रांची| वर्ष 2023 और 2024 झारखंड के लिए सियासी नजरिए से बेहद अहम साल साबित होने वाले हैं। अभी 2023 की शुरूआत हुई है और राज्य की रामगढ़ विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर सियासी माहौल में सरगर्मी घुल गई है।

आने वाले तीन-चार महीनों के भीतर राज्य में 49 नगर निकायों के चुनाव संभावित हैं। वर्ष 2024 के पूर्वार्ध में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और उत्तरार्ध यानी नवंबर-दिसंबर में झारखंड विधानसभा के भी चुनाव कराए जाएंगे।

इन सभी चुनावों के समीकरण बहुत हद तक इस फैक्टर पर तय होंगे कि एनडीए और यूपीए- दोनों खेमों के घटक दलों के बीच आपसी एकता किस हद तक बन पाती है। झारखंड के मौजूदा सियासी परि²श्य में यह फैक्ट भी आईने की तरह साफ है कि झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन सभी चुनावों में एक अहम धुरी होंगे।

आइए, अब सिलसिलेवार तरीके से इन सभी चुनावों के लिए बन रही परिस्थितियों पर चर्चा करते हैं। बात सबसे पहले रामगढ़ विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव की, जहां आगामी 27 फरवरी को वोट डाले जाने हैं। इस सीट पर 2019 में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस की ममता देवी को हजारीबाग जिले की कोर्ट ने एक आपराधिक मामले में सात साल की सजा सुनाई थी और इसके बाद उनकी विधायकी निरस्त कर दी गई थी। इस वजह से यहां उपचुनाव कराए जा रहे हैं।

झारखंड में एनडीए फोल्डर की पार्टी आजसू ने यहां गिरिडीह के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता देवी को प्रत्याशी बनाया है। वह 2019 के विधानसभा चुनाव में भी आजसू की प्रत्याशी थीं, लेकिन पराजित हो गई थीं। इस चुनाव में एनडीए फोल्डर में फूट पड़ गई थी। आजसू और भाजपा दोनों ने अपने प्रत्याशी उतार दिए थे। इस बार आजसू प्रत्याशी को भाजपा का भी समर्थन है।

यहां दूसरे खेमे यानी यूपीए की बात करें, तो इस बात पर सहमति है कि यहां कांग्रेस अपना उम्मीदवार उतारेगी और उसे झामुमो और राजद का समर्थन हासिल होगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद इस उपचुनाव में दिलचस्पी ले रहे हैं। उनका पैतृक गांव गोला प्रखंड के नेमरा में है, जो रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र का ही हिस्सा है।

कांग्रेस प्रत्याशी के लिए चुनाव प्रचार में भी हेमंत सोरेन का आना तय माना जा रहा है। 2019 के बाद राज्य में चार विधानसभा सीटों दुमका, बेरमो, मधुपुर और मांडर में अलग-अलग वजहों से उपचुनाव कराए गए और चारों उपचुनावों में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गठबंधन (यूपीए) ने एका बरकरार रखते हुए जीत दर्ज की है।

रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव के बाद राज्य में सभी 49 नगर निकायों के चुनाव कराने की घोषणा की जा सकती है। ये चुनाव बीते दिसंबर में ही प्रस्तावित थे, लेकिन मेयर के पदों पर एकल आरक्षण पर विवाद के कारण सरकार ने चुनाव टाल दिए थे। अब इस मसले पर सरकार निर्णय ले चुकी है और सब कुछ ठीक रहा तो अप्रैल-मई में चुनाव करा लिए जाएंगे।

हालांकि नगर निकायों के चुनाव दलीय आधार पर नहीं होंगे, लेकिन इसके बावजूद यूपीए-एनडीए दोनों खेमों के बीच अपने-अपने समर्थकों की जीत सुनिश्चित करने के लिए जोरदार आजमाइश होगी। पिछले नगर निकाय चुनावों में जीत दर्ज करने वालों में भाजपा समर्थकों की तादाद सबसे ज्यादा थी।

इस बार हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर नगर निकायों के महत्वपूर्ण पदों के लिए साझा प्रत्याशी उतारने की संभावनाओं पर चर्चा हो रही है।

2024 में होने वाले सबसे बड़े चुनाव यानी लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए और यूपीए दोनों ने राज्य में अपने-अपने पक्ष में सियासी समीकरण तैयार करने की संभावनाओं और रणनीतियों पर काम शुरू दिया है। भाजपा के शीर्ष चुनावी रणनीतिकारों में एक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीते 7 जनवरी को झारखंड के चाईबासा में विजय संकल्प रैली के साथ राज्य में चुनावी अभियान का आगाज कर दिया।

इस रैली में अमित शाह के निशाने पर कांग्रेस नहीं, हेमंत सोरेन ही रहे। इसकी वजह यह है कि झारखंड में भाजपा या एनडीए के सामने सबसे बड़ी चुनौती हेमंत सोरेन हैं। हेमंत सोरेन ने भी अमित शाह के प्रहारों का जवाब देने में देरी नहीं की। उन्होंने अमित शाह की रैली के 17 दिन बाद 24 फरवरी को चाईबासा में खतियानी जोहार यात्रा के तहत बड़ी रैली की।

सोरेन ने इस रैली में साल 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव का शंखनाद करते हुए कहा कि इस यात्रा के माध्यम से वे सभी का आशीर्वाद लेने आए हैं। उन्होंने कहा कि 15 साल दीजिए, झारखंड गुजरात से ऊपर रहेगा। यहां से मनुवादियों, बिहारियों और उत्तरप्रदेश के लोगों को खदेड़ दिया जाएगा।

झारखंड में आदिवासी वोट बैंक पर सोरेन और उनकी पार्टी की मजबूत पकड़ है। भाजपा जानती है कि वह इस वोट बैंक को दरकाने में जितनी सफल होगी, लोकसभा के साथ-साथ 2024 में ही होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में उसकी राह उतनी आसान होगी। दूसरी तरफ हेमंत सोरेन राज्य में सरकार चलाते हुए आदिवासियों और झारखंड के मूल निवासियों से जुड़े जमीनी और भावनात्मक मुद्दों पर एक के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं।

1932 के खतियान पर आधारित डोमिसाइल पॉलिसी, ओबीसी-एससी-एसटी आरक्षण में वृद्धि, निजी कंपनियों में 40 हजार तक की पगार वाले पदों पर झारखंड के स्थानीय लोगों के लिए 75 फीसदी आरक्षण जैसे फैसलों का इस्तेमाल वह तुरुप के पत्ते की तरह कर रहे हैं।

हेमंत सोरेन सरकार के कई फैसलों पर पूरी तरह सहमत न होने के बावजूद राज्य में कांग्रेस और राजद जैसी पार्टियां उनके साथ खड़ी हैं। इसकी वजह यह कि ये दोनों पार्टियां जानती हैं कि फिलहाल झारखंड में झामुमो के बगैर चुनावी राजनीति में टिके रह पाना मुश्किल है।

झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। 2019 के चुनाव में इनमें से 11 सीटों पर भाजपा और एक पर एनडीए फोल्डर की पार्टी आजसू ने जीत दर्ज की थी। इस बार एनडीए के लिए यह परिणाम दोहरा पाना बड़ी चुनौती है। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त राज्य में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार थी। अभी राज्य में झामुमो की अगुवाई वाले गठबंधन की सरकार है।

अगर कोई अप्रत्याशित स्थिति नहीं बनी तो यह सरकार वर्ष 2024 तक कायम रह सकती है और ऐसे में यहां सोरेन की अगुवाई में ज्यादा बेहतर संसाधनों के साथ चुनाव लड़ने का फायदा यूपीए को मिल सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव में यूपीए फोल्डर के तहत चार दलों राजद, झामुमो, कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा ने 14 में से 13 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था। इसके बावजूद इनके हिस्से मात्र 2 सीटें आई थीं। झारखंड विकास मोर्चा अब विघटित हो चुका है।

संभावना यही है कि इस बार यूपीए फोल्डर में झामुमो, कांग्रेस और राजद एक साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे और हेमंत सोरेन इस एका की सबसे बड़ी धुरी होंगे। फिलहाल इनकी एकता में कोई बड़ी मुश्किल नहीं दिख रही। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव और इसके बाद विधानसभा चुनाव में सोरेन की अगुवाई वाले इस गठबंधन की संभावित एका किस हद तक असर डाल पाएगी।