Nirjala Ekadashi 2023 Date: निर्जला एकादशी का व्रत 2023 में कब है? आप भी निर्जला एकादशी व्रत की सही तारीख को लेकर कन्फ्यूज हैं तो हम आपको बता रहे हैं इस बार यह व्रत कब रखा जाएगा?

निर्जला एकादशी व्रत को अन्य एकादशी व्रत की अपेक्षा कठिन माना जाता है. हिंदू धर्म में इस एकादशी (Ekadashi) का बेहद खास महत्व है. मान्यता है कि निर्जला एकादशी के व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) से दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों ही प्रकार के तापों के मुक्ति मिल जाती है. आगे पढ़ें निर्जला एकादशी व्रत की सही तारीख क्या है?

निर्जला एकादशी व्रत 2023 कब है? (When is Nirjala Ekadashi Vrat 2023?)

हिंदू पंचांग के मुतबिक निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2023) का व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. इस बार निर्जला एकादशी की तिथि (Nirjala Ekadashi Date) कब है, निर्जला एकादशी का व्रत कब रखा जायेगा आगे पढ़ें.

निर्जला एकादशी व्रत 2023 तारीख, शुभ मुहूर्त (Nirjala ekadashi 2023 exact date shubh muhurat)

निर्जला एकादशी बुधवार, मई 31, 2023 को

एकादशी तिथि प्रारम्भ - मई 30, 2023 को 01:07 बजे दोपहर से

एकादशी तिथि समाप्त - मई 31, 2023 को 01:45 बजे दोपहर तक

निर्जला एकादशी व्रत पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 1 जून को 05:24 सुबह से 08:10 सुबह तक

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 01:39 दोपहर

निर्जला एकादशी व्रत पूजा विधि (Nirjala Ekadashi Puja Vidhi)

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं.

इसके बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें.

भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें.

भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें.

इसके बाद भगवान की आरती करें.

भगवान को भोग लगाएं. भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें.

इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें.

निर्जला एकादशी व्रत नियम दान (Nirjala Ekadashi Niyam daan)

जो लोग बारह मास का एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं उन्हें निर्जला एकादशी व्रत जरूर करना चाहिए. इस व्रत को करने से भी 24 एकादशी व्रत का पुण्य मिल जाता है. निर्जला एकादशी विधि व्रत के नियम जानें.

जिस दिन व्रत करना है उसके एक दिन पहले संध्याकाल से इस व्रत के नियम शुरू हो जाते हैं. स्वस्छ रहें और संध्या काल के बाद भोजन नहीं करें.

व्रत के दिन सुबह में स्नान करने के बाद भगवान विष्णु का पूजन करें पीला वस्त्र धारण करें.

पूजन के बाद कथा सुनें.

निर्जला एकादशी पर जल पीना वर्जित होता है.

इसलिए व्रत समाप्ति के बाद ही जल ग्रहण करना चाहिए.

इस दिन व्रत करते समय किसी के प्रति मन में बुरे विचार नहीं रखने चाहिए.

इस दिन वाद-विवाद से बिल्कुल दूर रहना चाहिए.

हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का बहुत महत्व है.

इस दिन चावल खाने से बचना चाहिए.

इस दिन भगवान विष्णु का ध्यान कर उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए.

भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित कर सकते हैं.

इस दिन दान करने का विशेष महत्व है.

इसलिए किसी जरूरमंद और गरीब व्यक्ति को अन्न, जल, वस्त्र आदि दान करना शुभ होता है.

इस दिन जो व्रत करते हैं उनको विशेष दान (शरबत ) करना चाहिए. मिट्टी के पात्र में जल भरकर उसमें गुड़ या शक्कर डाले तथा सफेद कपड़ा से पात्र को ढक कर दक्षिणा के साथ ब्रह्मण को दान दें.

निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha)

महाभारत के समय एक बार पाण्डु पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा- ''हे मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं व मुझे भी व्रत करने के लिए कहते हैं. लेकिन मैं भूखा नहीं रह सकता हूं अत: आप मुझे कृपा करके बताएं कि बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है.'' भीम के अनुरोध पर वेद व्यास जी ने कहा- ''पुत्र तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो, इसे निर्जला एकादशी कहते हैं. इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़़ता है. जो भी मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पीये रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे वर्ष में जितनी एकादशी आती हैं उन सब एकादशी का फल इस एक एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है.'' महर्षि वेद व्यास के वचन सुनकर भीमसेन निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने लगे और पाप मुक्त हो गए. इसके बाद से निर्जला एकादशी मनाई जाती है.

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व (Importance of Nirjala Ekadashi fasting)

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, निर्जला एकादशी व्रत का शाब्दिक अर्थ है बिना पानी पिए उपवास करना. इसलिए, भगवान विष्णु के भक्त एक दिन का उपवास रखते हैं और इस एकादशी तिथि पर पानी तक नहीं पीते हैं. दिलचस्प बात यह है कि निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसका नाम पांडव भाई भीम (भीमसेना के नाम से भी जाना जाता है) के नाम पर रखा गया है. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार, भीम का अपनी भूख पर कोई नियंत्रण नहीं था इसलिए उन्होंने सभी एकादशी का फल देने वाले एक निर्जला एकादशी व्रत का पालन किया था.