142 हेक्टेयर वीरान पहाड़ी को हरा भरा करने की पहल के लिए चर्चा में मप्र का एक गाॅव

(पन्ना), मध्य प्रदेश। कुल्हाड़ियों की आवाज खामोश हो गई हैं और वहां किसी भी जानवर को चरने की इजाजत नहीं है। इसलिए अब पन्ना जिले के पटना तमोली गाँव की पहाड़ी ने मुरझाने, झुलसने, और उजड़ने के बावजूद सांस लेना शुरू कर दिया है। पन्ना जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित यह गाँव 142 हेक्टेयर वीरान पहाड़ी को हरा भरा करने की पहल के लिए चर्चा में है, जो 15 वर्षों में एक जंगल बन गया है। पटना तमोली के एक सेवानिवृत्त शिक्षक सेतुबंधु चौरसिया ने गांव कनेक्शन को बताया,"वर्तमान में, यहां ऐसे पेड़ हैं जिनकी ऊंचाई 20 से 30 फीट के बीच है। यहां पर नीम के पेड़ और रात की चमेली सहित कुछ पेड़ प्राकृतिक रूप से उगे हैं, वहीं सागौन के पौधे लगाए गए हैं," उन्होंने उजड़ी हुई पहाड़ी ढलानों पर जंगलों को फिर से उगाने के लिए गांवों को एक साथ लाने में प्रमुख भूमिका निभाई।
परिवर्तन की बयार सेतुबंधु चौरसिया की हमेशा से ही पर्यावरण में दिलचस्पी थी और उन्होंने स्थानीय लोगों की एक टीम बनाई, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण टीम के तौर पर काम किया। सेतुबंधु ने याद करते हुए बताया, "जहां भी हमें जगह मिली, हमने पौधे लगाना शुरू कर दिया और 2004 में हमारा ध्यान पटना तमोली गांव की तरफ आकर्षित हुआ।" वीरान पहाड़ी, जहां घास का एक तिनका भी नहीं था, वहां हरियाली लाने के लिए, मदद की सख्त की जरूरत थी। सेवानिवृत स्कूल शिक्षक ने बताया, "हमने वहां काम करने का फैसला किया और गांव के लोगों से संपर्क किया। हालांकि, उस समय उन्हें इस क्षेत्र को हरा भरा करने में कोई दिल्चस्पी नहीं थी।" लेकिन, पहाड़ियों को हरा भरा करने का विचार गांव के कुछ युवाओं को भा गया। सेतुबंधु ने बताया, "अजय चौरसिया उनमें से एक थे और इलाके के युवा एक साथ इकट्ठा हुए और विचार जोर पकड़ने लगा।"
सिर्फ पटना तमोली ही नहीं, आसपास के गांवों ने भी दिलचस्पी दिखाई और धीरे-धीरे लोगों ने पहाड़ी की हरियाली को नुकसान पहुंचाना छोड़ दिया और वहां अपने मवेशियों को भी ले जाना बंद कर दिया। कुछ वर्षों के अंतराल में, मानव गतिविधि से विचलित न होकर, ढलानों पर हरे रंग की परत उगने लगी और पेड़ फिर से दिखाई देने लगे। हरियाली आंदोलन का हिस्सा बने युवाओं में से एक प्रमोद वर्मा याद करके बताते हैं, "2005 में पहाड़ी पर हरे नाम का कोई निशान नहीं था।" वर्मा ने बताया, "सेतुबंधु के अभियान और उनके प्रोत्साहन की वजह से स्वयं सहित गांव के युवकों, अजय चौरसिया, ओम सोनी, वृंदावन चौरसिया, कृष्ण कुमार पांडा और हरिनारायण ने एक टीम बनाई और काम पर लग गए। " वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "शुरूआत में हमने पहाड़ी की किसी भी तरह की वनस्पति को छेड़ा नहीं और जल्द ही गिरे हुए पेड़ों से अंकुर निकलने लगे। सिर्फ तीन से चार वर्षों में, हरे रंग की चादर ने ढलानों को ढक दिया, और अब हमारे सामने एक जंगल खड़ा है।" नतीजतन, पिछले पंद्रह सालों में, पटना तमोली में 142 हेक्टेयर में फैली एक बार खराब हो चुकी पहाड़ी, अब विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों का घर है।