सूर्यदेव संपूर्ण सृष्टि के महत्वपूर्ण आधार हैं, क्योंकि भगवान सूर्य (lord Sun) के उदय होते ही पूरे जगत का अंधकार नष्ट हो जाता है और चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैलता है।
अत: कुछ देर सूर्यदेव की किरणें हमारे शरीर पर पड़ने मात्र से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है तथा मन शांत होकर ऊर्जा से भरपूर हो जाता है।
हमारी भारतीय परंपरा में वैदिक काल से सूर्योपासना अनवरत चली आ रही है। प्रतिदिन भगवान सूर्यदेव की उपासना करने तथा उन्हें जल का अर्घ्य देकर मंत्र जाप करने का महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यतानुसार प्रतिदिन सूर्योपासना अथवा सूर्य को जल चढ़ाने से हमारे अंदर आत्मविश्वास जागृत है तथा नकारात्मकता दूर हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।

आइए जानते हैं 5 खास बातें-

1. प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व शुद्ध होकर स्नान करें। तत्पश्चात उदित होते सूर्य के समक्ष कुश का आसन लगाकर सूर्यदेव का स्मरण करते हुए सूर्य अर्घ्य दें।

2. प्रात:काल के समय पूर्व दिशा में जैसे ही सूर्यागमन होने से पहले नारंगी किरणें प्रस्फूटित होती दिखाई दे रही हो, तभी दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़ कर जल इस तरह चढ़ाएं कि सूर्य जल चढ़ाती धार से दिखाई दें तथा हमेशा सूर्य को जल का अर्घ्य धीरे-धीरे चढ़ाएं ताकि जलधारा आपके आसन पर आकर गिरे, अगर यह जलधारा जमीन पर गिरती हैं तो आपको जल में समाहित सूर्य ऊर्जा का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा। अत: इस बात का ध्यान अवश्‍य रखें कि यह सीधे भूमि पर न गिरें।

3. सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय 'ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।' को कम से कम 11 बार अवश्य पढ़ें। साथ ही मंत्र- 'ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा:।।' मंत्र को तीन बार बोलें।

4. सूर्य अर्घ्य के बाद सीधे हाथ की अंजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें। तथा उसी स्थान पर 3 परिक्रमा करके आसन उठा लें तथा उस स्थान को नमन करें। इस तरह की गई सूर्यदेव की उपासना से जीवन में यश, सिद्धि, समृद्धि तथा सफलता प्राप्त होती है।

5. मान्यतानुसार प्रतिदिन अथवा हर रविवार को पूरे मन से सूर्योपासना की जाए तो यह बेहद शुभ और कल्याणकारी माना गया है। इस दिन सूर्यदेव का पूजन अवश्य करें। एक तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल चंदन, रोली, लाल कनेर के पुष्प, अक्षत और गुड़ डालकर अर्घ्य देने से सूर्यदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा कार्य करने के प्रति आत्मविश्वास जागृत होता है। सूर्य पिता का कारक है और जिस तरह पिता के होने से व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है उसी तरह सूर्य की शीतल रश्मियां जल के साथ जब ह्रदयस्थल पर पड़ती है तो दिल मजबूत होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।

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