने खुद कुर्सी त्यागकर सड़क पर निकल पड़ते हैं। अब डीएसपी संतोष पटेल ने प्रकृति को कुछ देने का सोचा है। उन्होने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा है कि जिस बेटे ने   जगल में तेदुपत्तपा का संग्रहण किया , चिरोजी के बीज बेचकर अपनी पुस्तकों का इंतजाम किया उन पेड़ों को और अधिक लगाकर प्रकृति का कर्ज उतारना  चाहिए . 

#शुक्रिया_अदा_करता_हूँ के क्रम में जंगलों का आभारी हूँ जिन्होंने मेरे परिवार को आर्थिक रूप से सक्षम बनाया जिससे मैं कॉपी कलम किताब खरीद सका। पिता जी व माता जी के साथ गर्मियों में जंगल से तेंदूपत्ता का संग्रहण व चिरौंजी निकालकर बेचना, बारिश में वृक्षारोपण कर नगद रुपये प्राप्त करना, ठंडियो में शहद तोड़कर बेचना आदि कार्यों से तीनों मौसम में वन से धन की प्राप्ति होती थी जिसका अधिकतम हिस्सा शिक्षा में खर्च किया जाता रहा। शिक्षा में लगाया गया धन खर्च नहीं बल्कि पिता का निवेश होता है जो 18 वर्ष के बाद प्रत्येक महीने खाते में ब्याज सहित वापस आता है। मेरी पहली नौकरी भी जंगल विभाग में फारेस्ट गार्ड के रूप में लगी थी इसलिए मैं जिंदगी भर जंगलों का ऐहसान मंद रहूँगा। शुद्ध हवा, छप्पर के लिए लकड़ी, पिकनिक के लिए रमणीय स्थान आदि का कोई हिसाब नहीं जो मुझे जंगलों ने दिए। जंगलों का कर्ज चुकाने के लिए मौका मिलते ही पौधरोपण के माध्यम से प्रयास करता हूँ।

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